हर रोज हो हिंदी दिवस ----
हिंदी -------मेरी भारत माँ के माथे की बिंदी , सुंदर ,चटकीली ,इंद्रधनुध की रंगत वाली ,उषा -प्रत्युषा के आँचल में बिखरे रंगों को समेटे और अधिक गहरी हो गयी है रंगत जिसकी ---ऐसी है वो हिंदी मेरी भारत माँ के माथे की बिंदी।
वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै
लड़कीली बानि आनि उर मैं अरति है।
वहै गति लैन औ बजावनि ललित बैन,
वहै हँसि दैन, हियरा तें न टरति है।------------
हियरा में लागि ज्यूँ कटार --बस यूँ ही समाई है हिंदी भारतीयों की आत्मा में अपनी बड़ी बहन संस्कृत के साथ ---सर्जरी करो तो भी न निकलेगी ०००।
संस्कृत जब कठिन लगी तो वो प्राकृत में ढली पर वो लोच न आयी तो हिंदी में ढली। हिंदी ; इसने तो सनातनी बड़े-बूढ़ों की तरह सभी बाहरी भाषाओं को अपना लिया। प्रांतीय भाषाओं में आज कुछ हिंदी से प्रभावित हैं कुछ संस्कृत से।
हिंदी -------मेरी भारत माँ के माथे की बिंदी , सुंदर ,चटकीली ,इंद्रधनुध की रंगत वाली ,उषा -प्रत्युषा के आँचल में बिखरे रंगों को समेटे और अधिक गहरी हो गयी है रंगत जिसकी ---ऐसी है वो हिंदी मेरी भारत माँ के माथे की बिंदी।
वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै
लड़कीली बानि आनि उर मैं अरति है।
वहै गति लैन औ बजावनि ललित बैन,
वहै हँसि दैन, हियरा तें न टरति है।------------
हियरा में लागि ज्यूँ कटार --बस यूँ ही समाई है हिंदी भारतीयों की आत्मा में अपनी बड़ी बहन संस्कृत के साथ ---सर्जरी करो तो भी न निकलेगी ०००।
संस्कृत जब कठिन लगी तो वो प्राकृत में ढली पर वो लोच न आयी तो हिंदी में ढली। हिंदी ; इसने तो सनातनी बड़े-बूढ़ों की तरह सभी बाहरी भाषाओं को अपना लिया। प्रांतीय भाषाओं में आज कुछ हिंदी से प्रभावित हैं कुछ संस्कृत से।
क्षेत्रीय एवं प्रांतीय भाषाएँ , हिंदी की सहेलियां हैं ,
उसके आँचल में टँके हुए रंगबिरंगे सितारे है।
अवधि, ब्रज, भोजपुर ,कौरवी ,गढ़वाली ,तमिल तेलगु कन्नड़ ,बंगला
असमी पंजाबी ,गुजराती मराठी ,कुमाउनी ,आदि भाषा -बोलियां , कई सहेलियां है हिंदी की।
अब तो अंग्रेजी भी सहेली बन गयी है।
और उर्दू वो तो छोटी बहन ही है ,
बस इसीलिये है हिंदी ,
मेरी माँ के माथे की बिंदी ,
मेरे भारत के गौरवशाली मस्तक का ,टीका।
इसे क्षेत्रीयता या क्षेत्रीय भाषाओं से नही
केवल और केवल वोट के लालची ,नेताओं से खतरा है ---अन्य प्रांतीय और क्षेत्रीय भाषाएँ तो
तरह तरह की रंग बिरंगी बिंदियां है।जैसे हर पोशाक के लिये उससे मिलती जुलती बिंदी वैसे ही हर क्षेत्र के लिये एक बोली उस क्षेत्र की मिठास और रंगीनी को जज्ब करती हुई। हिंदी भाषी लोग और क्षेत्रीय जनता जाने कब ये समझेगी --
ये एक दिनी सम्मान ,हिंदी के महत्व के लिए नही
हिंदी बोलने वालों को बहकाने के लिए है।
काश हम अपनी माँ के माथे से बिंदी कभी न मिटने दें।
पर रूढियां ---
हिंदी दिवस तो तबही जब हिंदी राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने वाली बड़ी बहन का रूप लेगी ,तथा अन्य भाषाएँ उसके झंडे तले फलेफूलेंगी।
वन्दनीय हो जन जन की ,
जगमगाये जीवन में हिंदी
हर रंग इसका न्यारा
हर आकार इसका प्यारा
पूरब से पच्छम तक
उत्तर से दक्खन तक ,
हर भाषा में रंग हो इसका
हर भाषा इसकी सहोदरी। -----
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