कैलेंडर के पन्ने बदलते- बदलते साल कब बदल जाता है पता ही नहीं चलता है ।
हर आने वाले वर्ष में शुभ -कामनाओं का आदानप्रदान एक रस्म अदायगी होता है ,
वर्ना सबकुछ तो वाही रहता है । यदि हमारी शुभ -कामनाओं में कुछ दम होता तो क्या
करोड़ों शुभकामनायें एक नन्ही सी जान को न बचा पातीं मेरे लिए तो व्यक्तिगत रूप से
पिछले दोनों वर्ष विध्वंस कारी रहे हैं ,फिर भी कहते हैं .............
पत्थर में फूल खिला, दिल को इक ख्वाब मिला,
क्यूँ टूट गये दोनों ,इसका न जवाब मिला ,
जीवन फिर भी जीवन जीने को मचलता है ,,,
ये जीवन है तो चलेगा भी और शुभ की चाहना भी होगी ,क्यूंकि बलिदान ,अवसान उस लहर की तरह है
जो तट पर आकर मिटती है और करुणा की संवाहक बन कर दूसरों को प्रेरणा देती है ।हमें सोचना है की दुःख में डूबे
या अवसान को निर्माणों का द्योतक बना दें , आज जो मशाल समाज में युवाओं ने थामी है वो बुझे ना जलती रहे ,
कोपलों पर गिरी ये आंसुओं की रेख सूखे ना तब तक जब तक शा शक वर्ग का गर्वोनत सर ना झुक जाए ।देश हमारा है ................
चन्द लोग इसे बंधक नहीं बना सकते हैं ,युवा -शक्ति जागी है ,यही आने वाले वर्ष के लिए शुभ सूचना है ,
जहाँ युवा जागते हैं धीरे धीरे नव निर्माण होता ही है ।दुःख के सजल दृगों में ही हम नई मधुर कहानी लिखने की तैयारी कर रहे हैं ,
आशा है सफलता मिलेगी ,पंथ पथरीला है ,पर युवाओं के स्वेद-कण विधुत बन अन्तरिक्ष से बरसेंगे और उनकी चिंगारी भस्म कर देगी
देश के भस्मासुरों को ............................शु
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