Wednesday, 2 January 2013


श्रधान्जली एक जांबाज कलिका को जो लड़ी और समाज को जगा गयी 
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मिट चली मैं ,छिप गयी मैं ,
मौन जग की दामिनी मैं ,
बादलों के पटल पे भी ,
दामिनी की हूँ चमक मैं ।
वहशियों ने मुझको घेरा ,
फिर भी दमकी दामिनी सी
और मिट कर भी फलक में ,
धर्म विद्धुत बन खड़ी हूँ ,
याद है जग को कहानी ?
बात है वह कुछ पुरानी ,
जब कंस ने था मुझको पटका!!! ,
करा गृह में माँ -पिता थे
कंस से विद्रोह करते !!
था वो शाशक ,था वो गर्वित ,
सत्ता के मद में चूर था वो ,
कृष्ण के आने की आहट ,
बन दामिनी मैंने ही उसको थी सुनायी ।
आज फिर वो ही समय है ,
वेदनाएं राह पर हैं !!!!!!
उर -उर में विद्दुत सी जगी है ,
अवसान मेरा आज जग में ,
अबला का संबल बनने चला है ,
क्या पता मुझको की ,हरेक युग में ,!!!!!!

मैं ही बिधूँगी ,मैं ही गलूंगी ,
पर कंस से इन शाशकों का ,
गर्व विगलित मैं ही करुँगी ।
वेदना के हैं क्षण जो मेरे ,
साँसों से अपनी पोंछ देना ,
अबला बने सबला यहाँ अब ,
सृजन हो नव इस जगत में ,
बस यही व्रत तुमको है लेना ।
उच्छ्वास संघषों की मेरे ,
बन आंधियां छायें गगन में ,
इक आस जो अब जग चुकी है ,
धूमिल न पड़ जाए हृदय में ,
हैं लुटेरे सबल पर इस ,
मोम की पिघलन है काफी ,
मरण के अंतिम क्षणों में
अमरता ये है सिखाती .
जो रुक गए कदम अब तो ,
फिर कभी न उठ सकेंगे ,
कंस के विध्वंस को ,कृष्ण! ,
अब तुम को है बनना।
हारना मत भ्रांतियां हैं ,
विध्वंस हैं ,तम है घनेरा ,
तम में तड़ित मैं बन चुकी हूँ ,
राह तुमको खोजनी है .
दो यदि श्रधा सुमन तो ,
अश्रु जल से सींच देना ,
पर न हो करुणा का जल वो ,
ज्वाल हो चिंगारियां हों ................
.......................................आभा ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

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