Sunday, 16 October 2016

तुलसी बाबा का भी कोई जवाब नहीं --कह रहे  हैं ---
'' अमिअ गारि गारेउ गरल गारी कीन्ह करतार।
प्रेम बैर की जननी जुग जानहिं  बुध न गंवार।।''
 ब्रह्माजी ने अमृत और विष को निचोड़ के उनका सार निकाला और उसे गाली का नाम दिया ,इसलिये  गाली प्रेम और बैर दोनों की जननी है , बुद्धिमान लोग गाली को गाली लेते हैं पर गंवार नही --यदाकदा अपने प्रिय को या बच्चों को हम गाली से नवाजते हैं ,गाँवों में तो ये बहुत प्रचलित है --शादी के समय दी जाने वाली गाली प्रेम बढाती  है पर द्वेष में बोली जाने वाली वैमनस्य बढाती है।
 तो मित्रों गाली अमृतविष की बेटी है इसे जो समझ के ग्रहण  करोगे ये वैसी ही बन जायेगी ---
आजकल सोसियल मीडिया  में गरियाने  की परम्परा  है इसलिए लिखदिया  --जिसे गाली देते हो  उसे जरा-जरा सा अमृत भी दे रहे हो ध्यान रखें --- 

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