मेरे घर गौरेया आई
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नन्हीं- नन्हीं दो गौरेया ,
बड़े सवेरे मुझे जगातीं ,
चीं -चीं , चूं -चूँ ,
टीं -टीं , टुट -टुट .
उनींदी आँखों का स्वप्न सुहाना ,
भटका कोई गीत निशा का ,
ज्यूँ मेरे द्वारे पे आया .
मेरे दरवाजे देहरी पर ,
शहनाई सी मुझे सुनाती .
नन्ही -नन्ही दो गौरेया ,
बड़े सवेरे मुझे जगातीं .
नाम एक का गौरी है ,
दूजी को चितकबरी कहती मैं
जब दोनों आतीं द्वारे पर
उनके रंग में रंग जाती मैं
मुझसे हैं वो बातें करती ,
मन में पुलक अधरों में चितवन ,
मधुर -मधुरतम ,चीं -चीं ,चूं -चूं ,
फुदक -फुदक कर नाच दिखाती
मन मयूर पुलकित हो जाता
गौरेया की चीं -चीं ,चुन -चुन में .
सरस फूल सा खिल खिल जाता ,
प्रतिदिन मैं मिलती हूँ इनसे ,
बाट जोहती हूँ मैं इनकी .
दूँ मैं जब आवाज उन्हें तो
दौड़ी आती हैं दोनों भी ,
छोटे -छोटे पाखी हैं ये ,
इन्हें बचाना ही होगा
अपनी बालकनी के कोने में
इन्हें बसाना ही होगा
जब बच्चे पास नहीं होंगे ,
ये ही साथ निभाएंगे ,
फुदक -फुदक कर चीं -चीं चूं से
ये ही मन बहलाएँगे ..........................
.......आभा ...............................