Monday, 10 March 2014

                                 { जे बी कोई बात सै }
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जौ तुम हमें जिबायो चाहत अनबोले ह्वै रहिये |
कोई यदि खीज के स्त्री जाति से ऐसी बात कहे तो क्या वो मूर्ख नहीं होगा | कभी हम स्त्रियाँ भी चुप रह सकती हैं और यदि कोई ऐसी बात हो जो किसी को नहीं बतानी हो तो चुप रहना मुश्किल ही नहीं असम्भव होता है |ये तो जग जाहिर है कि महिलाओं के पेट में कोई बात नहीं पचती | वैसे पचती तो पुरुषों के पेट में भी नहीं है ,अब अपने नारद मुनि को ही लें इधर की उधर और चुगली करने में सिद्दहस्त | शायद इस चुगलखोरी की विधा के जन्मदाताओं में से  नारद मुनि भी एक रहे होंगे |  पुरुष किसी बात को समय और जरूरत के अनुसार उगलते हैं ,नारद जी की तरह - लाभ भी और फसाद भी दोनों हों, आम के आम गुठली के दाम | स्त्री ठहरी सरलमना ,वो कुछ भी गुप्त रखने में विशवास नहीं करती है ,भाई कुछ सुना  है तो सबही को मजा लेने दो न ,वैसे भी स्त्रियाँ समाज को साथ लेके ही चलती है वरना इतने  सारे रिश्ते नाते निबाहना क्या हंसी खेल है ?
  बात ! कानाफूसी कहिये या चुगलखोरी कहिये या बात को न पचा सकने की महज आदत , स्त्री को जैसे ही  पता चली कि समझो  ''कहीं चटकी कली  कोई मैं ये समझा बहार  आयी '' की तरह हवाओं में तिरने लगती है |  हर जगह पे एक अदद सहेली ऐसी होती हैं जिन्हें हम चलता फिरता खबरनवीस कहते हैं कैसे अपने पूरे  खेत की फसल ( territory) की वो खबर रखती  हैं ,एक -एक घर की खबर और फिर घूम -घूम के कानाफूसी ,चुगली | मुझे कभी समझ नहीं आता कैसे इतनी सारी गुप्त खबरें ये निकाल लाती हैं  जो एक गुप्तचर के  लिए भी संभव नहीं है और खूबसूरत विडंबना यह की दूसरी सखी को बताने से पहले ये  रहस्यमयी जुमला ( जो  तकिया कलम की तरह बोला जाता है, प्रोटोकाल की तरह चलता है )  ''किसी को मत बताना -बस मैं तुम्हें ही बता रही हूँ '' |
 मैं कई बार पूछ लेती हूँ --बहना जब तुम इसे नहीं पचा पा रही हो तो मुझे क्यूँ चखा रही हो ? और स्वादिष्ट हुई तुम्हारी रेसिपी तो मैं दूसरे को क्यूँ न चखाऊँ | मनुहार ! अरे; वो तो मुझे पता है कि तुम  कानाफूसी नहीं करती हो और दूसरे के फटे में पैर डालने की तुम्हारी आदत नहीं है |   ये भी कोई बात हुई  मैं इस स्त्री सुलभ गुण से वंचित हूँ तो सारा कचरा- कबाड़ा संजो के रखूं ! पर यकीन जानिये  यदि सही में आप ऐसे हैं जो सबकी सुनके शांत रहते हैं ,कानाफूसियों का गदर नहीं मचाते ,यदि आपमें हुनर   है कि सागर पी जाओ और लब सूखे रहें तो अपने अधिवास में आपको बहुत सारे मित्र मिल जायेंगे जो हर तबके और हर गुट के होंगे | बात इतनी सी है कि सबको अपना -अपना गुबार निकालने  को एक ऐसे व्यक्ति की दरकार है जिसमे नारद पना न हो ,जो काठ-कबाड़ सब पचा जाए और बरपिंग भी न हो | और स्त्री जाति में तो ऐसे नमूने की बहुत पूछ होती है | पर आश्चर्य की बात है ये भी तो कि कानाफूसियों वाली बहने ऐसी सहेली को भी ढूंढ ही लेती हैं |
  अब मैं इस लेख को लिखने का और इतनी कवायद का आशय भी स्पष्ट कर दूँ ---असल में स्त्री जाति अपने मन में ,दिल में या पेट में कोई बात नहीं पचा पाती  है तो इसमें उसका कोई दोष नहीं है | ये तो हमारे धर्मराज युधिष्ठर महाराज का कमाल है | महाभारत में एक प्रसंग है जब कर्ण वध के पश्चात श्री कृष्ण पांडवों को उसका श्राद्ध करने को कहते हैं और जलांजलि देने का आग्रह करते है तो पांडवों के प्रश्न करने पे कुंती ये तथ्य उजागर करती है की कर्ण उसका बड़ा पुत्र और पांडवों का  बड़ा भाई  है |  अग्रज वध के शोक दुःख और ग्लानि से युधिष्ठर प्रलाप करने लगते है वो अपने बड़े भाई को खोने का महान दुःख सहन नहीं कर पाते और अपनी माँ  की करनी की सजा सारी स्त्री जाति को देदेते हैं ----- वो कहते हैं ---
                पापे नासों माया श्रेष्ठो भ्राता ज्ञातिर्निपातित: |
                अतो मनसि यद गुहिय्म स्त्रीणांतन्न भविष्यति  || महाभारत ;स्त्री पर्व ;सप्तविंशोअध्याय ||२९ ||
  मुझ पापी ने ये रहस्य की मेरा भाई है कर्ण न जानने के कारण अपने बड़े भाई को मरवा दिया | आज से मैं शाप देता हूँ की स्त्री जाति अपने मन में कोई रहस्य न छुपा पाएगी |
और जी तब से लेकर आज तक स्त्री जाति इस शाप  के बोझ तले दबी हुई है |विडंबना ! वो युधिष्ठर जो कुंती के कहने पे ''जो लाये हो आपस में बाँट लो ''अपनी माँ को यह न कह पाया की माँ यह स्त्री है कोई वस्तु नहीं कि हम बाँट लें .या जो चौपड़ में अपने भाइयों को हार के द्रौपदी के चीर हरण को देखते रहे --किस मुहं से कुंती के बहाने सम्पूर्ण स्त्री जाति को शाप दे सकते हैं ? पर वो धर्मराज के पुत्र थे ,एक खानदानी ठसक भी होती है भाई ! 'समरथको नहीं दोष गुसाईं ' | तो बड़े बाप का बेटा शाप तो दे ही सकता है फिर शाप देना और शाप को ढोना तो हमारी सांस्कृतिक विरासत है |
 पर क्या कोई और शाप कलयुग तक टिक पाया है ? फिर ये ही क्यूँ ? मेरी बहनों चुगली ,कानाफूसी ,सरगोशी सब बंद | हम आज की नारियां हैं किसी पुरुष के शाप को ढोने को क्यूँ विवश होयें ?  तो हुआ फैसला   अब से एक कान से सुनेंगी और दूसरे से निकाल देंगी |मन ,दिल और पेट तक बातों को पहुँच ने ही न देंगी --मैं मानती हूँ की ये एक ऐसी विधा है जो आनंद दायक है ---
       '' ज्यूँ गूंगे मीठे फल को रस अंतर्गत ही भावै  |
     ''  परम स्वाद सब ही सु निरंतर अमित तोष उपजावै " ||
पर कितना ही गूंगे के गुड़ का स्वाद हो चुगली तो फिर चुगली ही है |  जे बी कोई बात सै ||   .......आभा ......
     





     

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