दीदी दिवाली का इनाम का देइबो --सोनी की उत्सुकता।
अभी क्यों बताऊं ,कल दूंगी देख लेना --
नाही ऐसा न करो ,बता दो।
क्यूँ फिर कल तेरी पाने की ख़ुशी कम नही हो जायेगी।
नाही दिदिया ऐ बात नाही ,जो कछु भी देबो ऐसा देबो जे हमारी लौंडी [मुझे ये शब्द पसंद नही है पर हरदोई के आसपास यही बोलते हैं शायद बिटिया को ] के काम का रहीं।
क्यों तेरी बेटी जहां काम कर रही है वहां से मिलेगा न उसे ,मैं तो तुझे ही दूंगी , तेरी भी तो दीवाली है।
नाही दिदिया ए बात नाही ,हमरो तो चलि जाबो ,लौंडी को ब्या है -
अरे तेरी बेटी तो पन्द्रह वर्ष की है ,कोई जरूरत नही अभी उसका ब्याह करने की ,पर क्या मेरा समझाना काम आएगा। गरीब की बेटी ,बचपन से ही कमाने लगी है ,अब एक लड़का मिल गया गाँव में। लड़का पढ़ रहा है --[मुझे विशवास नही हुआ ] घर जमीन है खेती बारी है , लरकी जात ,समय खराब है ,कब ऊँचनीच हो जाए ,लड़की का बाप कमाता नही बीमार भी है ,आठ बच्चों में तीन भाइयों और तीन बहनों की शादी हो गयी। अब ये लड़की है ,आँख बन्द होने से पहले अपने घर चली जाए ,पढ़ लिख के भी यही काम करेगी ,कम से कम घर तो मिल जाएगा --फिर लौंडा जो चाहे करे --उससे घर की इज्जत पे फर्क नही पड़ता --इज्जत की रखवाली तो लड़की ही है ------
गरीब को कैसे समझाओ ,उनकी सोच तो एक ही सांचे में ढल चुकी है। उन्हें लगता है पढ़-लिख के कुछ और बनने वाली लड़कियां तो मेमसाब लोगों की ही हो सकती हैं। ये काम चुने हुए सांसद कर सकते हैं या एनजीओ पर ये सब अपना घर भरने और अपने राजनैतिक एजेंडा चलाने में व्यस्त हैं ,हम जैसे लोग भरसक प्रयत्न करते हैं पर सहारा तो नही दे सकते ---
दहेज की मांग भी है क्या ?
हाँ दिदिया गाड़ी मांगो है।
गाड़ी ! मतलब ? मोटरसाइकल।
हां वही --
अब कहिये बेटी बचाओ बेटी पढाओ --इनके लिए तो बेटी बोझ ही है --मैंने कहा दहेज लेना तो जुर्म है --तो बोली दीदी ,लड़की को कभी नही छोड़ेगा ये लिखवा लिया है --तीन भाई हैं कर्जा लेके देंगे ,मुसलमानों में तो दूकान लिखवाते हैं अपने नाम ये तो गाडी ही मांग रहा है ---
पढ़ेगा समाज तभी तो आगे बढ़ेगा --ये केवल टीवी का ऐड है और कुछ नही ---सोलह वर्ष वाली पीढ़ी भी नही पढ़ रही तो सुधार कैसे होगा ---राजनीतिज्ञों को अपने घरेलू झगड़ों और महागठबंधन बनाने की कवायद के अलावा कुछ दीखता ही नही ---कैसे शुभदीवाली ---
अभी क्यों बताऊं ,कल दूंगी देख लेना --
नाही ऐसा न करो ,बता दो।
क्यूँ फिर कल तेरी पाने की ख़ुशी कम नही हो जायेगी।
नाही दिदिया ऐ बात नाही ,जो कछु भी देबो ऐसा देबो जे हमारी लौंडी [मुझे ये शब्द पसंद नही है पर हरदोई के आसपास यही बोलते हैं शायद बिटिया को ] के काम का रहीं।
क्यों तेरी बेटी जहां काम कर रही है वहां से मिलेगा न उसे ,मैं तो तुझे ही दूंगी , तेरी भी तो दीवाली है।
नाही दिदिया ए बात नाही ,हमरो तो चलि जाबो ,लौंडी को ब्या है -
अरे तेरी बेटी तो पन्द्रह वर्ष की है ,कोई जरूरत नही अभी उसका ब्याह करने की ,पर क्या मेरा समझाना काम आएगा। गरीब की बेटी ,बचपन से ही कमाने लगी है ,अब एक लड़का मिल गया गाँव में। लड़का पढ़ रहा है --[मुझे विशवास नही हुआ ] घर जमीन है खेती बारी है , लरकी जात ,समय खराब है ,कब ऊँचनीच हो जाए ,लड़की का बाप कमाता नही बीमार भी है ,आठ बच्चों में तीन भाइयों और तीन बहनों की शादी हो गयी। अब ये लड़की है ,आँख बन्द होने से पहले अपने घर चली जाए ,पढ़ लिख के भी यही काम करेगी ,कम से कम घर तो मिल जाएगा --फिर लौंडा जो चाहे करे --उससे घर की इज्जत पे फर्क नही पड़ता --इज्जत की रखवाली तो लड़की ही है ------
गरीब को कैसे समझाओ ,उनकी सोच तो एक ही सांचे में ढल चुकी है। उन्हें लगता है पढ़-लिख के कुछ और बनने वाली लड़कियां तो मेमसाब लोगों की ही हो सकती हैं। ये काम चुने हुए सांसद कर सकते हैं या एनजीओ पर ये सब अपना घर भरने और अपने राजनैतिक एजेंडा चलाने में व्यस्त हैं ,हम जैसे लोग भरसक प्रयत्न करते हैं पर सहारा तो नही दे सकते ---
दहेज की मांग भी है क्या ?
हाँ दिदिया गाड़ी मांगो है।
गाड़ी ! मतलब ? मोटरसाइकल।
हां वही --
अब कहिये बेटी बचाओ बेटी पढाओ --इनके लिए तो बेटी बोझ ही है --मैंने कहा दहेज लेना तो जुर्म है --तो बोली दीदी ,लड़की को कभी नही छोड़ेगा ये लिखवा लिया है --तीन भाई हैं कर्जा लेके देंगे ,मुसलमानों में तो दूकान लिखवाते हैं अपने नाम ये तो गाडी ही मांग रहा है ---
पढ़ेगा समाज तभी तो आगे बढ़ेगा --ये केवल टीवी का ऐड है और कुछ नही ---सोलह वर्ष वाली पीढ़ी भी नही पढ़ रही तो सुधार कैसे होगा ---राजनीतिज्ञों को अपने घरेलू झगड़ों और महागठबंधन बनाने की कवायद के अलावा कुछ दीखता ही नही ---कैसे शुभदीवाली ---