{ Women's day }
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8 मार्च ____बसंत का मौसम ; आम पे आयी बौर की तरह बौराया हुआ -फागुनी हवा की बासन्ती छुवन सा मादक -कोयल की कूक सा मधुर -दुल्हन सी सजी प्रकृति सा पावन और सुंदर ! शायद इस बासन्ती मौसम में ही विमेंस -डे की सार्थकता है इन्हीं भावों को संज्ञान में लेकर इसे ८ मार्च में रखा गया होगा |
पर क्या सही में नारी को किसी विशेष दिवस की दरकार है | अपनी पहचान और सार्थकता सिद्ध करने के लिए शायद नहीं बिलकुल नहीं | विश्व को यदि न भी देखें तो भारत में ही नारी जाति ने अपने उत्कर्ष का परचम हर जगह लहराया है |घर से लेकर आसमान तक ,हर जगह नारी ने अपनी जगह बनायी है और वो निरंतर संघर्ष शील है ,आगे बढ़ने को तत्पर | वो किसी विशेष दिन या तिथि का इंतजार नहीं करती है अपने संघर्ष को जारी रखने के लिए या सफलता का स्वाद चखने के लिए | पर हाँ नारी के उद्भव को प्रचारित और प्रसारित करने का ये समय एक अच्छा जरिया हो सकता है | बहुत पहले ८ मार्च को मैंने एक कविता -कविसम्मेलन में पढ़ी थी | आज उसे अपने आस -पास की दो स्त्रियों को समर्पित कर रही हूँ ---मेरी बिटिया जो मेरा गर्व है ---और मेरी मुहं बोली बहिन ( ननद ) मीनू --जो अभी ही देहरादून M.K.P.में पहली महिला अध्यक्ष चुनी गयी --छोटी उम्र में पति को खो के ,दो बेटियों को संस्कारवान और घर का गुरुर बनाना और जिस विद्यालय में शिक्षा ली वहां का अध्यक्ष पद लेना समाज सेवा और विद्वता के बल पे, मुझे तुम पे गर्व है ___
क्या समय चुना है ----- ८ मार्च !
Womens day --Womens day .
ऋतुराज बसंत ने दस्तक दी ,प्रकृति ने ली अंगडाई है
आमों की बौरों में देखो ,कोयल ने कूक मचाई है |
प्रकृति की इस नव मनुहार से-जब जगति सारी सरसाई है
तब स्त्री को बहकाने को-झूठा सम्मान दिलाने को -
ये मदमस्त ऋतू ही चुनी गयी ,Women's day --Women's day .
प्रकृति ही जब बौराई हो -नारी तो बौरा ही जायेगी
संवेदना में- प्रकृति है , नारी -सहज भाव और मधुरानन ,
प्रेम प्रीत की सरिता है नारी ,श्रृजनशील ओ आकुल मन
है सरल हृदय! पर प्रणय पूर्ण, इसको छलना क्या मुश्किल है ?
नारी अपने अंतर मन में ,इस प्रकृति की ही छाया है -
प्रतिकृति वसंत-ऋतू की है , अर फागुन की मादकता है |
जब प्रकृति ही बौराई हो छाया क्यूँ न बौराएगी ?
बहकाना क्या मुश्किल होगा ?सबला को अबला करना होगा |
८ मार्च नारी के नाम ,सम्मान और नारे बाजी !
हो रही कहीं कुछ मीटिंगें ,अर झड़ी लगी है नारों की
सजधज आधुनिकाएं कुछ ,जोर जोर से थीं कहतीं -
स्वतंत्रता हमें चाहिए ,हम चाहती है रहना स्वतंत्र |
घूमें -फिरें कहीं जाएँ ,कुछ पहनें कुछ भी खाएं ,
अपनी मर्जी की मालिक हैं हम पर हक़ बस अपना ही है |
क्या ? आजादी नारे बाजी है ,सड़कों पे धूम मचाना है -
उस पे फिर आगे बढने को आरक्षण का ढोल बजाना है ?
तुम पुरुषों से कम हो नारी ! ये विश्वास दिलवाने को तुमको ,
Women's day इक जरिया है ,आरक्षण एक नजरिया है |
क्या साबित करना चाहती हो ,सच आरक्षित होना चाहती हो |
मन से स्वतंत्र है जो नारी ,अपने में सक्षम वो होती है ,
चुपचाप कठिन परिश्रम से ,दूर चाँद तक हो आती है |
दो चार जगह मीटिंग करके ,अखबारमें नाम आ जाने से ,
शक्ति नहीं बन पाए यदि ,तो नारी व्यंजन बन जाती है |
है बात जरा कड़वी! पर बहना- व्यंजन होता;स्वतंत्र नहीं ,
जब जिसका जी आये उस पे; वो ही, उस को, चक्खा करता |
क्यूँ बहकावे में आ कर के, तुम सबला से अबला बन जाओ ,
तुम शक्ति स्वरूप हो नारी ,भगवती अम्बे दुर्गा हो |
प्रभु ने शक्ति संग तुमको कोमलता ओ सुन्दरता का वरदान दिया ,
तुममे ही जग समाहित है -तुम श्रद्धा विश्वास की मूरत हो |
दे जन्म पुरुष को तुमने ही ,पौरुष अपना सौंप दिया उसको ,
निज को समझो निज को जानो ,अपने अस्तित्व को पहचानो |
आगे बढ़ ना पाए नारी ,अबला सबला में फंस जाए -
Women's day का रच प्रपंच नारी को बहकाया जाता है |
निज को लाचार दिखाने का ,अबला ओ बेबस समझने का
ये अभियान छोड़ना ही होगा ,अभियान छोड़ना ही होगा |
Women's day है सार्थक जो कन्या भ्रूण न मारा जाए ,
बेटी बहुओं की इज्जत घर बाहर ना लूटी जाए -सिक्कों में न तोली जाए |
हो सामान अधिकार सभी ,आरक्षण की नारी को दरकार न हो
अबला नहीं तुम सबला होWomen's day इक छलना है |
और अंत में --
रौद्र वेष में आये नारी तो उसको काली समझो
सौम्य वेष में आये नारी तो उसको कल्याणी समझो
नारी तेरे रूप अनेक ,समझ न पाए ऋषि मुनि जिसको -
मत उसको अबला समझो ........................................आभा .......Women's day तो रोज ही होता है सुबह की चाय की से शुरू होती है उसकी दिनचर्या और हर पल घर के लिए ही समर्पित होती है | कहते हैं न बिन घरनी घर भूत का डेरा ,जिसने अपनी पत्नी को खो दिया है उससे पूछिये क्या होता है ,सो चालिये आज Women's day को एक दिन ही सही अपनी पत्नी के मन को पढ़ के देखिये ....देखिये ये रोशनी के साथ क्यूँ धुंआ उठा चिराग से ...|Women's day तो रोज ही होता है सुबह की चाय की से शुरू होती है उसकी दिनचर्या और हर पल घर के लिए ही समर्पित होती है | कहते हैं न बिन घरनी घर भूत का डेरा ,जिसने अपनी पत्नी को खो दिया है उससे पूछिये क्या होता है ,सो चालिये आज Women's day को एक दिन ही सही अपनी पत्नी के मन को पढ़ के देखिये ....देखिये ये रोशनी के साथ क्यूँ धुंआ उठा चिराग से ...
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8 मार्च ____बसंत का मौसम ; आम पे आयी बौर की तरह बौराया हुआ -फागुनी हवा की बासन्ती छुवन सा मादक -कोयल की कूक सा मधुर -दुल्हन सी सजी प्रकृति सा पावन और सुंदर ! शायद इस बासन्ती मौसम में ही विमेंस -डे की सार्थकता है इन्हीं भावों को संज्ञान में लेकर इसे ८ मार्च में रखा गया होगा |
पर क्या सही में नारी को किसी विशेष दिवस की दरकार है | अपनी पहचान और सार्थकता सिद्ध करने के लिए शायद नहीं बिलकुल नहीं | विश्व को यदि न भी देखें तो भारत में ही नारी जाति ने अपने उत्कर्ष का परचम हर जगह लहराया है |घर से लेकर आसमान तक ,हर जगह नारी ने अपनी जगह बनायी है और वो निरंतर संघर्ष शील है ,आगे बढ़ने को तत्पर | वो किसी विशेष दिन या तिथि का इंतजार नहीं करती है अपने संघर्ष को जारी रखने के लिए या सफलता का स्वाद चखने के लिए | पर हाँ नारी के उद्भव को प्रचारित और प्रसारित करने का ये समय एक अच्छा जरिया हो सकता है | बहुत पहले ८ मार्च को मैंने एक कविता -कविसम्मेलन में पढ़ी थी | आज उसे अपने आस -पास की दो स्त्रियों को समर्पित कर रही हूँ ---मेरी बिटिया जो मेरा गर्व है ---और मेरी मुहं बोली बहिन ( ननद ) मीनू --जो अभी ही देहरादून M.K.P.में पहली महिला अध्यक्ष चुनी गयी --छोटी उम्र में पति को खो के ,दो बेटियों को संस्कारवान और घर का गुरुर बनाना और जिस विद्यालय में शिक्षा ली वहां का अध्यक्ष पद लेना समाज सेवा और विद्वता के बल पे, मुझे तुम पे गर्व है ___
क्या समय चुना है ----- ८ मार्च !
Womens day --Womens day .
ऋतुराज बसंत ने दस्तक दी ,प्रकृति ने ली अंगडाई है
आमों की बौरों में देखो ,कोयल ने कूक मचाई है |
प्रकृति की इस नव मनुहार से-जब जगति सारी सरसाई है
तब स्त्री को बहकाने को-झूठा सम्मान दिलाने को -
ये मदमस्त ऋतू ही चुनी गयी ,Women's day --Women's day .
प्रकृति ही जब बौराई हो -नारी तो बौरा ही जायेगी
संवेदना में- प्रकृति है , नारी -सहज भाव और मधुरानन ,
प्रेम प्रीत की सरिता है नारी ,श्रृजनशील ओ आकुल मन
है सरल हृदय! पर प्रणय पूर्ण, इसको छलना क्या मुश्किल है ?
नारी अपने अंतर मन में ,इस प्रकृति की ही छाया है -
प्रतिकृति वसंत-ऋतू की है , अर फागुन की मादकता है |
जब प्रकृति ही बौराई हो छाया क्यूँ न बौराएगी ?
बहकाना क्या मुश्किल होगा ?सबला को अबला करना होगा |
८ मार्च नारी के नाम ,सम्मान और नारे बाजी !
हो रही कहीं कुछ मीटिंगें ,अर झड़ी लगी है नारों की
सजधज आधुनिकाएं कुछ ,जोर जोर से थीं कहतीं -
स्वतंत्रता हमें चाहिए ,हम चाहती है रहना स्वतंत्र |
घूमें -फिरें कहीं जाएँ ,कुछ पहनें कुछ भी खाएं ,
अपनी मर्जी की मालिक हैं हम पर हक़ बस अपना ही है |
क्या ? आजादी नारे बाजी है ,सड़कों पे धूम मचाना है -
उस पे फिर आगे बढने को आरक्षण का ढोल बजाना है ?
तुम पुरुषों से कम हो नारी ! ये विश्वास दिलवाने को तुमको ,
Women's day इक जरिया है ,आरक्षण एक नजरिया है |
क्या साबित करना चाहती हो ,सच आरक्षित होना चाहती हो |
मन से स्वतंत्र है जो नारी ,अपने में सक्षम वो होती है ,
चुपचाप कठिन परिश्रम से ,दूर चाँद तक हो आती है |
दो चार जगह मीटिंग करके ,अखबारमें नाम आ जाने से ,
शक्ति नहीं बन पाए यदि ,तो नारी व्यंजन बन जाती है |
है बात जरा कड़वी! पर बहना- व्यंजन होता;स्वतंत्र नहीं ,
जब जिसका जी आये उस पे; वो ही, उस को, चक्खा करता |
क्यूँ बहकावे में आ कर के, तुम सबला से अबला बन जाओ ,
तुम शक्ति स्वरूप हो नारी ,भगवती अम्बे दुर्गा हो |
प्रभु ने शक्ति संग तुमको कोमलता ओ सुन्दरता का वरदान दिया ,
तुममे ही जग समाहित है -तुम श्रद्धा विश्वास की मूरत हो |
दे जन्म पुरुष को तुमने ही ,पौरुष अपना सौंप दिया उसको ,
निज को समझो निज को जानो ,अपने अस्तित्व को पहचानो |
आगे बढ़ ना पाए नारी ,अबला सबला में फंस जाए -
Women's day का रच प्रपंच नारी को बहकाया जाता है |
निज को लाचार दिखाने का ,अबला ओ बेबस समझने का
ये अभियान छोड़ना ही होगा ,अभियान छोड़ना ही होगा |
Women's day है सार्थक जो कन्या भ्रूण न मारा जाए ,
बेटी बहुओं की इज्जत घर बाहर ना लूटी जाए -सिक्कों में न तोली जाए |
हो सामान अधिकार सभी ,आरक्षण की नारी को दरकार न हो
अबला नहीं तुम सबला होWomen's day इक छलना है |
और अंत में --
रौद्र वेष में आये नारी तो उसको काली समझो
सौम्य वेष में आये नारी तो उसको कल्याणी समझो
नारी तेरे रूप अनेक ,समझ न पाए ऋषि मुनि जिसको -
मत उसको अबला समझो ........................................आभा .......Women's day तो रोज ही होता है सुबह की चाय की से शुरू होती है उसकी दिनचर्या और हर पल घर के लिए ही समर्पित होती है | कहते हैं न बिन घरनी घर भूत का डेरा ,जिसने अपनी पत्नी को खो दिया है उससे पूछिये क्या होता है ,सो चालिये आज Women's day को एक दिन ही सही अपनी पत्नी के मन को पढ़ के देखिये ....देखिये ये रोशनी के साथ क्यूँ धुंआ उठा चिराग से ...|Women's day तो रोज ही होता है सुबह की चाय की से शुरू होती है उसकी दिनचर्या और हर पल घर के लिए ही समर्पित होती है | कहते हैं न बिन घरनी घर भूत का डेरा ,जिसने अपनी पत्नी को खो दिया है उससे पूछिये क्या होता है ,सो चालिये आज Women's day को एक दिन ही सही अपनी पत्नी के मन को पढ़ के देखिये ....देखिये ये रोशनी के साथ क्यूँ धुंआ उठा चिराग से ...
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