Friday, 22 March 2013

   स्मृतियों के कुछ स्वर्णिम पल ,
          कुछ संघर्षों के ,
          कुछ पाने के ,
          कुछ खोने के .
    ये स्मृतियाँ ही अब तो मेरे जीवन की साथी हैं ,
    बंद कमरे में ले जा कर फिर आंगन में ले आती हैं .
    अपने जो छोड़ चले मुझको ,संग हमेशा स्मृति में ,
    जुगनू से जगमग रहते हैं ,मेरे मन के अंधियारों को .
   भूलें जो  बात पुरानी  ,जीवन यांत्रिक हो जाएगा ,
   भावों भरा स्नेहिल मन ,पत्थर बन कर रह जाएगा ,
   बीते पल थाती मेरी ,संग प्रतिदिन उनके मैं मुस्काती ,
   वो भाई बहिन की अठखेली ,सखियों संग खिल -खिल खिलना ,
  माँ -पिता का स्नेह कवच ,सीख सिखाना गुरुजन का ,
  वो संग पिया का !वो स्वर्णिम पल ,बादल के पंख लगा उड़ना ,
  वो घर में नव जीवन आना ,ममता से घर का भर-भर जाना ,
  होली हो या दीवाली ,सुख हो या दुःख की काली रातें ,
  यदि मैं इन  सब को भूलूं ,तो निज को ही मिटा चलूँ  ,
   स्मृतियों में ही तो सृष्टि समायी ,आदि -अंत सब जगमग मन में ,
   स्मृतियों में ही  वो !बचपन के पल  , वो गंगा जल निर्झर पावन ,
   वो यमुना की सांवल धारा  ,वो चीड़ बुरांस के सुरभित वन 
   वो विश्वनाथ का पावन मंदिर ,वो दुर्गा का शक्ति स्थल ,
   वो चीड़  के वन की सन-सन में,हाथ तुम्हारे हाथों में देकर ,
   सूखी पीरुल पे चढ़ते चढ़ते अनगिनत बार रपटन  ,फिसलन।  
   संग तुम्हारे जो था जीवन ,अब उसको हर पल मैं जीती हूँ ,
    पट स्मृतियों के  खोल जरा ,जुगनू सी टिम -टिम  यादों से ,
    एक सुनहरी स्मृति का जुगनू मैं प्रतिदिन चुनती हूँ।
    ये स्मृतियाँ हैं साँसें मेरी ,जीवन भर साथ निभाएंगी 
    जिस दिन पंछी उड़ जाएगा ,साथ मेरे ये जायेंगी। ........आभा

No comments:

Post a Comment