{ श्रधान्जली अजय }
****************
आया है मुझे फिर याद वो जालिम
गुजरा जमाना बचपन का
हाथों में तुम्हारा हाथ लिए
पीरुल से भरे उस जंगल में
चीड़ के लम्बे पेड़ों तले
दो कदम पहाड़ों पे चढ़ना
औ चार कदम रपट जाना
वो हाथ बढ़ा कर खींच लिया
औ दिया सहारा था मुझ को |
चल रहा पवन था सनन -सनन
मुदित बहुत था ! देख हमें
अनगिनत बार रपट चढ़ के
पेड़ों का लिए हुए संबल
पहुँच शिखर पे जाते जब
तो बैठ वहीँ साँसे गिनते औ -
घाटी में नीचे ताका करते -
दुनियाँ में बस हमीं खुश हैं -
ये भाव घुमड़ते थे मन में |
छेंती को, रंगते- रंगते -
रंग कितने जीवन में आये
वो रंग गये हैं धुंधला अब
उड़ चले समय बन के तुम भी |
सिक्के के दो पहलू सी
अब जीवन मंच पे रहती हूँ
इक पहलू में सारे करतब
इकमें यादों का सागर है
यादों के रंग न धुंधले हों
इन यादों को रंगती रहती हूँ |
कितने जीवन कितनी यादें
क्या सब सपनों में आ सकते हैं ?
मेरी अनंत की यात्रा को
साकार बना ये सकते है!
वो मेरी स्वर्णिम पालकी
बस सजने ही वाली है
फिर अनंत की यात्रा है
फिर मिलने की तैयारी है |
यादें सुख-दुःख की संघर्षों की
अपनों की परिवेशों की
सब साथ लिए ही आऊंगी
फिर शिखरों पर जो चढना है |
यादों के रंग न फीके हों
हर वक्त मैं चेतन रहती हूँ
रंगीन मेरी इन यादों संग
जीने की कोशिश करती हूँ -जीने की कोशिश करती हूँ ............आभा ........
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आया है मुझे फिर याद वो जालिम
गुजरा जमाना बचपन का
हाथों में तुम्हारा हाथ लिए
पीरुल से भरे उस जंगल में
चीड़ के लम्बे पेड़ों तले
दो कदम पहाड़ों पे चढ़ना
औ चार कदम रपट जाना
वो हाथ बढ़ा कर खींच लिया
औ दिया सहारा था मुझ को |
चल रहा पवन था सनन -सनन
मुदित बहुत था ! देख हमें
अनगिनत बार रपट चढ़ के
पेड़ों का लिए हुए संबल
पहुँच शिखर पे जाते जब
तो बैठ वहीँ साँसे गिनते औ -
घाटी में नीचे ताका करते -
दुनियाँ में बस हमीं खुश हैं -
ये भाव घुमड़ते थे मन में |
छेंती को, रंगते- रंगते -
रंग कितने जीवन में आये
वो रंग गये हैं धुंधला अब
उड़ चले समय बन के तुम भी |
सिक्के के दो पहलू सी
अब जीवन मंच पे रहती हूँ
इक पहलू में सारे करतब
इकमें यादों का सागर है
यादों के रंग न धुंधले हों
इन यादों को रंगती रहती हूँ |
कितने जीवन कितनी यादें
क्या सब सपनों में आ सकते हैं ?
मेरी अनंत की यात्रा को
साकार बना ये सकते है!
वो मेरी स्वर्णिम पालकी
बस सजने ही वाली है
फिर अनंत की यात्रा है
फिर मिलने की तैयारी है |
यादें सुख-दुःख की संघर्षों की
अपनों की परिवेशों की
सब साथ लिए ही आऊंगी
फिर शिखरों पर जो चढना है |
यादों के रंग न फीके हों
हर वक्त मैं चेतन रहती हूँ
रंगीन मेरी इन यादों संग
जीने की कोशिश करती हूँ -जीने की कोशिश करती हूँ ............आभा ........
Respected Aunty, i read your blog regularly. I find it insipiring. I miss those days and ao many things, which words can never accomodate. I have such lively memories. Sometimes i feel and live those moments when i am alone. I guess it is memories only which is truth, rest everything is just transitonal. Lots of love and reapect. Vishal
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