नवरात्रि ---दुर्गासप्तशती आज के सन्दर्भ में
.....''.विष्णुकरणमलोद्भूतौ दानवौ मधुकैटभौ।
......महाबलौ च तौ दैत्यौ विवृध्दौ सागरे जले।।''----------
कान के मैल से पैदा हुए राक्षस। प्रलय के बाद की शांति में विष्णु की थोड़ी सी लापरवाही ''अभी शांति है ,अराजक तत्व जल मग्न हैं ,ब्रह्मा और शंकर अपना -अपना कार्य निष्ठा से कर रहे हैं ,तो चलो मैं एक झपकी ले लूँ। '' विष्णु =समस्त सृष्टि का विस्तार --वो जो ब्रह्मांड में व्याप्त है --''अनेकवक्त्रंयमनेकाद्भुतदर्शनम् ''---गीता ----
''अनेकबाहुदरवक्त्रनेत्रं
पश्यामि त्वां सर्वतोअनन्तरूपम्।
नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं
पस्यामि विश्वेष्वर विश्वरूप। '' ----गीता ---
अनेक हाथ ,अनेक पेट ,मुख नेत्र --अर्थात जिसका न आदि है न अन्त है न ही कोई मध्य है ---ऐसा है स्वरूप इस ब्रह्मांड का और वही विष्णु है ---चेतना का विस्तार।
यह विष्णु सो गया ---अनन्त महासागर में सर्पों की शैया में ---. ]जब हम नींद में हैं तो जीवन का आधार खो चुके होते हैं , इस भवसागर में केवल अदृश्य शक्ति के सहारे ही होते हैं ,साथ ही शरीर के बढ़ने और हृष्ट-पुष्ट होने की समस्त क्रियाएं भी नींद में ही होती हैं ]---चेतना लुप्त हो गयी ,शक्ति श्री हीन हुई केवल उसके पैर दबा रही है। उपद्रव तब ही होंगे जब चेतना सो जायेगी वो भी राजकीय चेतना , चेतना सोई तो श्री भी श्रीहीन हो गयी। उपद्रव रूपी राक्षस उत्पन्न हुए ---- एक कान से दूसरे कान अफवाह फैली --किसी के कामकी तो मीठी यानी --''मधु '' ,किसी के लिए परेशानी का सबब यानी ''कैटभ ''।
इन दोनों असुरों ने सोचा --हम ही हम हैं जहां देखो। कान ही कान और मैल ही मैल , मस्तिष्क में व्याप्त द्रव्य - में तैरते हुए -हम आये कहाँ से ,किसने हमें पैदा किया --चलो पता लगाते हैं , अकारण तो कुछ भी नही होता --
''नाकारणं भवेत्कार्यं सर्वत्रैषा परम्परा ''
... ''आधेयं तु विनाधारम् न तिष्ठति कथञ्चन। ''----श्रीमद्देवीभागवत --
बिना आधार के आधेय की कोई सत्ता नही होती ,तो मधु कैटभ दोनों भाई अपने पैदा करने वाले को ढूंढने लगे।
जब उन्हें कोई भी नही मिला ,[अब थे तो मस्तिष्क की ही उपज (चाहे कर्ण छिद्रों से मैल बन के बहे या --बाहर से कोई अफवाह कान में डाउनलोड हो ) '']---तो उन्होंने विचार किया ,हम दोनों का आधार अवश्य कोई अचल महाबली शक्ति है ,उसकी कृपा से ही हम इस महासागर में बढ़ रहे हैं एवं बलवान भी होते जा रहे हैं ---चलो उसी का ध्यान करते हैं और अपने को जानते है ----
दोनों असुरों ने ध्यान लगाया , तभी आकाश में बिजुली कड़की और उन्हें उसमें ऐं शब्द सुनाई दिया --उन्होंने सोचा यही शक्ति है यही मन्त्र है ---
''ताभ्यां विचारितं तत्र मंत्रोअयं नात्र संशय '' ---श्रीमद्देवीभागवद --
बस उस बिजुली और ऐं का ध्यान पूजा- समाधिस्थ भाव से करने लगे। ऐसे ही जैसे सत्य को क्षीण करने के लिये असत्य अपनी पूरी ताकत झोंक देता है --
शक्ति प्रसन्न हुई --शक्ति अर्थात कार्य क्षमता ,लगन ,कर्मठता और समर्पण ---कर्मण्येवाधिकारस्ते ---काम करने के प्रति समर्पण की हद तक लगन ---फल निश्चित होता है --कर्म चाहे सुर करे या असुर ---
''यं यं चिन्तयते कामम् तं तं प्राप्नोति निश्चितं ''----- दुर्गासप्तशती --
-शक्ति प्रसन्न हुई और आशीष मिला। इच्छा मृत्यु का ---
''वाञ्छितं मरणं दैत्यो भवेद्वां मत प्रसादतः । ''-----श्रीमद्देविभागवद --
------
मधु-कैटभ का ब्रह्मा को देख, उनसे उनका कमलासन माँगना और न देने पे उन्हें युद्ध करने की चुनौती देना ,ब्रह्मा का सोचना मैं तो तपस्वी हूँ इन दैत्यों से न जीत पाऊंगा फिर क्या करूँ ?उन्होंने ध्यान लगाया --देखा विष्णु तो सो रहे हैं ,अब क्या होगा , इन दैत्यों को कौन मारेगा ? ब्रह्मा ने विष्णु की अनेकों प्रकार से स्तुति की ,पर विष्णु नही जगे ,तब ब्रह्मा जी ने विचार किया अवश्य ही विष्णु शक्ति योगनिद्रा के वश में हो गये हैं ---फिर वो उस शक्ति योगनिद्रा की स्तुति करने लगे। वो शक्ति जिसने महाशक्तिशाली विष्णु को भी अचेतन कर दिया --वो ही इन कर्ण दैत्यों से संसार को बचा सकती है ----
जी यही सत्य है , विलुप्त चेतना पे जब कानाफूसी सवार हो जाये ,अफवाहों के बवंडर उठें , सत्य को नकारने के लिये --मधुकैटभ --सहस्त्रों कर्णों में मैल बन शक्तिशाली असुर बन जायें --तो सत्य हारने की कगार पे पहुंच जाता है ,निष्प्रभ व श्री हीन हो जाता है --असुरों में एकता और बल कई गुना होते हैं ---ऐसे में सदाचारी महाशक्ति ही एक मात्र सहारा होती है --शक्ति का स्तवन ही उपद्रवों को समाप्त करता है।
-----इस शक्ति की उपासना का पर्व ही है दुर्गापूजा ,नवरात्रि --विष्णु को जगाने का पर्व ,विश्व चेतना जागे , मधुकैटभ जो हवाओं से तिरते हुए मस्तिष्क रूपी ब्रह्मांड के जल में फल-फूल रहे हैं , उनके निस्तारण का ''पर्व , अपनी शक्ति को पहचानने का पर्व ---
''उत्तिष्ठ देवि कुरु रूपमिहाद्भुतं त्वं
मां वा त्विमौ जहि यथेच्छासि बाललीले।
नोचेत्प्रबोधय हरिं निहनेदिमौ य -
सत्वत्साध्यमेतदखिलं किल कार्यजातम् ॥ ''.....
-------हे देवी अब आप उठिये और अपना अद्भुत रूप धारण कीजिये ,हे बाललीलाकारिणी ! अपनी इच्छानुसार चाहे मुझे मार दें अथवा इन दोनों दैत्यों को मार दें या तो भगवान विष्णु को जगा दें ,ये काम करने में आप ही सक्षम हैं। -------------
चंडी पाठ का प्रथम अध्याय ही शक्तिस्तवन से प्रारम्भ होता है ---निद्रा आवश्यक है शरीर के लिये पर चेतन निद्रा -- अफवाहों ,अफवाह फैलाने वालों , आसुरी प्रवृतियों ,और देशद्रोही ,समाजद्रोही प्रवृतियों के प्रति लापरवाही, सर्पों की शैया में ली जाने वाली निद्रा ही होती है --जो मधुकैटभ को पनपने का अवसर देती है -- बस यूँ ही मेरी सोच ---नवरात्रि के उपलक्ष में --
--- नवरात्रि की मंगलकामनायें ---आभा --
.....''.विष्णुकरणमलोद्भूतौ दानवौ मधुकैटभौ।
......महाबलौ च तौ दैत्यौ विवृध्दौ सागरे जले।।''----------
कान के मैल से पैदा हुए राक्षस। प्रलय के बाद की शांति में विष्णु की थोड़ी सी लापरवाही ''अभी शांति है ,अराजक तत्व जल मग्न हैं ,ब्रह्मा और शंकर अपना -अपना कार्य निष्ठा से कर रहे हैं ,तो चलो मैं एक झपकी ले लूँ। '' विष्णु =समस्त सृष्टि का विस्तार --वो जो ब्रह्मांड में व्याप्त है --''अनेकवक्त्रंयमनेकाद्भुतदर्शनम् ''---गीता ----
''अनेकबाहुदरवक्त्रनेत्रं
पश्यामि त्वां सर्वतोअनन्तरूपम्।
नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं
पस्यामि विश्वेष्वर विश्वरूप। '' ----गीता ---
अनेक हाथ ,अनेक पेट ,मुख नेत्र --अर्थात जिसका न आदि है न अन्त है न ही कोई मध्य है ---ऐसा है स्वरूप इस ब्रह्मांड का और वही विष्णु है ---चेतना का विस्तार।
यह विष्णु सो गया ---अनन्त महासागर में सर्पों की शैया में ---. ]जब हम नींद में हैं तो जीवन का आधार खो चुके होते हैं , इस भवसागर में केवल अदृश्य शक्ति के सहारे ही होते हैं ,साथ ही शरीर के बढ़ने और हृष्ट-पुष्ट होने की समस्त क्रियाएं भी नींद में ही होती हैं ]---चेतना लुप्त हो गयी ,शक्ति श्री हीन हुई केवल उसके पैर दबा रही है। उपद्रव तब ही होंगे जब चेतना सो जायेगी वो भी राजकीय चेतना , चेतना सोई तो श्री भी श्रीहीन हो गयी। उपद्रव रूपी राक्षस उत्पन्न हुए ---- एक कान से दूसरे कान अफवाह फैली --किसी के कामकी तो मीठी यानी --''मधु '' ,किसी के लिए परेशानी का सबब यानी ''कैटभ ''।
इन दोनों असुरों ने सोचा --हम ही हम हैं जहां देखो। कान ही कान और मैल ही मैल , मस्तिष्क में व्याप्त द्रव्य - में तैरते हुए -हम आये कहाँ से ,किसने हमें पैदा किया --चलो पता लगाते हैं , अकारण तो कुछ भी नही होता --
''नाकारणं भवेत्कार्यं सर्वत्रैषा परम्परा ''
... ''आधेयं तु विनाधारम् न तिष्ठति कथञ्चन। ''----श्रीमद्देवीभागवत --
बिना आधार के आधेय की कोई सत्ता नही होती ,तो मधु कैटभ दोनों भाई अपने पैदा करने वाले को ढूंढने लगे।
जब उन्हें कोई भी नही मिला ,[अब थे तो मस्तिष्क की ही उपज (चाहे कर्ण छिद्रों से मैल बन के बहे या --बाहर से कोई अफवाह कान में डाउनलोड हो ) '']---तो उन्होंने विचार किया ,हम दोनों का आधार अवश्य कोई अचल महाबली शक्ति है ,उसकी कृपा से ही हम इस महासागर में बढ़ रहे हैं एवं बलवान भी होते जा रहे हैं ---चलो उसी का ध्यान करते हैं और अपने को जानते है ----
दोनों असुरों ने ध्यान लगाया , तभी आकाश में बिजुली कड़की और उन्हें उसमें ऐं शब्द सुनाई दिया --उन्होंने सोचा यही शक्ति है यही मन्त्र है ---
''ताभ्यां विचारितं तत्र मंत्रोअयं नात्र संशय '' ---श्रीमद्देवीभागवद --
बस उस बिजुली और ऐं का ध्यान पूजा- समाधिस्थ भाव से करने लगे। ऐसे ही जैसे सत्य को क्षीण करने के लिये असत्य अपनी पूरी ताकत झोंक देता है --
शक्ति प्रसन्न हुई --शक्ति अर्थात कार्य क्षमता ,लगन ,कर्मठता और समर्पण ---कर्मण्येवाधिकारस्ते ---काम करने के प्रति समर्पण की हद तक लगन ---फल निश्चित होता है --कर्म चाहे सुर करे या असुर ---
''यं यं चिन्तयते कामम् तं तं प्राप्नोति निश्चितं ''----- दुर्गासप्तशती --
-शक्ति प्रसन्न हुई और आशीष मिला। इच्छा मृत्यु का ---
''वाञ्छितं मरणं दैत्यो भवेद्वां मत प्रसादतः । ''-----श्रीमद्देविभागवद --
------
मधु-कैटभ का ब्रह्मा को देख, उनसे उनका कमलासन माँगना और न देने पे उन्हें युद्ध करने की चुनौती देना ,ब्रह्मा का सोचना मैं तो तपस्वी हूँ इन दैत्यों से न जीत पाऊंगा फिर क्या करूँ ?उन्होंने ध्यान लगाया --देखा विष्णु तो सो रहे हैं ,अब क्या होगा , इन दैत्यों को कौन मारेगा ? ब्रह्मा ने विष्णु की अनेकों प्रकार से स्तुति की ,पर विष्णु नही जगे ,तब ब्रह्मा जी ने विचार किया अवश्य ही विष्णु शक्ति योगनिद्रा के वश में हो गये हैं ---फिर वो उस शक्ति योगनिद्रा की स्तुति करने लगे। वो शक्ति जिसने महाशक्तिशाली विष्णु को भी अचेतन कर दिया --वो ही इन कर्ण दैत्यों से संसार को बचा सकती है ----
जी यही सत्य है , विलुप्त चेतना पे जब कानाफूसी सवार हो जाये ,अफवाहों के बवंडर उठें , सत्य को नकारने के लिये --मधुकैटभ --सहस्त्रों कर्णों में मैल बन शक्तिशाली असुर बन जायें --तो सत्य हारने की कगार पे पहुंच जाता है ,निष्प्रभ व श्री हीन हो जाता है --असुरों में एकता और बल कई गुना होते हैं ---ऐसे में सदाचारी महाशक्ति ही एक मात्र सहारा होती है --शक्ति का स्तवन ही उपद्रवों को समाप्त करता है।
-----इस शक्ति की उपासना का पर्व ही है दुर्गापूजा ,नवरात्रि --विष्णु को जगाने का पर्व ,विश्व चेतना जागे , मधुकैटभ जो हवाओं से तिरते हुए मस्तिष्क रूपी ब्रह्मांड के जल में फल-फूल रहे हैं , उनके निस्तारण का ''पर्व , अपनी शक्ति को पहचानने का पर्व ---
''उत्तिष्ठ देवि कुरु रूपमिहाद्भुतं त्वं
मां वा त्विमौ जहि यथेच्छासि बाललीले।
नोचेत्प्रबोधय हरिं निहनेदिमौ य -
सत्वत्साध्यमेतदखिलं किल कार्यजातम् ॥ ''.....
-------हे देवी अब आप उठिये और अपना अद्भुत रूप धारण कीजिये ,हे बाललीलाकारिणी ! अपनी इच्छानुसार चाहे मुझे मार दें अथवा इन दोनों दैत्यों को मार दें या तो भगवान विष्णु को जगा दें ,ये काम करने में आप ही सक्षम हैं। -------------
चंडी पाठ का प्रथम अध्याय ही शक्तिस्तवन से प्रारम्भ होता है ---निद्रा आवश्यक है शरीर के लिये पर चेतन निद्रा -- अफवाहों ,अफवाह फैलाने वालों , आसुरी प्रवृतियों ,और देशद्रोही ,समाजद्रोही प्रवृतियों के प्रति लापरवाही, सर्पों की शैया में ली जाने वाली निद्रा ही होती है --जो मधुकैटभ को पनपने का अवसर देती है -- बस यूँ ही मेरी सोच ---नवरात्रि के उपलक्ष में --
--- नवरात्रि की मंगलकामनायें ---आभा --
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