"" मौसम की ह्लचल होली का व्यंग ""
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मौसम का असर सभी प्राणियों पे पड़ता ही है | बदलती हवा में अब वाइरस जनित रोग अपरिहार्य हैं ,कोई सौभाग्य शाली ही इनसे बच पाता होगा | और वाइरस भी एक से एक खतरनाक ,जिनकी कोई दवा ही ईजाद नहीं हुई है -अपना जीवन चक्र पूरा करेंगे ही और खुद ही समाप्त होंगे | कुछ के लिए तो टीके ईजाद हो गये हैं पर अधिकतर से बचाव का तरीका तो सावधानी , शक्तिऔर सुरक्षा ही है ,आज कल हिन्दुस्थान की फिजां में ऐसा ही एक वाईरस तिर रहा है | चुनावी वाईरस ! जो पूरे देश को खतरनाक तरीके से प्रभाव में ले चुका है | ये वाईरस छिट -पुट में तो देश में रहता ही है हमेशा, पर हर पांच वर्ष में विकराल रूप धारण कर लेता है | ये चुनाव आयोग की एक सूचना से फैलता है और धीरे-धीरे सभी को अपनी चपेट में ले लेता है | इससे बचाव का कोई तरीका नहीं है | वैज्ञानिक अभी तक कोई टीका नहीं ईजाद कर पाए हैं | कितना ही बचियेआप इसकी चपेट में आयेंगे ही |
आपको यदि लिखने का शौक है तो लेखनी खुद ब खुद रंग जायेगी चुनावी माहौल में | होली के त्यौहार की आहट से फगुनाये हुए लोग , बुरा न मानने की परम्परा और चुनावी माहौल ,बौराने के लिए और क्या चाहिए | सो मैंने सोचा होली की इस बुरा न मानने की सदियों पुरानी सांस्कृतिक परम्परा की बहती धारा में मैं भी हाथ धो लू | अथ नेता चर्चा कथा ! ॐ नमो शुद्धम | ( "नमो "से जो भी अर्थ लगाना है, लगायें ;पाठकगण स्वतंत्र हैं ) शुद्ध होलूं ,ये जो कथा है इसमें लेखनी के अशुद्ध होने की सम्भावना रहती ही है | तो साहब चर्चा है आजकल के सबसे चर्चित चेहरों की -ये -हर गली ,कूचे ,मुहल्ले ,गाँव ,कस्बे ,शहर ,में छाये है | धूर्त ,मक्कार ,लम्पट ,भ्रष्टाचारी ,गुंडे , वोट रूपी मछली पे आँख गडाए श्वेत वस्त्र धारी बगुला भगत ,पलटूराम ,हरी लाल सफ़ेद टोपीवाले ,गमछेवाले , फूलवाले ,हाथ वाले ,हाथी वाले ,साईकलवाले ,झाडू वाले और भी न जाने कितने ,तीर ,कुर्सी ,साबुन ,कैंची अनेकों रूप रंग के नेते, हाथ जोड़ के घूम -घूम के भोली- भाली जनता को समझाने निकले है | बाबूजी पांलागी ,अम्मा सर पे हाथ रखदो बस ,भैया इबके नौकरी पक्की ,लाडो इब जो मुझे जितावेगी तो खूब घूमियो सड़कों पे कोई डर ना रहेगा | भाभीजी अभी तो आपके वोटों का ही सहारा है ,देखो जीते तो बिजली -पानी -गैस -सब सस्ते | अपने बेटे को अच्छे स्कूल में पढ़नाजी | अम्मा -बापू का बड़े हस्पताल में इलाज फ्री होगा हमारी सरकार में ,और न जाने क्या- क्या प्रलोभन | झूठे ,बेईमान ,ढोंगी ,अहंकारी ,अराजक ,दम्भी ,देश को बेच- खाके डकार न लेने वाले सफेदपोश ---वाह इतनी उपमाएं तो कालिदास ने भी न दी होंगी मेघदूत में , वैसे एक शब्द ही काफी है, नेताजी !चले जा रहे है प्रचार के लिए | कमोबेश सभी का अहंकार और विश्वास से दीप्त चेहरा ,पीछे -पीछे चमचों की फ़ौज | सबके मन में एक ही विचार आज जो भी हो ज्यादा से ज्यादा मीडिया कवरेज लेना है | नाम हो या बदनाम , येन -केन -प्रकारेण सभी चैनलों में आज के दौरे को बहस का मुद्दा बनना ही चाहिए | नेताजी का चमचों को निर्देश -भाई जनता के बीच खड़े होकर जूता फेंको ,टमाटर फेंको , गालपर रैपट मरवाओ या होली का मौसम है स्याही से मुहं काला नीला करवाओ , पर आज के कार्यक्रम की चर्चा होनी ही चाहिए | कुछ तूफानी सोचो और करो | जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है | हम कुछ दिनों भी ख़बरों से बाहर हुए तो राम नाम सत हो जाएगा | मन में दृढ निर्णय ,मैं ही मैं हूँ ,सच्चा ईमानदार ,बाकी सब झूठ और ऐसा सोचते -सोचते नेताजी चले जा रहे हैं चले जा रहे हैं ,तरह -तरह के प्रपंच ,कभी सजे हुए मंचों पे चढ़ रहे हैं ,कभी बस में ,कभी ट्रेन में कभी जहाज से निकल सीधे लोकल ट्रेन में ,कभी नाव में ,कभी नुक्कड़ बहस ,कभी चाय पे चर्चा ,कभी टेम्पो में सारे नियमों को तोड़ते हुए ,अहं का स्थाई भाव चेहरे पे ,पीछे पीछे लगभग दौड़ते हुए कैमरा ,माइक ,और बैग लादे सबसे पहली एक बाईट लेने को आतुर मीडिया पर्सन (जिन्हें पहले पत्रकार कहा जाता था ,अब पेड मीडिया के नाम से पहचाने जाते हैं और अपने आकाओं के लिए काम करते हैं ) | साथ में बेचारे पुलिस और सुरक्षागार्ड भी ,भागते हुए इनके साथ कदमताल करते हुए नजर आते है ,अब वो आमजनता के लिए हैं या इन खास लोगों के लिए ये तो उन्ही को पता होगा |
अगर कोई प्रश्न मन में उठ रहा हो तो उसका समाधान करने की कोशिश होगी ,कथावाचक का अपनी कलम से संबोधन !या वाइरस का प्रभाव होने के कारण गर्वोक्ति | मन ने प्रश्न उछाला - महाराज ! आप तो कह रहे थे कि इस वाइरस ने सभी को ग्रस लिया है पर हमपे तो कोई लक्षण इस बीमारी का है नहीं ? कथा वाचक ने बड़े गर्व से इधर उधर देखा ,अपने आसपास की हवाको महसूस किया ,और समाधान - सारे दिन फेस -बुक पे राजनीती पढते-पढ़ते दिमाग का दही जम जाता है | टी वी का स्विच ऑन करो तो नुक्कड़ बहस ,कौन बनेगा प्रधान-मंत्री ,बड़ा-मुद्दा ,बीच बहस में , पोलखोल और न जाने क्या क्या | आज एक ने स्टिंग किया | दूसरे ने पोल खोली | तीसरे ने गाली दी | फिर पलटवार हुआ , कोई पप्पू ,कोई पलटू ,कोई फेंकू | और सबसे बड़ा लक्षण इस बीमारी का तीसरा मोर्चा जो कमोबेश गर्जी-फर्जी लोगों का जमावड़ा होता है | यही नहीं हर पांच वर्ष में बेचारे गांधीजी और नाथूराम को जीवित करने की कोशिश | अब तो पटेल भी लाइन पे आ लगे हैं | और मेरी कलम तू जो राजनीती जानती ही नहीं है ,इस मुद्दे पे चर्चा कर रही है वो क्या ये साबित नहीं करता की सभी चपेट में आ चुके हैं | ये छद्म परिवेशों और ढोंगों के अंदर रहके जनता को बेवकूफ बनाने की प्रवृति या जनता को बेवकूफ ही समझना भी इस बीमारी का ही एक लक्षण है |पर एक बात जो सब राजनितिज्ञ भूल जाते है --जनता जितनी शीघ्र मूर्ख बनती है ,उतनी ही शीघ्रता और चतुरता से अपनी मूर्खता के आवरण को उतार भी फेंकती है | उसे लफ्फाजी ,नौटंकी ,दार्शिनिक बातों में अब कोई रूचि नहीं है | ये विकसित और मजबूत होते लोकतंत्र की जनता है | यहाँ घर -घर अनुभवी बुजुर्ग हैं ,प्रौढ़ता पूर्ण जवानी है ,जोश, उमंग ,बुद्धि- विवेक युक्त युवाओं की फ़ौज है ,जो यदि एक बार बहक जाए तो शीघ्र ही चैतन्य भी हो जाती है | वो बहकी भी देश को सुधारने के लिए ही थी और अबकी बार वोट देगी, तो भी देश के लिए ही |
अब देश का भविष्य तो लिखा ही जाना है | तो हर कथा की तरह इस में भी अन्त में प्रार्थना --प्रभु जनता को सद्बुद्धि देना | इस बार जाति ,सम्प्रदाय ,सेकुलर , सम्प्रदायिक ,प्रलोभन या और किसी भी कच्चे लालच में जनता न फंसे | बहुमत की सरकार आये | प्रभु राजनीतिग्यों को भी सद बुद्धि दे कि वो विकास के मुद्दे को प्रमुख मुद्दा बनाएं | सबसे बड़ी और अहं बात पार्टियों के बड़े -बूढ़े अबकी बार किसी भी योग्य व्यक्ति की टांग खींचने को अपना मकसद न बनाएं और देश को आगे ले जाने में सहायता करें | देश को विश्व गुरु बनाने की बात कहने वाले पहले अपना हित साधने के लालच को छोड़ें पार्टी को मजबूत करें | इसबार किसी कठपुतली को सिहासन पे बिठाने की जुगत न भिड़ानी पड़े | अबकी बार बहुमत की सरकार | मजबूत प्रधानमंत्री | देश हित में सभी देश भक्त मिल जाएँ | यदि ऐसा न हुआ तो इस बीमारी के जो लक्षण अभी जनता में अभी ( dormant ) सुप्त अवस्था में हैं हैं वो पांच वर्षों तक नेताओं में dormant और जनता में एक्टिव हो जायेंगे |मैं जानती हूँ ये दिवा स्वप्न है पर सपने देखना भी बीमारी का ही एक लक्षण है ,मैं तो इतना ही देख रही हूँ पता नहीं किस -किस नेता ने तो अपने को प्रधानमंत्री की कुर्सी पे देखना भी शुरू करदिया है और दौड़ में बहनजियाँ ,दीदियाँ ,और आम्मायें भी शामिल है | और छुटभइये तो अपने आकाओं को देवी देवता भी बताने लगे है | ताकि सनद रहे | अब कथावाचक के व्हाट्सआप में कई मैसेज आ चुके हैं , हो सकता है कोई जरुरी भी हो | प्रभु कृपा बनी रहे | कथा ऐसी ही थी | होली का उत्सव है सो कुछ भी लिखने और करने पे माफ़ी होती है | ॐ तत्सीदति | इति श्री चुनाव वाइरस कथा | ..........
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मौसम का असर सभी प्राणियों पे पड़ता ही है | बदलती हवा में अब वाइरस जनित रोग अपरिहार्य हैं ,कोई सौभाग्य शाली ही इनसे बच पाता होगा | और वाइरस भी एक से एक खतरनाक ,जिनकी कोई दवा ही ईजाद नहीं हुई है -अपना जीवन चक्र पूरा करेंगे ही और खुद ही समाप्त होंगे | कुछ के लिए तो टीके ईजाद हो गये हैं पर अधिकतर से बचाव का तरीका तो सावधानी , शक्तिऔर सुरक्षा ही है ,आज कल हिन्दुस्थान की फिजां में ऐसा ही एक वाईरस तिर रहा है | चुनावी वाईरस ! जो पूरे देश को खतरनाक तरीके से प्रभाव में ले चुका है | ये वाईरस छिट -पुट में तो देश में रहता ही है हमेशा, पर हर पांच वर्ष में विकराल रूप धारण कर लेता है | ये चुनाव आयोग की एक सूचना से फैलता है और धीरे-धीरे सभी को अपनी चपेट में ले लेता है | इससे बचाव का कोई तरीका नहीं है | वैज्ञानिक अभी तक कोई टीका नहीं ईजाद कर पाए हैं | कितना ही बचियेआप इसकी चपेट में आयेंगे ही |
आपको यदि लिखने का शौक है तो लेखनी खुद ब खुद रंग जायेगी चुनावी माहौल में | होली के त्यौहार की आहट से फगुनाये हुए लोग , बुरा न मानने की परम्परा और चुनावी माहौल ,बौराने के लिए और क्या चाहिए | सो मैंने सोचा होली की इस बुरा न मानने की सदियों पुरानी सांस्कृतिक परम्परा की बहती धारा में मैं भी हाथ धो लू | अथ नेता चर्चा कथा ! ॐ नमो शुद्धम | ( "नमो "से जो भी अर्थ लगाना है, लगायें ;पाठकगण स्वतंत्र हैं ) शुद्ध होलूं ,ये जो कथा है इसमें लेखनी के अशुद्ध होने की सम्भावना रहती ही है | तो साहब चर्चा है आजकल के सबसे चर्चित चेहरों की -ये -हर गली ,कूचे ,मुहल्ले ,गाँव ,कस्बे ,शहर ,में छाये है | धूर्त ,मक्कार ,लम्पट ,भ्रष्टाचारी ,गुंडे , वोट रूपी मछली पे आँख गडाए श्वेत वस्त्र धारी बगुला भगत ,पलटूराम ,हरी लाल सफ़ेद टोपीवाले ,गमछेवाले , फूलवाले ,हाथ वाले ,हाथी वाले ,साईकलवाले ,झाडू वाले और भी न जाने कितने ,तीर ,कुर्सी ,साबुन ,कैंची अनेकों रूप रंग के नेते, हाथ जोड़ के घूम -घूम के भोली- भाली जनता को समझाने निकले है | बाबूजी पांलागी ,अम्मा सर पे हाथ रखदो बस ,भैया इबके नौकरी पक्की ,लाडो इब जो मुझे जितावेगी तो खूब घूमियो सड़कों पे कोई डर ना रहेगा | भाभीजी अभी तो आपके वोटों का ही सहारा है ,देखो जीते तो बिजली -पानी -गैस -सब सस्ते | अपने बेटे को अच्छे स्कूल में पढ़नाजी | अम्मा -बापू का बड़े हस्पताल में इलाज फ्री होगा हमारी सरकार में ,और न जाने क्या- क्या प्रलोभन | झूठे ,बेईमान ,ढोंगी ,अहंकारी ,अराजक ,दम्भी ,देश को बेच- खाके डकार न लेने वाले सफेदपोश ---वाह इतनी उपमाएं तो कालिदास ने भी न दी होंगी मेघदूत में , वैसे एक शब्द ही काफी है, नेताजी !चले जा रहे है प्रचार के लिए | कमोबेश सभी का अहंकार और विश्वास से दीप्त चेहरा ,पीछे -पीछे चमचों की फ़ौज | सबके मन में एक ही विचार आज जो भी हो ज्यादा से ज्यादा मीडिया कवरेज लेना है | नाम हो या बदनाम , येन -केन -प्रकारेण सभी चैनलों में आज के दौरे को बहस का मुद्दा बनना ही चाहिए | नेताजी का चमचों को निर्देश -भाई जनता के बीच खड़े होकर जूता फेंको ,टमाटर फेंको , गालपर रैपट मरवाओ या होली का मौसम है स्याही से मुहं काला नीला करवाओ , पर आज के कार्यक्रम की चर्चा होनी ही चाहिए | कुछ तूफानी सोचो और करो | जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है | हम कुछ दिनों भी ख़बरों से बाहर हुए तो राम नाम सत हो जाएगा | मन में दृढ निर्णय ,मैं ही मैं हूँ ,सच्चा ईमानदार ,बाकी सब झूठ और ऐसा सोचते -सोचते नेताजी चले जा रहे हैं चले जा रहे हैं ,तरह -तरह के प्रपंच ,कभी सजे हुए मंचों पे चढ़ रहे हैं ,कभी बस में ,कभी ट्रेन में कभी जहाज से निकल सीधे लोकल ट्रेन में ,कभी नाव में ,कभी नुक्कड़ बहस ,कभी चाय पे चर्चा ,कभी टेम्पो में सारे नियमों को तोड़ते हुए ,अहं का स्थाई भाव चेहरे पे ,पीछे पीछे लगभग दौड़ते हुए कैमरा ,माइक ,और बैग लादे सबसे पहली एक बाईट लेने को आतुर मीडिया पर्सन (जिन्हें पहले पत्रकार कहा जाता था ,अब पेड मीडिया के नाम से पहचाने जाते हैं और अपने आकाओं के लिए काम करते हैं ) | साथ में बेचारे पुलिस और सुरक्षागार्ड भी ,भागते हुए इनके साथ कदमताल करते हुए नजर आते है ,अब वो आमजनता के लिए हैं या इन खास लोगों के लिए ये तो उन्ही को पता होगा |
अगर कोई प्रश्न मन में उठ रहा हो तो उसका समाधान करने की कोशिश होगी ,कथावाचक का अपनी कलम से संबोधन !या वाइरस का प्रभाव होने के कारण गर्वोक्ति | मन ने प्रश्न उछाला - महाराज ! आप तो कह रहे थे कि इस वाइरस ने सभी को ग्रस लिया है पर हमपे तो कोई लक्षण इस बीमारी का है नहीं ? कथा वाचक ने बड़े गर्व से इधर उधर देखा ,अपने आसपास की हवाको महसूस किया ,और समाधान - सारे दिन फेस -बुक पे राजनीती पढते-पढ़ते दिमाग का दही जम जाता है | टी वी का स्विच ऑन करो तो नुक्कड़ बहस ,कौन बनेगा प्रधान-मंत्री ,बड़ा-मुद्दा ,बीच बहस में , पोलखोल और न जाने क्या क्या | आज एक ने स्टिंग किया | दूसरे ने पोल खोली | तीसरे ने गाली दी | फिर पलटवार हुआ , कोई पप्पू ,कोई पलटू ,कोई फेंकू | और सबसे बड़ा लक्षण इस बीमारी का तीसरा मोर्चा जो कमोबेश गर्जी-फर्जी लोगों का जमावड़ा होता है | यही नहीं हर पांच वर्ष में बेचारे गांधीजी और नाथूराम को जीवित करने की कोशिश | अब तो पटेल भी लाइन पे आ लगे हैं | और मेरी कलम तू जो राजनीती जानती ही नहीं है ,इस मुद्दे पे चर्चा कर रही है वो क्या ये साबित नहीं करता की सभी चपेट में आ चुके हैं | ये छद्म परिवेशों और ढोंगों के अंदर रहके जनता को बेवकूफ बनाने की प्रवृति या जनता को बेवकूफ ही समझना भी इस बीमारी का ही एक लक्षण है |पर एक बात जो सब राजनितिज्ञ भूल जाते है --जनता जितनी शीघ्र मूर्ख बनती है ,उतनी ही शीघ्रता और चतुरता से अपनी मूर्खता के आवरण को उतार भी फेंकती है | उसे लफ्फाजी ,नौटंकी ,दार्शिनिक बातों में अब कोई रूचि नहीं है | ये विकसित और मजबूत होते लोकतंत्र की जनता है | यहाँ घर -घर अनुभवी बुजुर्ग हैं ,प्रौढ़ता पूर्ण जवानी है ,जोश, उमंग ,बुद्धि- विवेक युक्त युवाओं की फ़ौज है ,जो यदि एक बार बहक जाए तो शीघ्र ही चैतन्य भी हो जाती है | वो बहकी भी देश को सुधारने के लिए ही थी और अबकी बार वोट देगी, तो भी देश के लिए ही |
अब देश का भविष्य तो लिखा ही जाना है | तो हर कथा की तरह इस में भी अन्त में प्रार्थना --प्रभु जनता को सद्बुद्धि देना | इस बार जाति ,सम्प्रदाय ,सेकुलर , सम्प्रदायिक ,प्रलोभन या और किसी भी कच्चे लालच में जनता न फंसे | बहुमत की सरकार आये | प्रभु राजनीतिग्यों को भी सद बुद्धि दे कि वो विकास के मुद्दे को प्रमुख मुद्दा बनाएं | सबसे बड़ी और अहं बात पार्टियों के बड़े -बूढ़े अबकी बार किसी भी योग्य व्यक्ति की टांग खींचने को अपना मकसद न बनाएं और देश को आगे ले जाने में सहायता करें | देश को विश्व गुरु बनाने की बात कहने वाले पहले अपना हित साधने के लालच को छोड़ें पार्टी को मजबूत करें | इसबार किसी कठपुतली को सिहासन पे बिठाने की जुगत न भिड़ानी पड़े | अबकी बार बहुमत की सरकार | मजबूत प्रधानमंत्री | देश हित में सभी देश भक्त मिल जाएँ | यदि ऐसा न हुआ तो इस बीमारी के जो लक्षण अभी जनता में अभी ( dormant ) सुप्त अवस्था में हैं हैं वो पांच वर्षों तक नेताओं में dormant और जनता में एक्टिव हो जायेंगे |मैं जानती हूँ ये दिवा स्वप्न है पर सपने देखना भी बीमारी का ही एक लक्षण है ,मैं तो इतना ही देख रही हूँ पता नहीं किस -किस नेता ने तो अपने को प्रधानमंत्री की कुर्सी पे देखना भी शुरू करदिया है और दौड़ में बहनजियाँ ,दीदियाँ ,और आम्मायें भी शामिल है | और छुटभइये तो अपने आकाओं को देवी देवता भी बताने लगे है | ताकि सनद रहे | अब कथावाचक के व्हाट्सआप में कई मैसेज आ चुके हैं , हो सकता है कोई जरुरी भी हो | प्रभु कृपा बनी रहे | कथा ऐसी ही थी | होली का उत्सव है सो कुछ भी लिखने और करने पे माफ़ी होती है | ॐ तत्सीदति | इति श्री चुनाव वाइरस कथा | ..........
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