सांझ का सूरज
==========
मन कदरी का पात हुआ जाता है ,
मेह पावस के न भिगो पायें इसको।
देख भानु को अंबर से क्षितज पे आते ,
लगीं बुनने स्वप्न कुछ सुहाने लहरें।
वो होके किरणों के झूले पे सवार ,
छिपे अंक जलधि , उगे भूधर पीछे।
देख पींगे बढ़ाते झूलते उसको
स्मित सीमान्त आह्लादित -
खोलता मूँदता पलकें।
उषा- कुमकुम ,संध्या- सिंदूर लिए
पथ को केसरिया वसन उढ़ा देती हैं।
पर! बाँध पायीं कहाँ रंगीनियां तुझे ऐ सूरज !
मिटाने को तपिश- थकन दिवसभर की ,
खेलेगा संग जलधि लहरों के तू ,
भिगोना है तुझे तन मन अपना -
जाना भी तो है, निशा सुंदरी के तिमिर महल !
जहां कज्जल चादर में टंके हैं हीरे ,
तकिये पे जहां चाँद का कंगन है कढ़ा ।
सोने चांदी के सितारों की जगमग में-
रूपसी निशा संग -सुख-दुःख मंजरित होंगे।
नीलम से चमकते सागर की लहरें
धुन बांसुरी की सुनाती है टूटते-बनते।
घन घूंघट की ओट से हैं झांकते ,
लहराते -रेशमी केश ,कज्जल निशा के.
और ! मैं बावरी -चुपके से -
लहरों के झरोंखों से ताकूँ तुझको।
लालसा मन की तुझे देखने की
जाने आँखों को क्यों गुनाहगार कहते हैं सभी !
संग अम्बुद के तू उतरता है मेरे भीतर भी
मैं तेरे संग-संग ही सोतिजगती हूँ ,
तू मेरा मन है तू देवता मेरा -
तू है तो मैं हूँ -बस ,
इतना सा नाता तेरा- मेरा ।।आभा।।====
-----सागर के अंक में समाते सूरज का दृश्य -मन को लहरों सा चंचल कर देता है -आसमान में बिखरा कुमकुम चूर्ण ,स्वर्णिम रश्मियां और नीलम सा जलधि -मन बावरा हो कविता हो जाता है।इस सुंदर चित्र पे केवल सुंदरता का वर्णन।
No comments:
Post a Comment