आज होलिका दहन है .....कहते हैं होलिका को वरदान था अग्नि में न जलने का , या शायद उसके पास अग्नि में न जलने वाले वस्त्र होंगे ,या आग में न जलने के वस्त्र बनाने वाली टेक्नोलॉजी होगी जिसका उसने पेटेंट करवा दिया होगा और अपने निजी स्वार्थ के लिए ही उपयोग करती होगी , जो भी हो इस घटना से समाज के विकसित होने का ,और शक्तियों के आतातियों के हाथ में पड़ने का प्रमाण तो मिलता ही है ,,और जब भी विज्ञान ,वरदान से विनाश की ओर जाता है तो सामाजिक उथल -पुथल मचती है ,जब सत्ता पे आरूढ़ चंदलोग समाज को बंधक बना कर दारुण स्थिति में पहुंचाकर ,जनता का मनोबल तोड़ कर उसे कुंठित करने का कुचक्र रचते हैं ताकि सारे सुख वे स्वयम ही भोग सकें ,तो शायद सत्ता के मद में चूर लोग स्वयम भी भीरु और कुंठित हो जाते है .सिमित दायरे में घूम के अपने को महान समझने लगते है ,,ऐसे में प्रकृति ही समाधान खोजती है और पैदा होता है एक निडर ,निर्भीक ,अहंकार रहित सत्यान्वेषी बुराई को जड़ से उखाड़ फैंकने वाला प्रह्लाद ,जो बुराई की गोद में ही बैठ कर उसका विनाश करने की ताकत रखता है .
होलिका दहन आताताई ताकतों के गर्व के मर्दन का ही पर्व है। शायद! होलिका ने गर्व में चूर होकर पूरे अग्निशामक वस्त्र ना पहन कर केवल दुशाला ही डाल लिया था अपने ऊपर ,या शायद! ये प्रभु की प्रेरणा थी ,कि जैसे ही हवा चली दुशाला प्रह्लाद के ऊपर आ गिरा और होलिका जल गई ,बुराई पे अच्छाई की विजय ,असत्य पे सत्य की विजय ,,पर ये हुआ तब ही जब प्रह्लाद ,निडर हुआ ,सत्य की राह चला ,प्रलोभनों को छोड़ कर अपने लक्ष्य पे दृढ रहा ,समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने के लिए अपने शक्तिशाली पिता से भी टकराने से नहीं हिचका ,,आज फिर से समाज में प्रह्लाद की आवश्यकता है ,,,एक प्रह्लाद से काम नहीं चलेगा ,,,आज तो हर मोड़, हर चौराहे पे हिरन्याकश्य्प और होलिकाएं हैं हम सब को प्रहलाद बनना होगा ,अपने अंदर बैठे प्रह्लाद को जगाना ही होगा ,तभी ईश्वरीय शक्तियां भी साथ देंगी ,,काम कठिन नहीं है ,,क्यूंकि लड़ाई हमें अपने भीतर बैठे हिरान्याकश्य्पों और होलिकाओ से ही लड़नी है ,,हम सब प्रहलाद बनने की और अग्रसित होवें ,,,,,ये होलिका -दहन का पर्व हम सब को बल दे ,,देश समाज सुखी हो ,,,और आप सबके जीवन में खुशियाँ आयें ,,,शुभकामनाओं सहित .....आभा ...
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