सावन का महिना ,भोले का महिना कांवड़ यात्रा का महिना ,पार्वती के दुल्हिन बनने सजने का महिना ---सब कुछ वैसा ही पर हर वर्ष नया -नया------एक बार फिर के अंतर्गत --यादें --
सावन में बस भोला बम ---
''पार्वती तप कीन्ह अपारा ,करहुँ तासु अब अंगीकारा। ''
देवताओं की विनती शिव से ,और शिव का प्रसन्न होके कहना --
''ऐसे ही होऊ कहा सुख मानी ''-
सप्तऋषियों का हिमालय के प्रसाद में आना और पार्वती की परीक्षा ---
देखो तुमने हमारा कहना नहीं सुना ,अब शिव ने काम को भस्म कर दिया ,तुम्हारा प्रण झूठा हो गया --पार्वति मुस्कुराते हुए बोलीं ---
''तुम्हरे जान काम हर जारा ,अब लगि शम्भू रहे सविकारा।
हमरे जान सदा शिव योगी ,अज अनवद्ध्य अकाम अभोगी ''
कितना विशवास जगदम्बा का ,सप्तऋषियों ने उमा को आशीष दे पत्रिका मिलाई और ---''जस दूलह तस बनी बराता ''----रामचरितमानस में भव्य वर्णन शिव-पार्वति विवाह का। जी हाँ महीना सावन का तथा शिव बारात का , --बस इसी लिए सावन शिव मय ,चारों ओर ,नम:शिवाय और बम-बम भोले की गूंज।
महाभारत में भी कृष्ण जब शिव की तपस्या कर वर मांगने हेतु हिमालय में गए --तो शिव स्थान का कितना सुंदर वर्णन कृष्ण के मुहं से ------
''कृष्ण कहते हैं ,पहुंचते ही मैंने हिमालय को तपस्या के अनुकूल पाया ,वहां पर दिव्य आश्रम ,ब्राह्मी से शोभायमान थे। धव ,कुकुभ [अर्जुन ],कदम्ब ,नारियल [जो अब समुद्र के तट पे पाये जाते हैं ],कुरबक ,केतक ,जामुन पाटल बड़ वरुणक ,वत्सनाभ ,बिल्व ,सरल ,कपित्थ ,प्रियाल ,साल ,ताल ,बेर ,कुन्द ,पुन्नाग।,अशोक ,आम्र ,अतिमुक्त ,महुवा ,कोविदार ,चम्पा था कटहल ,केले के कुञ्ज ,नाना प्रकार के पशु पक्षी ,सर्प ,हाथी ,शेर , विशालकाय पशु ,झर -झर झरते झरनों की शीतल फुहारें ,कई तरह की नदिया और भव्य जान्हवी ,नाना प्रकार के फूलों तितलियों भर्मरों से गुंजित वो वन जिसके विषय में दूसरे लोग सोच भी नहीं सकते --''अचिन्त्यं मनसाप्यन्यै ''---अनेकानेक सरोवरों से अलंकृत पुष्पों से आच्छादित विशाल अग्निशालाओं से विभूषित था ---और फिर महाभारत में शिव की पूजा अर्चना तपस्या कैसे की कृष्ण ने सब विस्तार से --साथ ही उमा का आशीर्वाद कृष्ण को --
''-एवं भविशत्यमरप्रभाव नाहं मृषा जातु वदे कदाचित।
भार्या सहस्त्राणि च षोडशैव तासु प्रियत्वं च तथाक्षयं च।
प्रीतिं चाग्रयां बान्धवानाम सकाशाद ददामि तेहं वपुष:काम्यतां च।
भोक्ष्यन्ते वै सप्ततीं वै शतानि गृहे तुभ्यमतिथीनां च नित्यं ''-------जगद्जननी अम्बे का आशीष ठीक वैसे ही जैसे माँ पुत्र को देती है ----तुम सदैव कमनीय बने रहो ,बंधु -बांधवों से प्रसन्नता मिले ,तुम्हारी सोलह हजार रानियाँ और शक्तिशाली पुत्र हों ,घर अक्षय धनधान्य से भरा रहे और प्रतिदिन सातहजार अतिथि तुम्हारे घर में भोजन करें। -----
कृष्ण की विनय ---
'' त्वत्तो जातानि भूतानि स्थावराणि चराणि च।
त्वया सृष्टमिदं कृत्स्नं त्रैलोक्यं सचराचरम् ''-----आज का मेरा शिवार्चन ------
यही सुंदरता है हमारे शास्त्रों की ,ब्रह्मा ,विष्णु महेश सदैव एक दूसरे की पूजा अर्चना करते एक दूसरे के प्रति श्रद्धा रखते हुए देखे जा सकते हैं ------आज सावन के पहले सोमवार को महाभारत ,रामायण में शिवार्चन का ---आनंद लीजिये सभी --आशीष है माँ पार्वती का , सभी का अधिकार है उसपे सो शेयर कर दिया ,कृष्ण के साथ ही मैंने भी अपने लाडले के लिए एक रानी की अर्जी लगाई ---नम:शिवाय --सत्यं शिवं सुंदरम का बोलबाला हो ,सारे देश में और शिव की नगरी उत्तराखंड में --वो उत्तराखंड जिसका मनोरम वर्णन कृष्ण ने किया पूण: अपने वैभव को प्राप्त हो ---वृक्षारोपण से --
सावन में बस भोला बम ---
''पार्वती तप कीन्ह अपारा ,करहुँ तासु अब अंगीकारा। ''
देवताओं की विनती शिव से ,और शिव का प्रसन्न होके कहना --
''ऐसे ही होऊ कहा सुख मानी ''-
सप्तऋषियों का हिमालय के प्रसाद में आना और पार्वती की परीक्षा ---
देखो तुमने हमारा कहना नहीं सुना ,अब शिव ने काम को भस्म कर दिया ,तुम्हारा प्रण झूठा हो गया --पार्वति मुस्कुराते हुए बोलीं ---
''तुम्हरे जान काम हर जारा ,अब लगि शम्भू रहे सविकारा।
हमरे जान सदा शिव योगी ,अज अनवद्ध्य अकाम अभोगी ''
कितना विशवास जगदम्बा का ,सप्तऋषियों ने उमा को आशीष दे पत्रिका मिलाई और ---''जस दूलह तस बनी बराता ''----रामचरितमानस में भव्य वर्णन शिव-पार्वति विवाह का। जी हाँ महीना सावन का तथा शिव बारात का , --बस इसी लिए सावन शिव मय ,चारों ओर ,नम:शिवाय और बम-बम भोले की गूंज।
महाभारत में भी कृष्ण जब शिव की तपस्या कर वर मांगने हेतु हिमालय में गए --तो शिव स्थान का कितना सुंदर वर्णन कृष्ण के मुहं से ------
''कृष्ण कहते हैं ,पहुंचते ही मैंने हिमालय को तपस्या के अनुकूल पाया ,वहां पर दिव्य आश्रम ,ब्राह्मी से शोभायमान थे। धव ,कुकुभ [अर्जुन ],कदम्ब ,नारियल [जो अब समुद्र के तट पे पाये जाते हैं ],कुरबक ,केतक ,जामुन पाटल बड़ वरुणक ,वत्सनाभ ,बिल्व ,सरल ,कपित्थ ,प्रियाल ,साल ,ताल ,बेर ,कुन्द ,पुन्नाग।,अशोक ,आम्र ,अतिमुक्त ,महुवा ,कोविदार ,चम्पा था कटहल ,केले के कुञ्ज ,नाना प्रकार के पशु पक्षी ,सर्प ,हाथी ,शेर , विशालकाय पशु ,झर -झर झरते झरनों की शीतल फुहारें ,कई तरह की नदिया और भव्य जान्हवी ,नाना प्रकार के फूलों तितलियों भर्मरों से गुंजित वो वन जिसके विषय में दूसरे लोग सोच भी नहीं सकते --''अचिन्त्यं मनसाप्यन्यै ''---अनेकानेक सरोवरों से अलंकृत पुष्पों से आच्छादित विशाल अग्निशालाओं से विभूषित था ---और फिर महाभारत में शिव की पूजा अर्चना तपस्या कैसे की कृष्ण ने सब विस्तार से --साथ ही उमा का आशीर्वाद कृष्ण को --
''-एवं भविशत्यमरप्रभाव नाहं मृषा जातु वदे कदाचित।
भार्या सहस्त्राणि च षोडशैव तासु प्रियत्वं च तथाक्षयं च।
प्रीतिं चाग्रयां बान्धवानाम सकाशाद ददामि तेहं वपुष:काम्यतां च।
भोक्ष्यन्ते वै सप्ततीं वै शतानि गृहे तुभ्यमतिथीनां च नित्यं ''-------जगद्जननी अम्बे का आशीष ठीक वैसे ही जैसे माँ पुत्र को देती है ----तुम सदैव कमनीय बने रहो ,बंधु -बांधवों से प्रसन्नता मिले ,तुम्हारी सोलह हजार रानियाँ और शक्तिशाली पुत्र हों ,घर अक्षय धनधान्य से भरा रहे और प्रतिदिन सातहजार अतिथि तुम्हारे घर में भोजन करें। -----
कृष्ण की विनय ---
'' त्वत्तो जातानि भूतानि स्थावराणि चराणि च।
त्वया सृष्टमिदं कृत्स्नं त्रैलोक्यं सचराचरम् ''-----आज का मेरा शिवार्चन ------
यही सुंदरता है हमारे शास्त्रों की ,ब्रह्मा ,विष्णु महेश सदैव एक दूसरे की पूजा अर्चना करते एक दूसरे के प्रति श्रद्धा रखते हुए देखे जा सकते हैं ------आज सावन के पहले सोमवार को महाभारत ,रामायण में शिवार्चन का ---आनंद लीजिये सभी --आशीष है माँ पार्वती का , सभी का अधिकार है उसपे सो शेयर कर दिया ,कृष्ण के साथ ही मैंने भी अपने लाडले के लिए एक रानी की अर्जी लगाई ---नम:शिवाय --सत्यं शिवं सुंदरम का बोलबाला हो ,सारे देश में और शिव की नगरी उत्तराखंड में --वो उत्तराखंड जिसका मनोरम वर्णन कृष्ण ने किया पूण: अपने वैभव को प्राप्त हो ---वृक्षारोपण से --
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