प्रश्न है न अब कोई भी ;
शून्यता है बस नयन में .
आंधियां सब रुक गयी हैं ;
विध्वंस बाकी मन गगन में .
शांत तूफां हो गए ,
नव सृजन !करना ही होगा ;
पंथ पथरीला है मेरा !
पांव घायल हो चुके हैं .
उस पर ज्वालाओं के मुझको ;
लोक दिखता है तुम्हारा ,
तप अपर्णा सा करुँगी !
तब ही तो शिव मिलन होगा !!!!!
..विध्वंस ,सृजन ,मिलन प्रकृति का शाश्वत नियम ....आभा ....
sundar rachna,,,,,,,,,,,,,,, prshn ka mit jaana svayam ko paa jaana,,,,,,,,,,,,,,,,
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