Tuesday, 20 February 2018


मेरे घर गौरेया आई
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नन्हीं- नन्हीं दो गौरेया
बड़े सवेरे मुझे जगातीं 
चीं -चीं , चूं -चूँ
टीं -टीं , टुट -टुट
उनींदे नयनों  का स्वप्न सुहाना
भटका सा कोई  गीत निशा का
ज्यूँ मेरे द्वारे पे आया
मेरे दरवाजे देहरी पर
शहनाई सी मुझे सुनाती
नन्ही -नन्ही दो गौरेया
बड़े सवेरे मुझे जगातीं
नाम एक का गौरी है
दूजी को चितकबरी मैं कहती
जब दोनों आतीं द्वारे पर
उनके रंग में रंग जाती मैं
मुझसे हैं वो बातें करती
मन में पुलक अधरों में चितवन
मधुर -मधुरतम ,चीं -चीं ,चूं -चूं
फुदक -फुदक कर नाच दिखाती
मन मयूर पुलकित हो जाता
गौरेया की चीं -चीं ,चुन -चुन में
सरस फूल सा खिल खिल जाता 

प्रतिदिन मैं मिलती हूँ इनसे
बाट जोहती हूँ मैं इनकी .
दूँ मैं जब आवाज उन्हें तो
दौड़ी आती हैं दोनों भी ,
छोटे -छोटे पाखी हैं ये ,
इन्हें बचाना ही होगा
अपनी बालकनी के कोने में
इन्हें बसाना ही होगा
जब बच्चे पास नहीं होंगे ,
ये ही साथ निभाएंगे ,
फुदक -फुदक कर चीं -चीं चूं से
ये ही मन बहलाएँगे।।आभा।।



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