---ऐसी ही बारिश और बालकनी में खड़ी थी --- बरामदे में बारिश में बैठे चाय की चुस्कियों की याद आना स्वाभाविक ही होता है ---आज फिर वही मंजर -- ---
-----------वो बतकहियां हमारी ---------
आम से जीवन की बतकहियां ,किसी ख़ास से अपने को जोड़ती हुई ,वो ख़ास हमारा हीरो था ,उसकी कई किताबें हमने साथ बैठ के पढ़ीं --बस यूँ ही भावुकता भरे कुछ क्षण -----जो बस मेरे लिए खास हैं ---
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अक्सर बरामदे में शाम की चाय पे जीवन क्या है ?कैसा है ?क्यों है ?पे चर्चा होती जब मेरी और अजय की तो अंत में टकराहट पे आके रूकती। वो कहते आभा आदमी कितना सुखी है ये मत देखो उसे मौत कैसी मिलती है ये देखो। जीवन भर सुखों के झूले पे झूलता रहे , अंतिम समय बिस्तर पे पड़ जाए , बैड - सोल हो जाएँ ,त्रिशंकु बनके लटक जाए मौत और जिंदगी के बीच में या फिर मिनटों में बैठे-बैठे प्राण पखेरू उड़ जाएँ। यदि काम करते हुए आदमी जाए तो उससे सुखी कोई नहीं ,और मैं टकरा जाती ,आपको तो मौत के क्षण ही दिखाई देते हैं जीवन की सफलता या सुख को परिभाषित करने के लिए । ये भी कोई बात हुई ;जीवन भर जो सफल सुखी और संपन्न रहा है ,वो तो सुखी ही कहलायेगा न। पर अजय ये कभी मानने को ही तैयार नहीं होते थे ,उनका कहना था एक व्यक्ति यदि जिंदगी भर जूझ रहा है ,बीमार भी है पर फिर भी कर्मठ है ,कर्मठ संतानें देता है राष्ट्र को और अंत में चैन से प्राण निकल जाते हैं तो उससे बढ़कर भाग्यवान कोई नहीं। लेकिन साथ ही ये भी ,ऐसा उस ही व्यक्ति के साथ होगा जिसके मन में किसी के लिए कलुष न हो ,जिसने मानवता के लिए अधिक नहीं तो कुछ तो किया हो ,जिसमे इतना साहस हो कि उसे पता है कि फलां शख्स मुझसे हद दर्जे हा द्वेष रखता है , पर उससे मिलके माफ़ी मांग सके कि कही मेरी ही तो कोई गलती तो नहीं थी और साथ ही सबको माफ़ करने की कूवत रखता हो ,जिसे लोभ न हो --वही फटाफट मृत्यु पाता है।
मुझे लगता ये इंसान किस मिट्टी का बना है ,झूठ ,धोखा ,फरेब ,निंदा सबकुछ पचा जाता है ,किसी के लिए मन में कोई द्वेष ही नहीं और सभी चालबाजों और धोखेबाजों को भी ख़ुशी बाँट रहा है। क्यों दूर कर रहे हो नकारात्मकता ,आपने क्या ठेका लिया है ,बिना बात में उस लफंगे लम्पट से माफ़ी मान ली ,जब कोई आपने कुछ किया नहीं ,कोई दोष नहीं तो किस बात की माफ़ी ?
सीधे इतने कि खुद बीमार हैं पर किसी का फोन आ जाए मेरी माँ बीमार है ,बीबी को बच्चा होना है ,तो चल देंगे उठ के ,खुद की तबियत ठीक नहीं है ,पर कोई बड़ी उम्र साथी अकेला है [अक्सर इस उम्र में कोई न कोई अकेला होता है और बच्चे भी जीविकोपार्जन के लिए चले जाते हैं ]तो चलदेंगे उसकी खैर-खबर लेने --चलो उसे थोड़ी देर की ही ख़ुशी दे आते हैं और ये तब जब उस आदमी ने हमेशा डिपार्टमेंट में अजय की काट करी हो ,अरे उसका उसके साथ मेरा मेरे साथ। मैं अक्सर किलसती भी थी ,देखो इतना सीधा सरल होना भी अच्छा नहीं होता ,लोग तुम्हारी राह में दोस्त बनके रोड़ा अटकाते हैं ,पर वो कभी नहीं माने ,कहते मेरा भाग्य थोड़े ही कोई छीन लेगा।
आम से जीवन की बतकहियां ,किसी ख़ास से अपने को जोड़ती हुई ,वो ख़ास हमारा हीरो था ,उसकी कई किताबें हमने साथ बैठ के पढ़ीं --बस यूँ ही भावुकता भरे कुछ क्षण -----जो बस मेरे लिए खास हैं ---
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अक्सर बरामदे में शाम की चाय पे जीवन क्या है ?कैसा है ?क्यों है ?पे चर्चा होती जब मेरी और अजय की तो अंत में टकराहट पे आके रूकती। वो कहते आभा आदमी कितना सुखी है ये मत देखो उसे मौत कैसी मिलती है ये देखो। जीवन भर सुखों के झूले पे झूलता रहे , अंतिम समय बिस्तर पे पड़ जाए , बैड - सोल हो जाएँ ,त्रिशंकु बनके लटक जाए मौत और जिंदगी के बीच में या फिर मिनटों में बैठे-बैठे प्राण पखेरू उड़ जाएँ। यदि काम करते हुए आदमी जाए तो उससे सुखी कोई नहीं ,और मैं टकरा जाती ,आपको तो मौत के क्षण ही दिखाई देते हैं जीवन की सफलता या सुख को परिभाषित करने के लिए । ये भी कोई बात हुई ;जीवन भर जो सफल सुखी और संपन्न रहा है ,वो तो सुखी ही कहलायेगा न। पर अजय ये कभी मानने को ही तैयार नहीं होते थे ,उनका कहना था एक व्यक्ति यदि जिंदगी भर जूझ रहा है ,बीमार भी है पर फिर भी कर्मठ है ,कर्मठ संतानें देता है राष्ट्र को और अंत में चैन से प्राण निकल जाते हैं तो उससे बढ़कर भाग्यवान कोई नहीं। लेकिन साथ ही ये भी ,ऐसा उस ही व्यक्ति के साथ होगा जिसके मन में किसी के लिए कलुष न हो ,जिसने मानवता के लिए अधिक नहीं तो कुछ तो किया हो ,जिसमे इतना साहस हो कि उसे पता है कि फलां शख्स मुझसे हद दर्जे हा द्वेष रखता है , पर उससे मिलके माफ़ी मांग सके कि कही मेरी ही तो कोई गलती तो नहीं थी और साथ ही सबको माफ़ करने की कूवत रखता हो ,जिसे लोभ न हो --वही फटाफट मृत्यु पाता है।
मुझे लगता ये इंसान किस मिट्टी का बना है ,झूठ ,धोखा ,फरेब ,निंदा सबकुछ पचा जाता है ,किसी के लिए मन में कोई द्वेष ही नहीं और सभी चालबाजों और धोखेबाजों को भी ख़ुशी बाँट रहा है। क्यों दूर कर रहे हो नकारात्मकता ,आपने क्या ठेका लिया है ,बिना बात में उस लफंगे लम्पट से माफ़ी मान ली ,जब कोई आपने कुछ किया नहीं ,कोई दोष नहीं तो किस बात की माफ़ी ?
सीधे इतने कि खुद बीमार हैं पर किसी का फोन आ जाए मेरी माँ बीमार है ,बीबी को बच्चा होना है ,तो चल देंगे उठ के ,खुद की तबियत ठीक नहीं है ,पर कोई बड़ी उम्र साथी अकेला है [अक्सर इस उम्र में कोई न कोई अकेला होता है और बच्चे भी जीविकोपार्जन के लिए चले जाते हैं ]तो चलदेंगे उसकी खैर-खबर लेने --चलो उसे थोड़ी देर की ही ख़ुशी दे आते हैं और ये तब जब उस आदमी ने हमेशा डिपार्टमेंट में अजय की काट करी हो ,अरे उसका उसके साथ मेरा मेरे साथ। मैं अक्सर किलसती भी थी ,देखो इतना सीधा सरल होना भी अच्छा नहीं होता ,लोग तुम्हारी राह में दोस्त बनके रोड़ा अटकाते हैं ,पर वो कभी नहीं माने ,कहते मेरा भाग्य थोड़े ही कोई छीन लेगा।
कुछ दिनों से अजय ने जिन भी लोगों के लिए वो सुनते थे कि वो मुझ से कुछ द्वेष रखते हैं ,उनसे फोन पे बात शुरू की ,मेरे पूछने पे बोले संवाद बहुत बड़ी शह है ,वो मेरे लिये कलुष लिए बैठा है ,मुझे पता चला तो मैं क्यों न अपने लिए उसकी नकारात्मकता मिटाऊं। और धीरे -धीरे सभी से उन्होंने संवाद किया ,किसी को चाय पे बुलाया ,किसी को खाने पे। मैंने इसे गंभीरता से लिया ही नहीं। जब काम ज्यादा बढ़ गया तो रोकने की कोशिश भी की ; क्यों कर रहे हो ? कुछ लोग ऐसे जो जॉब शुरू होने से लेकर अब तक जान के पीछे पड़े थे [और मैं तो आज भी उनका चेहरा नहीं देखना चाहती ]सभी से रिश्ते सहज और सौहार्दयपूर्ण कर लिये ---मैं समझ ही न पायी कि आत्मा निर्मल होना चाहती है और -------------------
''एक सुबह ,६ बजे --ताजा गुड बनवाया था ,वो गुड की चाय कभी नहीं पीते थे पर जुकाम था तो मैंने अदरख गुड की चाय बनाई --आज उठने में देर हो गयी कहके चाय के लिए उठाया तो एक सिप लेके बोले थोड़ा कमजोरी हो रही है ,कुछ देर और सो जाऊं और बस कहते कहते रामजी की चिड़िया रामजी के पास। ''------------
अजय के जाने के कुछ समय बाद जब होश आया तो पता चला सही में भाग्यशाली वही है जिसको अपने जाने का अहसास भी न हो ,पल भर में उड़ जाए ,चेहरे पे भी न शिकन न डर। --जब जरा मनन करने लगी तो पाया ,पिताजी ,माँ ,श्वसुरजी --मेरे आगे ये सभी शख्श ऐसे रहे जो चेतनावस्था में चलते-फिरते चले गए --और ये सब वही लोग थे जो सीधे ,सच्चे और सरलमना थे।
अभी कलाम सर का जाना देखा तो ये सारी बतकहियां चलचित्र की भांति घूम गयी आँखों के आगे ,मानो अभी की ही बात हो ,एक सीधे ,सच्चे सरल ,आदमी का जाना क्या होता है --पल भर में कार्य करते हुए प्राण पखेरू उड़ गए ---सही में यही व्यक्ति भाग्यशाली होता है। अजय तुम ठीक कहते थे।
काश मैं भी इतनी ही सहज हो पाऊं। कोशिश तो कर रही हूँ पर अभी ऐंठ है कहीं मन में ,कुछ गांठें हैं जो खुलती नहीं ,,कुछ लोग जिन्होंने तुम्हें धोखा दिया मेरी माफ़ी की जद में नहीं आते --शायद मैं उतनी सरलमना नहीं हूँ और कोई बिरला ही हो सकता है ऐसा।
''मैं रोती नहीं वारती मानस मोती हूँ ''---जाने वाले अब हमारे दिलों में हैं अपनी राह पे चलने को प्रेरित करते हुए ----
''एक सुबह ,६ बजे --ताजा गुड बनवाया था ,वो गुड की चाय कभी नहीं पीते थे पर जुकाम था तो मैंने अदरख गुड की चाय बनाई --आज उठने में देर हो गयी कहके चाय के लिए उठाया तो एक सिप लेके बोले थोड़ा कमजोरी हो रही है ,कुछ देर और सो जाऊं और बस कहते कहते रामजी की चिड़िया रामजी के पास। ''------------
अजय के जाने के कुछ समय बाद जब होश आया तो पता चला सही में भाग्यशाली वही है जिसको अपने जाने का अहसास भी न हो ,पल भर में उड़ जाए ,चेहरे पे भी न शिकन न डर। --जब जरा मनन करने लगी तो पाया ,पिताजी ,माँ ,श्वसुरजी --मेरे आगे ये सभी शख्श ऐसे रहे जो चेतनावस्था में चलते-फिरते चले गए --और ये सब वही लोग थे जो सीधे ,सच्चे और सरलमना थे।
अभी कलाम सर का जाना देखा तो ये सारी बतकहियां चलचित्र की भांति घूम गयी आँखों के आगे ,मानो अभी की ही बात हो ,एक सीधे ,सच्चे सरल ,आदमी का जाना क्या होता है --पल भर में कार्य करते हुए प्राण पखेरू उड़ गए ---सही में यही व्यक्ति भाग्यशाली होता है। अजय तुम ठीक कहते थे।
काश मैं भी इतनी ही सहज हो पाऊं। कोशिश तो कर रही हूँ पर अभी ऐंठ है कहीं मन में ,कुछ गांठें हैं जो खुलती नहीं ,,कुछ लोग जिन्होंने तुम्हें धोखा दिया मेरी माफ़ी की जद में नहीं आते --शायद मैं उतनी सरलमना नहीं हूँ और कोई बिरला ही हो सकता है ऐसा।
''मैं रोती नहीं वारती मानस मोती हूँ ''---जाने वाले अब हमारे दिलों में हैं अपनी राह पे चलने को प्रेरित करते हुए ----