जिजीविषा ----
गिलोय [ टीनोस्फोरा कार्डीफोलिया ] , अमृता जीवन्तिका , गुडुची , छिन्नरुहा ,कुण्डलिनी , चक्रांगी , मधुपर्ण ---और भी न जाने कितने नाम और उतने ही गुण |ज्वर के लिये तंत औषधी | मेरे घर में ज्वर होने पे तुरंत गिलोयका काढ़ा दिया जाता है ,शायद मेरा विश्वास ; ज्वर उतर भी जाता है | सरल शब्दों में कहा जाए तो लाख रोगों की एक दवा --पर आज मैं कोई आयुर्वेदिक पोस्ट नही लिख रही --ये एक चमत्कार ( आज ही देखा ) बयाँ कर रही हूँ --वो चमत्कार जहाँ ईश्वर के दर्शन होते हैं ''जाको राखे साइयां मार सके न कोई '' जिजीविषा --जो सब प्रभू की कृपा के कारण ही हो सकती है ----
''दशरथ पुत्र जन्म सुनी काना | मानहुं ब्रह्मा नन्द सामना ||
परम प्रेम मनपुलक सरीरा | -----कहा बोलाई बजावहूँ बाजा ||''
पुत्र जन्म की सूचना दशरथ जी के लिए ब्रह्म को पा लेने का आनन्द ही थी , अब उससे बड़ा भी कोई आनन्द हो सकता है --जी हाँ ---सबके साथ उस आनन्द को बाँटना ---आज मैं भी बाँट रही हूँ ये आनन्द --इसे आप सभी सुधीजन मेरी बेवकूफी भी समझ सकते है --पर मूर्खा हूँ तो हूँ ---
2014 में बच्चे बाहर थे--एक महीने के लिए अकेली थी , तभी तेजज्वर और फ्लू ने जकड़ लिया ,आस-पास डेंगू फैला था | जब दो तीन बार बेहोशी आ गयी तो पपीते के पत्ते मंगवाए काम वाली से और रस पीना शुरू किया ,दो तीन दिन में ज्वर उतर गया | मैं कुछ दिनों के लिए हरिद्वार आ गयी | भाई के घर में गिलोय की बेल है --पत्ते भी खाए और काढ़ा भी पिया ,आते हुए कुछ कलमें लेती आई और गमले में रोप दीं --यही बेल जिसका चित्र मैंने डाला है --शान से लहरा रही है अब | कुछ टहनियां मैंने रख लीं और भूल गयी ,आज रद्दी निकाल रही थी तो एक कार्टन से गिलोय की वो भूलीबिसरी टहनी मिली | दो वर्ष तक यूँ ही पड़ी टहनी -- उसमे नये पत्ते एवं दो रस्सी सी जड़ें देख मेरी तो ख़ुशी और आश्चर्य से चीख ही निकल गयी --मुहं से बस यही निकला जाको राखे साइयां ,--इसी लिए इसका नाम अमृता है --खुद में इतनी जिजीविषा है तभी तो मरते हुए को भी जीवित करदे ऐसा कहा जाता है इसके विषय में ---कुण्डलिनी नाम को सार्थक करती है ये बेल --सचमें नवांकुर ऐसे लग रहे हैं मानो सुषुप्त कुण्डलिनी जागृत हो गयी हो --सचमुच अमृता --मेरी आज की ख़ुशी सभी स्नेहिल मित्रों के साथ सार्थक हो ----
गिलोय [ टीनोस्फोरा कार्डीफोलिया ] , अमृता जीवन्तिका , गुडुची , छिन्नरुहा ,कुण्डलिनी , चक्रांगी , मधुपर्ण ---और भी न जाने कितने नाम और उतने ही गुण |ज्वर के लिये तंत औषधी | मेरे घर में ज्वर होने पे तुरंत गिलोयका काढ़ा दिया जाता है ,शायद मेरा विश्वास ; ज्वर उतर भी जाता है | सरल शब्दों में कहा जाए तो लाख रोगों की एक दवा --पर आज मैं कोई आयुर्वेदिक पोस्ट नही लिख रही --ये एक चमत्कार ( आज ही देखा ) बयाँ कर रही हूँ --वो चमत्कार जहाँ ईश्वर के दर्शन होते हैं ''जाको राखे साइयां मार सके न कोई '' जिजीविषा --जो सब प्रभू की कृपा के कारण ही हो सकती है ----
''दशरथ पुत्र जन्म सुनी काना | मानहुं ब्रह्मा नन्द सामना ||
परम प्रेम मनपुलक सरीरा | -----कहा बोलाई बजावहूँ बाजा ||''
पुत्र जन्म की सूचना दशरथ जी के लिए ब्रह्म को पा लेने का आनन्द ही थी , अब उससे बड़ा भी कोई आनन्द हो सकता है --जी हाँ ---सबके साथ उस आनन्द को बाँटना ---आज मैं भी बाँट रही हूँ ये आनन्द --इसे आप सभी सुधीजन मेरी बेवकूफी भी समझ सकते है --पर मूर्खा हूँ तो हूँ ---
2014 में बच्चे बाहर थे--एक महीने के लिए अकेली थी , तभी तेजज्वर और फ्लू ने जकड़ लिया ,आस-पास डेंगू फैला था | जब दो तीन बार बेहोशी आ गयी तो पपीते के पत्ते मंगवाए काम वाली से और रस पीना शुरू किया ,दो तीन दिन में ज्वर उतर गया | मैं कुछ दिनों के लिए हरिद्वार आ गयी | भाई के घर में गिलोय की बेल है --पत्ते भी खाए और काढ़ा भी पिया ,आते हुए कुछ कलमें लेती आई और गमले में रोप दीं --यही बेल जिसका चित्र मैंने डाला है --शान से लहरा रही है अब | कुछ टहनियां मैंने रख लीं और भूल गयी ,आज रद्दी निकाल रही थी तो एक कार्टन से गिलोय की वो भूलीबिसरी टहनी मिली | दो वर्ष तक यूँ ही पड़ी टहनी -- उसमे नये पत्ते एवं दो रस्सी सी जड़ें देख मेरी तो ख़ुशी और आश्चर्य से चीख ही निकल गयी --मुहं से बस यही निकला जाको राखे साइयां ,--इसी लिए इसका नाम अमृता है --खुद में इतनी जिजीविषा है तभी तो मरते हुए को भी जीवित करदे ऐसा कहा जाता है इसके विषय में ---कुण्डलिनी नाम को सार्थक करती है ये बेल --सचमें नवांकुर ऐसे लग रहे हैं मानो सुषुप्त कुण्डलिनी जागृत हो गयी हो --सचमुच अमृता --मेरी आज की ख़ुशी सभी स्नेहिल मित्रों के साथ सार्थक हो ----
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