Tuesday, 20 February 2018

-छक रहा है किस सुरभि से तृप्त होकर घ्राण  ##
    कुछ पाकर बांटने का आनंद -ऐसा ही जैसे खिलते फूल  की खुशबू से पूरा बागीचा महक जाये  , चाह के भी फूल खुशबू के बंद बाँध नहीं सकता। दुःख तो मन के गहरे अँधेरे कूप में छिपा के रखा जा सकता है पर आनंद ! वो तो स्वत: ही छलक आता है -उसे छलक भी जाने देना चाहिये -''फिर अभाव असफलताओं की गाथा कौन यहां बकता ''(जयशंकर प्रसाद ) -
सच में आज उस आनंद को ही बांटने चली आयी मैं। इस चौपाल में चंद लम्हों की अनुपस्थिति ने --गगन से धुंधली मेरी भाग्य झोली को प्राचिपट सा स्नेहसिक्त कर दिया।
निस्वार्थ स्नेह भरे मैसेज मेरी चिंता में स्नेह पगे शब्दों में  -फेसबुक के इस मायावी संसार में अंग्वालठी भर भी अपनापन मिल गया तो इसे अपना भाग्य ही मानूंगी।
सभी को व्यक्तिगत स्नेह देने की कोशिश की है -पर कोई भी धुंधली होती नजरों के कारण रह गया तो उसे मेरा ढेर सा प्यार।
बुढ़िया है भी या टपक गयी -ये भी विचार था किसी के मन में  और यही असली विचार था शायद ,क्या करें उम्र भी तो ऐसी ही है  पर आज ही टीवी में एक 85 साल के बुजुर्ग को 5000 पुशअप्स करते देखा और एक 75 साल की अम्मा को 100 मीटर की दौड़ में कई इनाम लेते हुए देखा।
मैं इन पहलवानों जैसी तो नहीं पर हाँ कब्र में पैर हो ऐसी भी नहीं -- फिर इतनी भाग्यशाली भी नहीं कि इतनी जल्दी बुलावा आ जाये।
अंत पर अनंत -कल रात का धमकी भरा फोन -''दी आ जाओ फेसबुक पे वरना मैंने भी छोड़ देना है फेसबुक ''--
और लो मैंने '' बिना बात  '' की छुट्टियां रदद् कर दीं -
इस स्नेह प्यार की सौगात से मिले आनंद को बांटने का आनंद मैं ही समझ सकती हूँ -
बुद्ध को भी तो जब भगवान मिले तो वो दौड़े चले आये  उस आनंद को अपने लोगों को बांटने ,और ऐसे ही महावीर भी -बस मुझे भी इस कुछ लम्हों की अनुपस्थिति में  निस्वार्थ -बिनाशर्त मेरी परवाह करने वाले रिश्ते मिले --मैं आनंदित हूँ पाने के सुख से --सभी के सुखी-स्वस्थ -समृद्ध जीवन के लिये अनंत शुभकामनायें
रुदन में सुख की कथा है
विरह मिलने की प्रथा है
शलभ जल कर दीप बन जाता निशा के शेष में
आंसुओं के देश में ----
धन्यवाद -शुक्रिया -खुश रहें सभी --आभा --








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