फूलदेई संगरांद [संक्रांति ] पहाड़ों में मनाया जाने वाला एक ऐसा पर्व जिसको मानाने का उत्तरदायित्व केवल बच्चों के कोमल कन्धों पे ही होता है वो भी कन्याओं के [हाँ वे अपने भाइयों को अपनी टोली में शामिलकरती हैं ] माता -पिता तो केवल संस्कारित करते हैं बच्चों को ।कन्याओं के द्वारा सबकी देहरीयों में सुबह -2 फूल रखे जाते हैं ।
फूलदेई संक्रांति ,फूलों से सजी प्रकृति के रंग ,सबकी देहरी में पहुंचें । सुबह सवेरे जब द्वार खुले ,देहरी पुष्पों से सजी हो और सुरभि घर में फ़ैल जाए .सायंकाल से ही कन्यायें अपनी -2 टोकरियां सजा लेती है ,प्रातः सूर्य -नारायण के आगमन से पहले पास पड़ोस व् आत्मीय स्वजनों के घरों की देहरी में फूल रखना -----शायद बचपन से ही सुबह उठना बच्चों को भाने लगे तो प्रकृति और फूलों के माध्यम से सिखाने का प्रयास -------------,शायद प्रकृति की सुन्दरता और सुरभि आपके घर तक पहुंचे और प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन की भावना आपके मन में भी जागृत हो --------------------------,शायद निश्छल और निष्पाप बचपन के द्वारा रखे गए पुष्प आपके घर और मन का कलुष मिटाने में सहायक हो ,-----------------------------------या शायद कन्याओं के द्वारा पुष्प रखवाना ---प्रकृति और कन्या के महत्व से अवगत करवाना समाज को । दोनों का संरक्षण और संवर्धन का अनूठा पर्व है यह ।
हमारी संस्कृति में मनाये जाने वाले इन पर्वों के कई प्रयोजन होते थे ,जिन्हें कालान्तर में हम भूल चुके हैं ,आज आवश्यकता इन पर्वों के पुन:स्थापन और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की है ।फूल संक्रांति के लिए हर घर में कन्या होगी और हर चार कदम पे फुलवारी होगी कल्पना कीजिये ---हर मुहल्ला ,गाँव ,क़स्बा ,शहर महकेगा फूलों की सुरभि से और हर घर चहकेगा कन्याओं की किलकारी से -----क्या हम अपने पूर्वजों के सामान दूरन्देशी नहीं हो सकते ??/------फूलदेई संक्रांति सबके घरों को महकाए और कन्याओं का संवर्धन हो ,सब का शुभ हो ----------आभा --------
फूलदेई संक्रांति ,फूलों से सजी प्रकृति के रंग ,सबकी देहरी में पहुंचें । सुबह सवेरे जब द्वार खुले ,देहरी पुष्पों से सजी हो और सुरभि घर में फ़ैल जाए .सायंकाल से ही कन्यायें अपनी -2 टोकरियां सजा लेती है ,प्रातः सूर्य -नारायण के आगमन से पहले पास पड़ोस व् आत्मीय स्वजनों के घरों की देहरी में फूल रखना -----शायद बचपन से ही सुबह उठना बच्चों को भाने लगे तो प्रकृति और फूलों के माध्यम से सिखाने का प्रयास -------------,शायद प्रकृति की सुन्दरता और सुरभि आपके घर तक पहुंचे और प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन की भावना आपके मन में भी जागृत हो --------------------------,शायद निश्छल और निष्पाप बचपन के द्वारा रखे गए पुष्प आपके घर और मन का कलुष मिटाने में सहायक हो ,-----------------------------------या शायद कन्याओं के द्वारा पुष्प रखवाना ---प्रकृति और कन्या के महत्व से अवगत करवाना समाज को । दोनों का संरक्षण और संवर्धन का अनूठा पर्व है यह ।
हमारी संस्कृति में मनाये जाने वाले इन पर्वों के कई प्रयोजन होते थे ,जिन्हें कालान्तर में हम भूल चुके हैं ,आज आवश्यकता इन पर्वों के पुन:स्थापन और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की है ।फूल संक्रांति के लिए हर घर में कन्या होगी और हर चार कदम पे फुलवारी होगी कल्पना कीजिये ---हर मुहल्ला ,गाँव ,क़स्बा ,शहर महकेगा फूलों की सुरभि से और हर घर चहकेगा कन्याओं की किलकारी से -----क्या हम अपने पूर्वजों के सामान दूरन्देशी नहीं हो सकते ??/------फूलदेई संक्रांति सबके घरों को महकाए और कन्याओं का संवर्धन हो ,सब का शुभ हो ----------आभा --------
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