सम्पुट तेरे नाम का
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बैठ कर जब अग्नि रथ पे ,
मेघ के द्रुत अश्व साधे ,
राह अनजानी गये तुम
गगन मेरा हुआ तब से ,
रात का सम्पुट बनी मै |
बादलों की क्यारियों की
नर्म -नाजुक सी गली में
ढूंढने प्रिय पद के आखर
रात का सम्पुट बनी मैं |
मखमली जगमग निशाके
आंचल के झिलमिल तारकों में
ढूढने अपना सितारा --
रात का सम्पुट बनी मैं |
हैं वहां पे कृष्ण भी औ -
राम भी तुमको मिले क्या ?
माँ भी तुम को मिली होंगी !
चाँद-तारों के रथों पर
बैठ मुझको देखते तुम ?
देखने को इक झलक औ
ढूंढने अपना सितारा
रात का सम्पुट बनी मैं |
चाँद मेरा प्रिय बना अब
चांदनी मेरी सहेली
जगमगाते झिलमिलाते
सप्त ऋषि की राह पकड़े
रात का सम्पुट बनी मैं |
रात भर सोती न जगती
शेष कितनी राह सोचूं
दलदली या है रेतीली
है, बारिशें या धूल आंधी
बिजलियाँ है कड़कड़ाती
या कि बर्फीली हवा है
ढूढने को शेष राहें
जानने रब की सदायें
तारकों की झलमिलों को
भरती हुई अपने हृदय में
रात का सम्पुट ही हूँ मैं -
रात का सम्पुट ही हूँ मैं ||आभा||
मेघ के द्रुत अश्व साधे ,
राह अनजानी गये तुम
गगन मेरा हुआ तब से ,
रात का सम्पुट बनी मै |
बादलों की क्यारियों की
नर्म -नाजुक सी गली में
ढूंढने प्रिय पद के आखर
रात का सम्पुट बनी मैं |
मखमली जगमग निशाके
आंचल के झिलमिल तारकों में
ढूढने अपना सितारा --
रात का सम्पुट बनी मैं |
हैं वहां पे कृष्ण भी औ -
राम भी तुमको मिले क्या ?
माँ भी तुम को मिली होंगी !
चाँद-तारों के रथों पर
बैठ मुझको देखते तुम ?
देखने को इक झलक औ
ढूंढने अपना सितारा
रात का सम्पुट बनी मैं |
चाँद मेरा प्रिय बना अब
चांदनी मेरी सहेली
जगमगाते झिलमिलाते
सप्त ऋषि की राह पकड़े
रात का सम्पुट बनी मैं |
रात भर सोती न जगती
शेष कितनी राह सोचूं
दलदली या है रेतीली
है, बारिशें या धूल आंधी
बिजलियाँ है कड़कड़ाती
या कि बर्फीली हवा है
ढूढने को शेष राहें
जानने रब की सदायें
तारकों की झलमिलों को
भरती हुई अपने हृदय में
रात का सम्पुट ही हूँ मैं -
रात का सम्पुट ही हूँ मैं ||आभा||
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