Monday, 25 November 2013


Shradhanjali....

आराधन को प्रिय तेरे !
हृदय शूल के अक्षत लायी हूँ |
भावों के चंदन से महका कर !
मैं, तुझे सजाने आयी हूँ |

साँसों की डोरी के अगरु जला ,
सुरभित साँसों से महका कर ,
दीप जला  स्नेह सुधा का ,
अश्रु जल का तेल डाला |
अभिषेक तेरा अश्रु जल-कण से ही करने आयी हूँ |
प्रिय तेरे आराधन को मैं हृदय शूल के अक्षत लायी हूँ ||
रंग- बिरंगे हंसते- रोते ,
कुछ काँटों और कुछ पराग से ,
चुन-चुन कर स्वप्न सुमन ,
मैं !भावों की क्यारी से लायी हूँ |
दो नयन  पुजारी तेरे हैं ,
,देह पुजारन है तेरी |
उस पर  करुना का शंख बजा ,
आरत हरण को आई हूँ |
जिन क्षणों में चले गये तुम ,
वे क्षण ही हैं , जीवन धन मेरे |
सुमधुर यादों की माला ही ,
अर्चन वंदन को लायी हूँ |
प्रिय तेरे आराधन को में हृदय शूल के  अक्षत लायी हूँ |
भावों के चन्दन से महकाकर मै तुझे सजाने  आयीहूँ .||_________________________________आज दो वर्ष हो गये अजय को महाप्रयाण पे गये हुए |एक- एक पल ,एक- एक कल्प के मानिंद बीता |अभी  न जाने कितना औरजीना लिखा है |वो स्वर्ण पालकी तो सब को ही चढ़नी है एक दिन पर जो पीछे रह जाता है उसे इसकी तपन के ताउम्र झुलसना पड़ता है | स्थितप्रज्ञ होना तो सब चाहते है," पर " |जीना तो है ही और जीना है तो यादें भी है |२५ नवम्बर वो दिन जब हम दोनों का गठबंधन हुआ| .सेहरे और घूँघट का  विस्मयकारी और मंगल वातावरण ____और २५ नवम्बर ही वो दिन जब लूट गये श्रृंगार सभी बाग़ के बबूल से |यही होनी है क्यूंकि अनहोनी तो होती ही नहीं |  जाने वाले तू खुश रहे जहाँ भी हो | तू मोक्ष का आग्रही था |दुनिया को बाजीचायेइत्फाल समझता था ;मुझे  मालूम है तू हरी चरणों में ही होगा | क्यूंकि बिना राग ,द्वेष ,लालच के व्यक्ति इस संसार में तो विरले ही होते है ,इसी लिए तुझे सब सतयुग का आदमी कहते थे ,और इसी लिए तेरी गोलोक में भी आवश्यकता आन पड़ी | हमारे लिए तुम यहीं हो सदैव हमारे मन मंदिर में ,सदैव हमें सँभालते हुऐ |  आसपास तिरती
हवाओं में तुम्हारी खुशबु का अहसास हर पल रहता है | खुश रहो और अपने मन का पद पाओ ईश्वर चरणों में | यादें नहीं कह सकती तुम तो हर पल में ही शामिल हो पर आज जिस पल  छोडके गये थे उस एक पल को  जज्ब करने की कोशिश में ही जीवन बीत जाएगा श्रधान्जली " अजय " !  ________________आभा ______________

3 comments:

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  2. रज कण सी इस सृष्टि पुलिन पर
    एक अजय सागर महान है।
    सूर्य किरण आभा से भाषित
    हर तरंग को मिले प्राण है ॥

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    1. आशीष और ढेर सा प्यार विवेक .

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