Monday, 24 October 2016

''हवन प्राण से  प्राणों का ''
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ऊपर वाले; तेरी ,छतरी के नीचे ,
क्यूँ जन्मों के -
प्रणय-प्यार के बन्धन टूटे ?
जन्मों से जन्मों तक कसमे
सूखी आँखें सागर महसूसें
अधरों पे अहसास प्रणय का
जीवन अमावसों की गठरी
सच सपने मन की बाहों में
प्राण मुखर, हाँ ना की दुविधा
कर्म भाग्य की परिधि सीमित
बरखा बून्दें   लड़ियां  साँसें
टूट -टूट धरा पे बिखरें
सागर की लहरों सी मचलें।
वो लज्जा वो संकोच पलों का
मिलन !या - मिलने की चाहत ?
कभी तीर  पे वो होता
या ;  खड़ी तीरे  ''मैं'' नापूं दूरी
गूँगे पल , प्राण  पियासा 
आतुर चाह समर्पण चाहे
मृग छौनों सा चंचल  मन
बादल सजल भावों  के लेकर
रिमझिम -रिमझिम बरस- बरस के
तन- मन- प्राण भिगोता क्यूँ है ?
मन  अंगारों की फुलझड़ियों से
एकाकीपन क्यूँ अभिसारित ?
प्राणों का  ही हवन प्राण में
मौन समर्पण, कम्पित तन मन
साँसों में साँसों  का गोपन
फिर भी --
ऊपर वाले तेरी छतरी के नीचे --
प्रणय -प्यार के बन्धन टूटे --क्यूँ टूटे ? ॥ आभा ॥





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