Monday, 7 January 2013


 14 महीने हो गये, अजय को गये ,मैं जीने की कोशिश कर रही हूँ ब्रह्म का एक दिन हमारे एक कल्प के बराबर होता है ये सही है शायद वो भी तो अकेला ही होता है श्रधान्जली अजय को.
......................................
गहन अन्धकार ,निशब्द मौन ,हृदय तल में .
शब्द हो रहे हैं तिरोहित सारे ,
शाश्वत मौन ,
शांत ,स्व -सत्ता .
स्वर -हीन संगीत ,
लय -बद्ध शांति ,
विगत की सुहास ,
गहन मौन ,
कोई नहीं है ,
मै भी नही,
रिक्त नहीं हूँ मैं ,,
अलौकिक दिव्यता है ,
अस्तित्वमय मौन है ,
मन में सुवास है ,
जो अन- जानी सी है ,
संगीत का पवाह है ,
निशब्द मौन में ही सुना जा सकता है
एक आलोक जो अनोखा है ,\
शांत चित से ,
अंत:-चक्षुओं से ही देखा जा सकता है ,
मैने चखा है ,
अपने अंतर-जगत का स्वाद ,
परिपूर्ण ,असीम ,शाश्वत .
बस मैं ,सिर्फ मैं ही पहुँच सकती हूँ वहां ,
आहट! तेरे होने की है जहाँ ,
सुवास! हवाओं में तेरे होने की है जहाँ ,
मेरे मौन में है तू ,यही सच है ,
इसे ही जीना है ,
हृदय-तल में मौन स्थापना ,
संगीत-मय मौन ,
गहन मौन ,
लय -बद्ध शांति.
मधुर -स्वर -हीन संगीत
........................................
...............श्रधान्जली अजय को ...
...............आभा ...................

No comments:

Post a Comment