धरती माँ का पुनः संस्थापन
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स्वप्नाभिलाषी तुम कहो ,
मैं तो यही बस मानती हूँ ,
हाथ तुम हाथों में दे दो ,
कारवां बनना ; नियति है ,
प्यार के दो शब्द बोलो
गाँठ उर की खोल देंगे
ध्येय ; हो कल्याण सबका !
लक्ष्य ,ये लेकर चलेंगे ,
अहिंसा धर्म परम् है
इसी से, मानवता बचेगी
विश्व जीवन ज्योति जागे
सृष्टि को यौवन मिले
हर रंग हर बिम्ब की
सृष्टि को सौगात देदें
आज हम सौगन्ध ये लें
हाथ में ले हाथ सबका ,
छोड़ के धर्मों के पहरे ,
तोड़ के जाती के बन्धन
एक हो धरती को बचाएं
कुछ तुम तजो ,कुछ मैं तजूं
सुखों को कुछ कम करें
प्रकृति के नजदीक आएं
वृक्ष रोपें ,गाँव बसाएं
शस्यश्यामल धरती माँ को
उसका खोया गौरव दिलवाएं
कुछ समय लगेगा माना
पर करना ही होगा हमें
इस धरा का पुनः संस्थापन -
हम करें पुनः संस्थापन।।आभा।।
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स्वप्नाभिलाषी तुम कहो ,
मैं तो यही बस मानती हूँ ,
हाथ तुम हाथों में दे दो ,
कारवां बनना ; नियति है ,
प्यार के दो शब्द बोलो
गाँठ उर की खोल देंगे
ध्येय ; हो कल्याण सबका !
लक्ष्य ,ये लेकर चलेंगे ,
अहिंसा धर्म परम् है
इसी से, मानवता बचेगी
विश्व जीवन ज्योति जागे
सृष्टि को यौवन मिले
हर रंग हर बिम्ब की
सृष्टि को सौगात देदें
आज हम सौगन्ध ये लें
हाथ में ले हाथ सबका ,
छोड़ के धर्मों के पहरे ,
तोड़ के जाती के बन्धन
एक हो धरती को बचाएं
कुछ तुम तजो ,कुछ मैं तजूं
सुखों को कुछ कम करें
प्रकृति के नजदीक आएं
वृक्ष रोपें ,गाँव बसाएं
शस्यश्यामल धरती माँ को
उसका खोया गौरव दिलवाएं
कुछ समय लगेगा माना
पर करना ही होगा हमें
इस धरा का पुनः संस्थापन -
हम करें पुनः संस्थापन।।आभा।।
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