दुःख में सुख की चिंगारी --और मुझे तो वो दुःखी होने ही नही देता ---कहता है --दुःख तो तेरी निजी वस्तु है ,उसको मन में ही रख तू ---कर प्रणाम ,अभिवादन --अभिनन्दन ,दे आशीष प्यार की सरिता बन ---
हम ! हिन्दू मन सदैव प्रकाशित ,अन्धकार में भी सदा आलोकित रहने वाले , दुःख में भी सुख की छिपी चिंगारी ढूंढने वाले ; अमावस की रात में चाँद तारे नहीं तो क्या , रामजी भी तो वनवास के बाद अमावस में ही लौटे थे ,वो जान के अन्धकार में लौटे हैं मन को प्रकाशित करेंगे ,करो प्रकाश ! --
अन्धकार में ही छिपी होती है प्रकाश की किरण।
आज सर्वपितृ अमावस , पितृ -विसर्जन - --पितृ तो भाव हैं ,भाव का कैसा विसर्जन।
प्रभु के खेल अनोखे , अजय ने अमावस को ही महाप्रयाण किया -तब से अमावस मेरे लिये जीने का भाव हो गयी। पर कान्हा ने आज चुपके से कान में कहा --गीता पढ़ती है न ; तो तुझे पता होना चाहिए --
''सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्। ''
तो दुःख क्यों ?आगे कर्म खड़े हैं ,उन्हें कर।
''कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।''--------सारे ही कर्म कुछ न कुछ दोष युक्त हैं। तेरा कर्म है प्यार बांटना ,चल उठ --और मैं अमावस से बाहर निकल आयी ,राम कृष्ण का जीवन दुःख में उल्लसित होना सिखाता है। मुझे तो दुःख-सुख दोनों साथ ही देती है जिंदगी।
आज सुबह पितृ विसर्जन ---गाय और कव्वा ढूंढते हुए खूब सैर हुई।
और अब जन्मदिन का उत्साह ---मेरे घर आने वाली नयी बिटिया --वैधानिक बिटिया [दुल्हिन ] प्रभु ने मिलने का विधान लिखा --तो वैधानिक ही हुई --का'' जन्मबार '' ---मुझे मिलने के बाद ये पहला जन्मदिवस ,और वो भी अजय के श्राद्ध के दिन -----तुम्हें दोनों का ही आशीष मिला बिटिया ---
आओ मेरे अंगना ,
फूलों के झूले में डोलो ,
चम्पा कली सी महको।
जुगनू सी चमको मेरे आंगन
खिलखिलाओ ,खुश रहो हमेशा
प्यार मिले सबका तुमको।
स्वागत मेरे घर में ---जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें -''-रितिका बिटिया'' , ढेरों आशीष ,प्यार मिले ,प्यार ही बांटो।
सोच रहे होंगे सभी के बच्चों की शादी होती है ---नितांत व्यक्तिगत मामला .क्यों लिखा जाए यहाँ पर --लिखना बनता है मेरा --क्यूँ ?तो देखिये मैंने सभी तरह की ढूंढ -ढांढ से तंग आकर पिछले वर्ष नवरात्रि में यहीं पे माँ से मांगी थी मुराद ---आसमानो से होके पहुंची माँ के चरणों में और इस वर्ष नवरात्रों से पहले माँ ने पूरी कर दी ---तो माँ को प्रणाम भी तो यहीं से करूंगी न ---साथ ही पुरानी --दिनांक 5 ,नवम्बर 2015 का प्रार्थना पत्र भी संलग्न है ---
''महा लक्ष्मी चल तो दी होगी माँ तू क्षीर सागर से ,विष्णु जी तो निद्रा मग्न हैं ,देवप्रबोधनी को उठेंगे ! माँ तू गणपति संग आती है ,इतनी दूर आते -आते थक जाती होगी। तुझसे क्या मांगें माँ ,सभीने अपनी डिमांड लिस्ट बनाई होगी ,पर तू कौनो सभी की लिस्ट का अवलोकन करेगी। मुझे पता है गणपति महाराज को पास ऑन कर देगी और वो बट्टे खाते में डाल देंगे जहां मूषक महाराज भी होंगे। माँ जो तूने दिया है तेरा प्रसाद समझके भोग रही हूँ ,तुझे पता ही होगा मैं कोई शिकायत भी नहीं करती हूँ पर माँ है मन की बात तो कह ही सकती हूँ। इस बार एक मदद चाहिये माँ ! अब मदद तो करेगी न ,अभी तो प्रभु सोये हैं तो तेरे पास समय भी है और साथ में बप्पा भी हैं --माँ आते आते मेरे लिये एक ''बहू '' लेती आना ढूंढ -ढांड के --ऐसी जो बेटे को भा जाये और जिसे बेटा भा जाये। मैंने तो सारे घोड़े दौड़ा लिए हैं ,पर जिसे तूने मेरे बेटे के लिये चुना होगा वो कहां हैं मिल ही नहीं रही है माँ। अब तेरी मदद की जरूरत आन पड़ी है ,अब तुझे तो मालूम ही है माँ वो कौन है ,बस अपने संग ले आ माँ ,ताकि विष्णुजी के जगने से पहले ,आने वाले साये देख लूँ और दिन नियत करूँ मेरे घर में भी मंगल वाद्य बजें। समय आयेगा तो सब हो जाएगा --पर माँ ''का बरसा जब कृषि सुखाने '' अब समय और जोड़ी दोनों को लाने में मदद कर माँ ---अड्वान्स में कह रही हूँ ,ताकि तू दायें -बायें न करे ,गाँठ बाँध ले ,भूलना मत --देख मैंने कभी कुछ नहीं माँगा ,और आज भी धन-दौलत नहीं मांग रही हूँ ,बस ढूंढने में मदद करने के लिए कह रही हूँ --मान लेना माँ मेरी विनय को --तेरे आगमन की प्रतीक्षा में तेरी पुत्री और एक माँ -----''---धन्यवाद ,धन्यवाद ,धन्यवाद माँ --तुझे लाखों प्रणाम --
आप सभी का आशीष मिले मेरी इस बिटिया को ऐसी आशा मेरी धृष्टता ही है पर आशा है ---
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