Tuesday, 20 February 2018

अंजन रंग रंगी वसुधा

===========

प्रभाती में निशा का भान
लुप्त हैं आज अरुण के बाण।
फैला कोहरे का केश जाल
भ्रांत है आज सूर्य विशाल।
अश्रु संग बहा आज अंजन
कपोल रंगे धुऐं के रंग।
विस्मित मैं ! यादों के संग
रंगा इंद्रधनुष ,सलेटी रंग।
किरणें खेलें आंखमिचौली
हवा में खुनक बड़ी मतवाली।
जागृत वसुधा यूँ ! स्वप्नीली
ज्यूँ अलसायी दुल्हन नवेली।
आज न ओढ़ूँ , इंगूरी साड़ी
अभ्रक सा धूम्र रंग ; मन भाया।
"पी" के नयनों का आलोक
मद भरे नयनों से संजोग।
आज मैं रंगी नयनों के रंग
मानिनी हिम ठिठुरन सी मौन।
अंजन फिर , लिया नयन में डार
पुलिन में करती मुक्त विहार।
निमिष भर चलती जब बयार
सिहर जाता दुल्हिन का गात।
तुहिन कण पलकों पर वार
दिया अंजन ने , अलकों को उपहार।
कुहर का ये स्वप्निल संसार
प्रकृति का है अनुपम श्रृंगार।
उच्छ्वासें यादों की बयार
मूर्छित सपनों का संसार
विरति ये चांदी रंग परिधान
सृष्टि की आभा है साकार।।

 के सलेटी रंग से - अंजन भरे नयनों का रंग -जब क्षितिज के इंगूरी कुमकुम से बातें करता है -तो प्रकृति कोहरे की चादर पहन श्रृंगार के संयोग- वियोग दोनों भावों में डोलती है- धुवें रंग का झीना आँचल ओढ़ !---कोहरा मेरे जीवन को ऊर्जा देता है।

No comments:

Post a Comment