स्मृतियों के कुछ स्वर्णिम पल ,
कुछ संघर्षों के ,
कुछ पाने के ,
कुछ खोने के .
ये स्मृतियाँ ही अब तो मेरे जीवन की साथी हैं ,
बंद कमरे में ले जा कर फिर आंगन में ले आती हैं .
अपने जो छोड़ चले मुझको ,संग हमेशा स्मृति में ,
जुगनू से जगमग रहते हैं ,मेरे मन के अंधियारों को .
भूलें जो बात पुरानी ,जीवन यांत्रिक हो जाएगा ,
भावों भरा स्नेहिल मन ,पत्थर बन कर रह जाएगा ,
बीते पल थाती मेरी ,संग प्रतिदिन उनके मैं मुस्काती ,
वो भाई बहिन की अठखेली ,सखियों संग खिल -खिल खिलना ,
माँ -पिता का स्नेह कवच ,सीख सिखाना गुरुजन का ,
वो संग पिया का !वो स्वर्णिम पल ,बादल के पंख लगा उड़ना ,
वो घर में नव जीवन आना ,ममता से घर का भर-भर जाना ,
होली हो या दीवाली ,सुख हो या दुःख की काली रातें ,
यदि मैं इन सब को भूलूं ,तो निज को ही मिटा चलूँ ,
स्मृतियों में ही तो सृष्टि समायी ,आदि -अंत सब जगमग मन में ,
स्मृतियों में ही वो !बचपन के पल , वो गंगा जल निर्झर पावन ,
वो यमुना की सांवल धारा ,वो चीड़ बुरांस के सुरभित वन
वो विश्वनाथ का पावन मंदिर ,वो दुर्गा का शक्ति स्थल ,
वो चीड़ के वन की सन-सन में,हाथ तुम्हारे हाथों में देकर ,
सूखी पीरुल पे चढ़ते चढ़ते अनगिनत बार रपटन ,फिसलन।
संग तुम्हारे जो था जीवन ,अब उसको हर पल मैं जीती हूँ ,
पट स्मृतियों के खोल जरा ,जुगनू सी टिम -टिम यादों से ,
एक सुनहरी स्मृति का जुगनू मैं प्रतिदिन चुनती हूँ।
ये स्मृतियाँ हैं साँसें मेरी ,जीवन भर साथ निभाएंगी
जिस दिन पंछी उड़ जाएगा ,साथ मेरे ये जायेंगी। ........आभा
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