क्षितिज के उस पार-प्रोत्साहन के लिये ---
=============
अपनी साँसें मुझको देकर
तू मुझमें ही छिप जाता है।
पपीहे सी प्यासी रह जाती
सुधियों का अमृत पीने को।
जब तू मेरा होता है ,
मैं भी अपनी होती हूँ।
जुगों जुगों की रीत यहां
बस प्यार और अधिकार की है।
तुझको पाना तुझको जीना
तेरी ही राहों पे चलना -
तिनका -तिनका जोड़ यहां
निर्मित अपना संसार किया -
अब पंछी कैद हुआ तड़पे
चाहे ऊँची उड़ान प्रिये।
अधखुली पलकों का उन्मीलन
सुधियाँ लेती आकार प्रिये।
तू भी अंक में सागर की
नित आता थकन मिटाने को।
मैं भी लहरों में मिलकर के
फिर लेती हूँ आकार प्रिये।।आभा।।-हर बार उजला होने की आस में आत्मा लिहाफ बदलती है ,कुछ भूली बिसरी सुधियों संग -"पुनरपि जननं पुनरपि मरणं' -- साँसों का हवन है जीवन फिर - फिर से सागर के अंक में समाना -जैसे प्रतिदिन सूरज समाता है ,आत्मा की थकन उतारने को -पर अवसान मनभावन हो,रंगभरा हो , ये भी सीख देता है क्षितिज का सूरज --आखिर जीवन तो क्षितिज के उस पार ही है।Manage
=============
अपनी साँसें मुझको देकर
तू मुझमें ही छिप जाता है।
पपीहे सी प्यासी रह जाती
सुधियों का अमृत पीने को।
जब तू मेरा होता है ,
मैं भी अपनी होती हूँ।
जुगों जुगों की रीत यहां
बस प्यार और अधिकार की है।
तुझको पाना तुझको जीना
तेरी ही राहों पे चलना -
तिनका -तिनका जोड़ यहां
निर्मित अपना संसार किया -
अब पंछी कैद हुआ तड़पे
चाहे ऊँची उड़ान प्रिये।
अधखुली पलकों का उन्मीलन
सुधियाँ लेती आकार प्रिये।
तू भी अंक में सागर की
नित आता थकन मिटाने को।
मैं भी लहरों में मिलकर के
फिर लेती हूँ आकार प्रिये।।आभा।।-हर बार उजला होने की आस में आत्मा लिहाफ बदलती है ,कुछ भूली बिसरी सुधियों संग -"पुनरपि जननं पुनरपि मरणं' -- साँसों का हवन है जीवन फिर - फिर से सागर के अंक में समाना -जैसे प्रतिदिन सूरज समाता है ,आत्मा की थकन उतारने को -पर अवसान मनभावन हो,रंगभरा हो , ये भी सीख देता है क्षितिज का सूरज --आखिर जीवन तो क्षितिज के उस पार ही है।Manage
No comments:
Post a Comment