Monday, 19 February 2018


घुमन्तु  वो  दूधिया बादल
 अक्स मेरा बना - हँसता  है अक्सर।
हाँ !
मुझे मैं दिखाई देती हूँ किसी पल उसमे
 औ !
तुम भी  आते हो नजर पास वहीँ कहीं।
हलचल निर्वात में भी हवाओं की
 बदलती  है बादलों की  सूरत ,
औ -कह जाती है
चुपके से कहानियां न सुनाई देने वाली -
ऐसे ही ! जैसे  जिंदगी की हलचल
बचपन को   बुढ़ापे की ओढ़नी चढ़ाती है
ये नीला आसमां  -जमीं  है बादल की
हाँ !  है कुछ ऐसा ही है
 रंग मेरी रूह का भी
स्नेह भरे  दीपक में  प्यार की शिखा
नीली  लौ से जगमगाती  नीली छत
हाँ ! जमीं से छत ही तो हो गयी हूँ
 सीख लिया बादलों से आकारों में ढलना
 शक्ति कणो  का कर संचय  हुई सघन
 तिरती हूँ स्वछंद पर
  रिश्तों की डोर से बंधी
 सीरत न बादल की बदली न ,मेरी!
सदियों से हम यूँ ही हैं  -
''मीठे  पानी से ''
बरसें तो   झरने नदियां बन बह जायें
 थक के रुकें तो  खारा समंदर -
पवन!  भटकाता है राह बादल को
औ बदल देता है आकार  उसका
 दो तीन चार पास आये
तो   पुष्प गुच्छ बनाये
  पल में ही फूलो को देता है बिखरा -
हाँ मैं ही हूँ वो पवन भी !
हाँ! मैं ही हूँ वो पवन -
तुझसे मिलने की चाह में
बिखरती हुई
 -स्वयं को  दिशा मुक्त करती हुई
स्वयं को दिशा मुक्त करती हुई ।।आभा।







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