-----कुछ रचनायें लिखने वाले के दिल के बहुत करीब होती हैं। वो कैसे बन जाती हैं स्वयं को ही पता नहीं चलता। ऐसी ही है ये रचना ,चाहे इसमें कुछ भी अपना न हो पर मुझे बहुत प्यारी है मेरे दिल के बहुत करीब ,एक बार बिना बुलाये फिर से इस ही दिन '' चली आई मुझे स्नेह देने कुछ ताजा पंक्तियों के साथ ---
-''अरी व्यथा तू मेरी सहेली ,
मधु ऋतु तो थी चार दिनों की ,
तू तो मेरे संग-संग खेली।।''-----
मौसिमे अब्र है बादल भी है ,
गुल है गुलशन भी है -पर तू नहीं है ,
तेरे जाने के बाद भी जो हम जीते हैं ,
उम्र ने हमसे बेवफाई की है ,
इश्क़ ने हमसे बेवफाई की है -----
-- · sep 15 ,2013 ---
आज दिमाग को आराम फरमाने का आदेश दिया है ... बुद्धिजीवियों वाले कोई विचार नहीं इंटरटेन करने है , विचार हैं की उछल-कूद मचा रहे है ...मैं इन्हें शट-अप कर रही हूँ ...अरे छुट्टी दी है तो चुप बैठो न क्यूँ मल्टीनेशनल कम्पनियों के नुमाइंदों की मानिंद work from home ,करने को विवश हो पर अफ़सोस ये दिमाग जब अपने को बुद्धिजीवी मानने लगता है तो क्या शांत बैठ सकता है ,----सो कुछ तो सोचना ही पड़ेगा पर विषय भिन्न होगा ...जीवन को समझते ही जो मूलभूत भावना मन में आती है उसकी चर्चा ...अनुभूतियों में लिपटी अत्मानुभूति ..काव्य जीवन का आधार इश्क उस अज्ञात से! उसे जानने की कोशिश चंद शायरों की जुबानी .....मिलन की तडप महादेवी के शब्दों में .
अलि कहाँ सन्देश भेजूं ,
मैं किसे सन्देश भेजूं ,
एक सुधि अनजान उनकी ,
दूसरापहचान मन की ,
पुलक का उपहार दूँ या अश्रु भार अशेष भेजूं ....................प्रसाद के शब्दों में इश्क की पीड़ा ...........'.......................................................................................
.अरे बतादो मुझे दया कर,कहाँ प्रवासी है मेरा ,
उसी बावले से मिलने को डालरही हूँ मैं फेरा ..'.......................प्रेम समस्त काव्य का आधार है ,करुणा की भावना ,श्रृंगार हो या वियोग ,इश्क का कारखाना है .............सो आज विचार इस इश्क पर ही केन्द्रित ......
.........इश्क अख्तियार करो कि इश्क ही कारखाना पर मुसल्लत है ;
अगर इश्क न होता तो तमाम निजाम दरहम -बरहमहो जाता ;
बे इश्क की जिंदगानी बवाल है और
इश्क में दिल खोना अस्लेकमाल है
इश्क ही बनाताहै ;इश्क ही बिगाड़ता है
कहते हैं आलममें जो कुछ भी है इश्क का जहूर है;
आग सोजे इश्क है ;पानी रफ्तारे इश्क है ;
ख़ाक करारे इश्क है ;हवा इजतरारे इश्क है ;
मौज इश्क की मस्ती है ;हयात इश्क की होशियारी है
;रात इश्क का ख़्वाब है ;दिन इश्क की बेदारी है ;
यहाँ तक किआसमानों की हरकत हरकते इश्की है
इश्क की इन्तहां रब की यारी है ;........... शायर कहो ,कवि कहो या संत और सूफी कहो ...जब अपने को पहचान जाता है और प्रभु से मिलन हो जाता है तो उसकी अवस्था क्या होती है .........
जब मैं था तब हरी नहीं ,अब हरी हैं मैं नाहि,
सब अंधियारा मिट गया दीपक देख्या माहीं; ..................
मेरे तो बस गिरधर गोपाल दूसरो न कोई ;...................................................
मूर्छित थीं इन्द्रियाँ ,स्तब्ध जगत ;
जड़ चेतन सब एकाकार ;
शून्य विश्व के उर में केवल ;सांसों का आना जाना ;
......इश्क ही इश्क है जहाँ देखो ;
सारे आलम में भर रहा है इश्क ;
इश्क माशूक, इश्क आशिक है ;
यानी अपना ही मुब्तला है इश्क ;
कौन मकसद को इश्कबिन पहुंचा ;
आरजू इश्क ,मुद्दआ है इश्क ;
दर्द खुद ही ,खुद ही दवा है इश्क ,
सच्चे हैं शायरां,खुदा है इश्क ;....मीर ]
और प्रसाद के शब्दों में --------------
जिसमें सुख -दुःख मिलकर मन के उत्सव आनंद मानते हों ,
उज्ज्वल वरदान चेतना का सौन्दर्य जिसे सब कहते हैं ....
हाँ यही है अनंत काल से शुरू हुई मन की यात्रा ,,जिसमे कितने ही किस्से-कहानियाँ समाई है ,जिसमे मीरा समा गयी ,राधा अपने को भूल गयी ,प्रहलाद और ध्रुव ने खोकर अपने को ;उस प्रभु को सबकुछ प्राप्त किया ;यही है इश्क ,प्रेम लगन ...जहाँ सब कुछ खोकर पाना होता है ..
.शलभ ने शिखा को सदा ध्येय माना किसी को लगा यह मरण का बहाना ......
ओफोह मैंने तो दिमाग को छुट्टी दे के आराम करने भेजा था और यूँ ही इश्क की दास्तान याद आ गयी; बैठे -ठाले दिमाग को आराम देने का इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता है ......सब बुझे दीपक जला लूँ ! घिर रहा तम आज दीपक -रागिनी अपनी जला लूँ ...........अजय को श्रधान्जली स्वरूप ...आभा ......कल से पितृ पक्ष शुरू
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