खाना पकाना और खिलाना |आज जब ये मायें और पत्नियाँ काम करने बाहर भी निकल चुकी है -तब भी व्रत पूरी निष्ठा और अनुष्ठान से करती हैं | बेटे के लिए व्रत जब वो शादी के बाद माँ को भूल चुका हो | उस पति के लिए व्रत जो उसे शराब पी के रोज नारकीय जिन्दगी जीने को मजबूर करता हो और रोज कम से कम एक बार अवश्य मूर्खा घोषित करता हो | हर व्रत की कई आंचलिक कहानियाँ और अलग अलग विधियाँ जो चाहे अपनाओ पर संकेत एक ही जिस स्त्री का व्रत टूटा उसके पति- पुत्र और परिवार पे भयानक संकट ! कितना ही आधुनिक हो जाएँ हम और कितना ही पढ़-लिख लें पर इन व्रत-उपासनाओं को छोड़ ही नहीं पाती हैं |शायद परिवार की खुशहाली ही सबसे बड़ी ख़ुशी होती है स्त्रियों के लिये और यही भावना उर्जा भी देती है इन सब अनुष्ठानों को निबाहने की , वरना उम्र तो इन्सान लिखवा के आया है सभी को भान है |
आज जीवितपुत्रिका व्रत है जो आश्विन कृष्णा अष्टमी को पड़ता है ,कई कहानियाँ और कई विधियाँ मनाने की | सुबह सरगी पारायण ,फिर निर्जल व्रत, दूसरे दिन मुहूर्त पड़ने पर व्रत पारायण | एक बात जो मुझे आज ही पता चली कि बनारस में या यूँ कहिये पूरब में इस जियुतिया व्रत के लिए स्त्रियाँ दाहिने हाथ की चूड़ियाँ अनन्तचतुर्दशी के दिन ही निकाल देती है ,नहीं तो पुत्र के प्राण संकट में पड़ जायेंगे , और आश्चर्य ये कि मेरी मेड ने भी चूड़ियाँ उतार दीं और कई प्रोफेसरस की पत्नियों ने भी | यहाँ तक कि एक तो खुद भी डाक्टर हैं |वो स्त्रियाँ जो चूड़ी न पहनने को अपशकुन मानती हैं ,पुत्र की लम्बी उम्र के लिए उन्हें उतारने में भी संकोच नहीं करतीं और इस सारी कवायद से मेरा मकसद भी यही है की पुत्र जब अपनी जिन्दगी में आगे बढ़ गया तो उसके पास माँ के लिए समय नहीं होता है ,रोज फोन पे आवाज सुनने को तरसती माँ को ये कहा जाता है की क्या बात करूँ रोज की रोज | मैं कई माओं को देख रही हूँ जो कई कई दिनों तक बच्चों से बात न होने के कारण बीमार रहने लगीं है ,पर आज भी हर व्रत कर रही हैं चाहे पति के लिए हो या बच्चों के लिए और यही ममतामयी माँ- स्त्री- बेटी -बहन , दोयम दर्जे की नागरिक है और उसके अहसासों को समझने का समय किसी के पास नहीं है चाहे वो एक मेड है या डाक्टर या टीचर ---वो परिवार की खुशहाली के नाम पे अपनी आहुति देती रहेगी क्यूंकि वो धरती है सृजन का दर्द सहने वाली |आभा |
आज जीवितपुत्रिका व्रत है जो आश्विन कृष्णा अष्टमी को पड़ता है ,कई कहानियाँ और कई विधियाँ मनाने की | सुबह सरगी पारायण ,फिर निर्जल व्रत, दूसरे दिन मुहूर्त पड़ने पर व्रत पारायण | एक बात जो मुझे आज ही पता चली कि बनारस में या यूँ कहिये पूरब में इस जियुतिया व्रत के लिए स्त्रियाँ दाहिने हाथ की चूड़ियाँ अनन्तचतुर्दशी के दिन ही निकाल देती है ,नहीं तो पुत्र के प्राण संकट में पड़ जायेंगे , और आश्चर्य ये कि मेरी मेड ने भी चूड़ियाँ उतार दीं और कई प्रोफेसरस की पत्नियों ने भी | यहाँ तक कि एक तो खुद भी डाक्टर हैं |वो स्त्रियाँ जो चूड़ी न पहनने को अपशकुन मानती हैं ,पुत्र की लम्बी उम्र के लिए उन्हें उतारने में भी संकोच नहीं करतीं और इस सारी कवायद से मेरा मकसद भी यही है की पुत्र जब अपनी जिन्दगी में आगे बढ़ गया तो उसके पास माँ के लिए समय नहीं होता है ,रोज फोन पे आवाज सुनने को तरसती माँ को ये कहा जाता है की क्या बात करूँ रोज की रोज | मैं कई माओं को देख रही हूँ जो कई कई दिनों तक बच्चों से बात न होने के कारण बीमार रहने लगीं है ,पर आज भी हर व्रत कर रही हैं चाहे पति के लिए हो या बच्चों के लिए और यही ममतामयी माँ- स्त्री- बेटी -बहन , दोयम दर्जे की नागरिक है और उसके अहसासों को समझने का समय किसी के पास नहीं है चाहे वो एक मेड है या डाक्टर या टीचर ---वो परिवार की खुशहाली के नाम पे अपनी आहुति देती रहेगी क्यूंकि वो धरती है सृजन का दर्द सहने वाली |आभा |
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