गणपति विसर्जन की शुभकामनायें --मोरिया रे बप्पा मोरिया रे ---
अगले बरस तू जल्दी आ ---- गणेश बैठे हैं स्वर्ग में ,अपनी प्रतिकृतियों का विसर्जन देख रहे हैं --सोच रहे हैं इंसान भी क्या है ,हर तरह की मूर्ति बना डाली। घास -फूस, सब्जी- फल , दाल -मसाले ,हीरे -जवाहरात और न जाने क्या -क्या। श्रद्धा की बयार बह रही है धरती पे --रंग-गुलाल उड़ाते ,नाचते गाते अगले बरस तू जल्दी आ बोलते भक्त। बप्पा सोचने लगे जल्दी कैसे आऊंगा , भादों सुदी गणेश चतुर्थी तक तो प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी ,पर भक्त का क्या है वो तो कुछ भी मांग सकता है , अब कल से अनन्त भगवान का धागा बंधेगा तो सब उनसे मांगने लगेंगे ,चलो कुछ दिन लम्बी तान के सोऊंगा ,पर फिर सोचा -- गणपति तुझे चैन कहाँ ,ब्रह्मा विष्णु महेश , देवी ,पितृ कोई भी पूजे जाएँ ,पहल तो गौरा के गणेश से ही होगी --चाहे मूर्ति का हो ,तस्वीर हो ,गोबर या सुपारी का हो --मुझे तो रहना ही होगा और फिर खुद ही बड़बड़ाये --''क्या जरूरत थी कार्तिकेय से जीतने की --अब वो आराम से रहते है सरकारी कर्मचारी की तरह और मैं --मल्टीनेशनल कम्पनी के एम्प्लॉय की तरह ट्वेंटीफोर इंटु सैवन काम कर रहा हूँ। ----और दनदनाती हुई माँ गौरा का प्रवेश ,माँ बहुत गुस्से में है --गणपति घबरा ही गये ,माँ तो कभी इतने गुस्से में नही रहतीं ---क्या हुआ मम्मा , किसी ने कुछ कह दिया ? ---
बेटा तूने देखा नही इंसान ने चॉकलेट के गणपति बनाये हैं ?
हाँ माँ मैं यही देख रहा हूँ तब से --आज तो विसर्जन भी है ,देख मेरी कितनी रंग बिरंगी मूर्तियां है।
हाँ देख रही हूँ ,मूर्ति और पूजा से अधिक पूजा करने कौन बड़ा सेलिब्रिटी आया और किसने कितना चढ़ावा चढ़ाया इसपे निगाह है।
जिस मूर्ति पे बड़े लोग जा रहे हैं उसकी ज्यादा पूछ है --ये समाज को एकसूत्र में पिरोने का उत्सव था पर अब हर गली मुहल्ले के अपने गणपति हो गये ---ये मानव जो न करे वो कम --केवल फायदा नुक्सान सोचता है और पूजा भी इसीलिये करता है।
गणपति बोले कोई बात नही माँ कुछ तो इनमें सच्चे भक्त भी हैं और फिर इस पखवाड़े में ही सही ,कुछ लोग तो नियम से चले ---इतने ही लोग काफी हैं समरसता के लिये ,ये धर्म का ह्रास न होने देंगे --पर ये तो आपके क्रोध का कारण नही हो सकता। अब माँ को याद आया वो तो क्रोधित थीं ,बोलीं --बेटे इसलिये ही तो तुम प्रथम-पूज्य हो ,अपनी बुद्धि और चातुर्य से मेरा क्रोध हर लिया ---
और फिर बोलीं --ये मानव सारी सृष्टि को तहस -नहस कर दिया। लालच और सुविधाओं को छोड़ने को तैयार नही और गो ग्रीन , पॉल्यूशन फ्री , इकोफ्रैंडली के नाम पे उटपटांग करतब करने लगता है --अब बर्दाश्त के बाहर हो गया है।
गणेश ने पूछा --माँ बताओ तो क्या हुआ ?
----तुम्हें तो पता है किसी मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा जब होती है तो देवता अपना अंश उसमे स्थापित करते हैं --इस मूर्ति को जीवित मान के ही उसकी पूजा अर्चना ,प्रसाद ,शयन सब होता है ---जहां ये सदैव नही हो सकता --वहां सकाम संकल्प ले के ,अल्पावधि के लिए ही प्राणप्रतिष्ठा होती है --जैसे गणपति या दुर्गा पूजन में ---- और एक निश्चित अवधि के बाद मूर्ति विसर्जन होता है।
है माँ मैं ये जानता हूँ ---पर क्रोधित क्यूँ हो आप ?
देख लाला --तालाबों में या कृत्रिम तालाबो में विसर्जन तो ठीक है ,वो सब भूमि में मिल जाएगा --पर ये चॉकलेट के गणपति बना के ,उसे दूध में घोल के गरीबों को पिला दो ---क्या आधुनिकता की होड़ में या अलग कहलाने की ललक में ये मानव ये भूल गया कि गणपति की इतने दिनों तक तुमने घर के सदस्य की तरह देख भाल की है --उसे घोल के पी जाओ ---जिसे इतने दिनों तक चेतन माना हो उसे घोल के पी जाओ --- काश इन आधुनिक कहलाने वाले लोगों से कोई कहे --गरीबों को चॉकलेट का दूध पिलाना है तो रोज पिलाओ न भई ,ये मेरे लाला के अंश के साथ क्यूँ तमाशा कर रहे हो ---
इकोफ्रैंडली के लिए पेड़ लगाओ ,सुविधाओं को कम करो ,दिन में दो घण्टे ही सही ,बिना AC के रहो ,कुछ देर पैदल चलो ,मांस मदिरा का सेवन कम करो ,और भी कई तरीके हैं पॉल्यूशन कम करने के --- ये संस्कारों के साथ खिलवाड़ न करो ---- मन्त्रों में शक्ति होती है उसे समझो ,प्राणप्रतिष्ठा की हुई मूर्ति को घोल के पीना याने ---अपने परिवार के सदस्य का भक्षण करना ---हे मानव अलग दिखने की चाहत में न स्वयं के लिए न दूसरे के लिए मुसीबतें बुला ---
सबसे सुंदर तो वो दृश्य होगा जब एक जगह के लोग मिलजुल के गणपति की मिटटी की मूरत बनाएंगे ---उसके विसर्जन से न पॉल्यूशन होगा न गन्दगी फैलेगी।
गणपति समझ चुके थे ये माँ का प्यार बोल रहा है --माँ को समझाते हुए बोले ---माँ ये कलयुग है --दिखावे का युग ,यहां कुछ भी हो सकता है ---- -
अगले बरस तू जल्दी आ ---- गणेश बैठे हैं स्वर्ग में ,अपनी प्रतिकृतियों का विसर्जन देख रहे हैं --सोच रहे हैं इंसान भी क्या है ,हर तरह की मूर्ति बना डाली। घास -फूस, सब्जी- फल , दाल -मसाले ,हीरे -जवाहरात और न जाने क्या -क्या। श्रद्धा की बयार बह रही है धरती पे --रंग-गुलाल उड़ाते ,नाचते गाते अगले बरस तू जल्दी आ बोलते भक्त। बप्पा सोचने लगे जल्दी कैसे आऊंगा , भादों सुदी गणेश चतुर्थी तक तो प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी ,पर भक्त का क्या है वो तो कुछ भी मांग सकता है , अब कल से अनन्त भगवान का धागा बंधेगा तो सब उनसे मांगने लगेंगे ,चलो कुछ दिन लम्बी तान के सोऊंगा ,पर फिर सोचा -- गणपति तुझे चैन कहाँ ,ब्रह्मा विष्णु महेश , देवी ,पितृ कोई भी पूजे जाएँ ,पहल तो गौरा के गणेश से ही होगी --चाहे मूर्ति का हो ,तस्वीर हो ,गोबर या सुपारी का हो --मुझे तो रहना ही होगा और फिर खुद ही बड़बड़ाये --''क्या जरूरत थी कार्तिकेय से जीतने की --अब वो आराम से रहते है सरकारी कर्मचारी की तरह और मैं --मल्टीनेशनल कम्पनी के एम्प्लॉय की तरह ट्वेंटीफोर इंटु सैवन काम कर रहा हूँ। ----और दनदनाती हुई माँ गौरा का प्रवेश ,माँ बहुत गुस्से में है --गणपति घबरा ही गये ,माँ तो कभी इतने गुस्से में नही रहतीं ---क्या हुआ मम्मा , किसी ने कुछ कह दिया ? ---
बेटा तूने देखा नही इंसान ने चॉकलेट के गणपति बनाये हैं ?
हाँ माँ मैं यही देख रहा हूँ तब से --आज तो विसर्जन भी है ,देख मेरी कितनी रंग बिरंगी मूर्तियां है।
हाँ देख रही हूँ ,मूर्ति और पूजा से अधिक पूजा करने कौन बड़ा सेलिब्रिटी आया और किसने कितना चढ़ावा चढ़ाया इसपे निगाह है।
जिस मूर्ति पे बड़े लोग जा रहे हैं उसकी ज्यादा पूछ है --ये समाज को एकसूत्र में पिरोने का उत्सव था पर अब हर गली मुहल्ले के अपने गणपति हो गये ---ये मानव जो न करे वो कम --केवल फायदा नुक्सान सोचता है और पूजा भी इसीलिये करता है।
गणपति बोले कोई बात नही माँ कुछ तो इनमें सच्चे भक्त भी हैं और फिर इस पखवाड़े में ही सही ,कुछ लोग तो नियम से चले ---इतने ही लोग काफी हैं समरसता के लिये ,ये धर्म का ह्रास न होने देंगे --पर ये तो आपके क्रोध का कारण नही हो सकता। अब माँ को याद आया वो तो क्रोधित थीं ,बोलीं --बेटे इसलिये ही तो तुम प्रथम-पूज्य हो ,अपनी बुद्धि और चातुर्य से मेरा क्रोध हर लिया ---
और फिर बोलीं --ये मानव सारी सृष्टि को तहस -नहस कर दिया। लालच और सुविधाओं को छोड़ने को तैयार नही और गो ग्रीन , पॉल्यूशन फ्री , इकोफ्रैंडली के नाम पे उटपटांग करतब करने लगता है --अब बर्दाश्त के बाहर हो गया है।
गणेश ने पूछा --माँ बताओ तो क्या हुआ ?
----तुम्हें तो पता है किसी मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा जब होती है तो देवता अपना अंश उसमे स्थापित करते हैं --इस मूर्ति को जीवित मान के ही उसकी पूजा अर्चना ,प्रसाद ,शयन सब होता है ---जहां ये सदैव नही हो सकता --वहां सकाम संकल्प ले के ,अल्पावधि के लिए ही प्राणप्रतिष्ठा होती है --जैसे गणपति या दुर्गा पूजन में ---- और एक निश्चित अवधि के बाद मूर्ति विसर्जन होता है।
है माँ मैं ये जानता हूँ ---पर क्रोधित क्यूँ हो आप ?
देख लाला --तालाबों में या कृत्रिम तालाबो में विसर्जन तो ठीक है ,वो सब भूमि में मिल जाएगा --पर ये चॉकलेट के गणपति बना के ,उसे दूध में घोल के गरीबों को पिला दो ---क्या आधुनिकता की होड़ में या अलग कहलाने की ललक में ये मानव ये भूल गया कि गणपति की इतने दिनों तक तुमने घर के सदस्य की तरह देख भाल की है --उसे घोल के पी जाओ ---जिसे इतने दिनों तक चेतन माना हो उसे घोल के पी जाओ --- काश इन आधुनिक कहलाने वाले लोगों से कोई कहे --गरीबों को चॉकलेट का दूध पिलाना है तो रोज पिलाओ न भई ,ये मेरे लाला के अंश के साथ क्यूँ तमाशा कर रहे हो ---
इकोफ्रैंडली के लिए पेड़ लगाओ ,सुविधाओं को कम करो ,दिन में दो घण्टे ही सही ,बिना AC के रहो ,कुछ देर पैदल चलो ,मांस मदिरा का सेवन कम करो ,और भी कई तरीके हैं पॉल्यूशन कम करने के --- ये संस्कारों के साथ खिलवाड़ न करो ---- मन्त्रों में शक्ति होती है उसे समझो ,प्राणप्रतिष्ठा की हुई मूर्ति को घोल के पीना याने ---अपने परिवार के सदस्य का भक्षण करना ---हे मानव अलग दिखने की चाहत में न स्वयं के लिए न दूसरे के लिए मुसीबतें बुला ---
सबसे सुंदर तो वो दृश्य होगा जब एक जगह के लोग मिलजुल के गणपति की मिटटी की मूरत बनाएंगे ---उसके विसर्जन से न पॉल्यूशन होगा न गन्दगी फैलेगी।
गणपति समझ चुके थे ये माँ का प्यार बोल रहा है --माँ को समझाते हुए बोले ---माँ ये कलयुग है --दिखावे का युग ,यहां कुछ भी हो सकता है ---- -
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