'' बैठे ठाले ''
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बसंत की सुहानी दोपहर ,आम का हरा भरा पेड़ ,पेड़ पे ढेर सी बौर और हरी -हरी अम्बियाँ ...चारों ओर फैली बौर की मदहोश करने वाली सुगंध ,कोयल बहुत दूर से इसे महसूस करती है ,उडती हुई हुई आती है और इस डाल से उस डाल, फुदक -फुदक के पंचम सुर में मस्ती से कुहू -कुहू गाने लगती है ..अम्बियाँ हवा के झूलों पे सवार मस्ती में झूल रही थीं . यौवन के प्रथम सोपान में ,अल्हड़,अक्खड़ अपनी सुन्दरता की नीम बेहोशी में .उन्हें काली- कलूटी का रंग में भंग अच्छा नहीं लगा. कोयल बोली कुहू -कुहू मैं आ गयी!
आम्बियाँ इतराई ..और बोलीं अरी कलूटी कहाँ से आजाती है हर मौसम , कहाँ हमारी डालियों पे.. सुंदर सलोनी,सुनहरी , सुगन्धित बौर , हरी -हरी अम्बियाँ और कहाँ तू काली- कलूटी,. ...सारी छटा ही बिगाड़देती है .....कोयल बड़ी दूर से आयी थी ...उसे विश्वास था ,मैं तो पाहुनी हूँ बौर मेरी बलैयां लेगी ,अम्बियाँ गलबहियाँ डालेंगी ,सदियों से तो ऐसा ही हो रहा है ....बड़ी निराश हुई ....पर हार नहीं मानेगी ...वो तो कोयल है ..पंचम सुर में गाने वाली ...सोचने लगी अब आ ही गयी हूँ तो टिकुंगी पर जुगत भिड़ानी होगी ...चलूँ कौवे से पूंछूं क्या बात है, इतना क्यूँ इतरा रही हैं अम्बियाँ ...खूब झूमके कुहू -कुहू सुनाया कौवे को..अम्बियों ने देखा और बोलीं .बेचारा चाल में फंस गया ..वैसे भी ये धूर्त कोयल हर वर्ष न जाने कितने कौवों के अंडे घोंसलों से गिरा देती है और वहां अपने अंडे रख देती है ..बेचारे को पता भी नहीं चलता ,और ये कलूटी धूर्त के साथ -साथ निकम्मी भी तो है ,कौवे से ही अपने बच्चे पलवाती है ,आलसन ,माँ के होते हुए भी क्या बच्चे किसी और से पलवाये जाते हैं पर इसे तो बस गाना और आजाद रहना है कोयल तो है ही मानिनी ,पर सुन के भी शान रही और कौवे से पूछा, ये माहौल में बदलाव क्यूँ है ...तो पता चला कि डेंगू फैला हुआ है और रामदेव बाबा ने कहा है की बौर को सुखाके उसका धुंआ देने से मच्छर भाग जाते है और आम के पत्तों के कोंपलों के टहनियों के अम्बियों के और आम के बहुत से आयुर्वेदिक प्रयोग सार्वजनिक कर दिए हैं ,तब से ये परिवार ज्यादा ही इतराने लगा है ..अब प्रभुता पाहि काहू मद नाहीं ,.....,,,,कोयल को बहुत बुरा लगा .इस मौसम की रानी तो मैं हूँ और मैं ही रहूंगी मैं निकम्मी हूँ तो क्या !ये अम्बी ही कौन सा कुछ कर रही है ,बस पवन के संग -संग डोल रही है और इतरा रही है निठल्ली ..बस रूप रंग ही में तो अच्छी है तो मैं कौन बुरी हूँ कृष्ण वर्ण हूँ कान्हा की मुरली की भांति ही पंचम सुर में गाती हूँ ...क्या जुगत भिडाऊं .कि इसका घमंड झड़ जाए ---और फिर बहुत सोच के कोयल बोली -----अरी अम्बी सुन ....बहुत बन रही है न ---माली आयेगा और कच्ची को ही तोड़ के ले जाएगा ----आचार बनादेगा तेरा ,ये इठलाना ,इतराना पींगें बढ़ाना हवा के साथ -साथ -सब चार -दिन की चांदनी है फिर तो सारीउम्र मर्तबान में कैद रहेगी ..वो भी तेल में डूबी हुई ....अरे क्या कह गयी निगोड़ी !अम्बी सिहर उठी ..सच बात है पर कितनी कडवी ,लेकिन हार न मानूंगी मैं ----बोली -----अरी कलमुहीं सुरक्षित भी तो रहूँगी न ,न सडूगी , न गलूंगी सुरक्षित रहने का अचूक नुस्खा ..आचार बन जाओ -----अपने घरके लोगों के साथ रहो ,थोडा नमक ,थोडा मसाला थोडा स्नेह [चिकनाई ]..कभी धूप में तो कभी छावं में---- हा हा हा ----पर तू सोच जब तेरे बच्चे होंगे और कुहू- कुहू बोलेंगे ! निगोड़ी तेरी तो पोल ही खुल जायेगी सब को कौवे से ही सहानुभूति होगी ...तेरी सुरीली आवाज भी तेरे उपर लगा धूर्तता और निकम्मेपन का दाग नहीं हटा पाएगी ...गालियाँ ही मिलेंगी तुझे और कर्मठ और सबकेसाथमिलके रहने वाला कौवा इक बार फिर, घर -घर पितृ -पक्ष में पूजा जाएगा ..और कागभुशुंडी का खानदानी होने का गौरव पायेगा ..जिरह पे जिरह कोई भी हार न माने ....पर ...अब तक अम्बी और कोयल समझ चुकी थीं ,दोनों को साथ -साथ ही रहना है और थोड़े ही समय का साथ है तो क्यूँ न प्यार से रहें ,,दोनों में कुछ कमियां हैं, कुछ खूबियाँ हैं, तो दोनों एक साथ बोली चलो हम सहेली बन जाए और हंसके गलबहियां डाल लीं ..अम्बी बोली, मैं डाल पे इतराऊंगी ,इठलाऊंगी और कोयल तू पंचम सुर में गाना ,अपने सुर की मधुर -मिठास मुझे देकर, इस पेड़ के सारे आमों को मीठा करदेना, मैं तेरा स्वागत करती हूँ ...कोयल ने भी ख़ुशी में गाना शुरू किया और दोपहर संगीत और सुगंध से सराबोर हो गयी ....पर एक बात है अम्बी तो अचार ,मुरब्बा ,चटनी बन के मर्तबान में सुरक्षित हो जायेगी,,कौवा कर्कश कांव-कांव करता हुआभी घर -घर पूजा जाएगा ----खीर खंडवा द्यों तोहे कागा ,सोने की चोंच मढ़ाऊं तोहे कागा .....पर कोयल अकेले रहने की आदत के कारण , दर दर भटकेगी ,,पंचम सुर में सुरीला गाना भी अकेलापन दूर न कर पायेगा ...................................मॉरल आफद स्टोरी ....वैसे तो कई सारी सीखें हैं पर ये पढने वाले पे निर्भर करेगा वो कौन सी सीख लेता है ....और कौनसा कहानी पढके अब कोई सीख लेता है ....मैंने तो खाली दिमाग शैतान का घर ,,,,लिख दी बैठे ठाले .....................आभा .............
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बसंत की सुहानी दोपहर ,आम का हरा भरा पेड़ ,पेड़ पे ढेर सी बौर और हरी -हरी अम्बियाँ ...चारों ओर फैली बौर की मदहोश करने वाली सुगंध ,कोयल बहुत दूर से इसे महसूस करती है ,उडती हुई हुई आती है और इस डाल से उस डाल, फुदक -फुदक के पंचम सुर में मस्ती से कुहू -कुहू गाने लगती है ..अम्बियाँ हवा के झूलों पे सवार मस्ती में झूल रही थीं . यौवन के प्रथम सोपान में ,अल्हड़,अक्खड़ अपनी सुन्दरता की नीम बेहोशी में .उन्हें काली- कलूटी का रंग में भंग अच्छा नहीं लगा. कोयल बोली कुहू -कुहू मैं आ गयी!
आम्बियाँ इतराई ..और बोलीं अरी कलूटी कहाँ से आजाती है हर मौसम , कहाँ हमारी डालियों पे.. सुंदर सलोनी,सुनहरी , सुगन्धित बौर , हरी -हरी अम्बियाँ और कहाँ तू काली- कलूटी,. ...सारी छटा ही बिगाड़देती है .....कोयल बड़ी दूर से आयी थी ...उसे विश्वास था ,मैं तो पाहुनी हूँ बौर मेरी बलैयां लेगी ,अम्बियाँ गलबहियाँ डालेंगी ,सदियों से तो ऐसा ही हो रहा है ....बड़ी निराश हुई ....पर हार नहीं मानेगी ...वो तो कोयल है ..पंचम सुर में गाने वाली ...सोचने लगी अब आ ही गयी हूँ तो टिकुंगी पर जुगत भिड़ानी होगी ...चलूँ कौवे से पूंछूं क्या बात है, इतना क्यूँ इतरा रही हैं अम्बियाँ ...खूब झूमके कुहू -कुहू सुनाया कौवे को..अम्बियों ने देखा और बोलीं .बेचारा चाल में फंस गया ..वैसे भी ये धूर्त कोयल हर वर्ष न जाने कितने कौवों के अंडे घोंसलों से गिरा देती है और वहां अपने अंडे रख देती है ..बेचारे को पता भी नहीं चलता ,और ये कलूटी धूर्त के साथ -साथ निकम्मी भी तो है ,कौवे से ही अपने बच्चे पलवाती है ,आलसन ,माँ के होते हुए भी क्या बच्चे किसी और से पलवाये जाते हैं पर इसे तो बस गाना और आजाद रहना है कोयल तो है ही मानिनी ,पर सुन के भी शान रही और कौवे से पूछा, ये माहौल में बदलाव क्यूँ है ...तो पता चला कि डेंगू फैला हुआ है और रामदेव बाबा ने कहा है की बौर को सुखाके उसका धुंआ देने से मच्छर भाग जाते है और आम के पत्तों के कोंपलों के टहनियों के अम्बियों के और आम के बहुत से आयुर्वेदिक प्रयोग सार्वजनिक कर दिए हैं ,तब से ये परिवार ज्यादा ही इतराने लगा है ..अब प्रभुता पाहि काहू मद नाहीं ,.....,,,,कोयल को बहुत बुरा लगा .इस मौसम की रानी तो मैं हूँ और मैं ही रहूंगी मैं निकम्मी हूँ तो क्या !ये अम्बी ही कौन सा कुछ कर रही है ,बस पवन के संग -संग डोल रही है और इतरा रही है निठल्ली ..बस रूप रंग ही में तो अच्छी है तो मैं कौन बुरी हूँ कृष्ण वर्ण हूँ कान्हा की मुरली की भांति ही पंचम सुर में गाती हूँ ...क्या जुगत भिडाऊं .कि इसका घमंड झड़ जाए ---और फिर बहुत सोच के कोयल बोली -----अरी अम्बी सुन ....बहुत बन रही है न ---माली आयेगा और कच्ची को ही तोड़ के ले जाएगा ----आचार बनादेगा तेरा ,ये इठलाना ,इतराना पींगें बढ़ाना हवा के साथ -साथ -सब चार -दिन की चांदनी है फिर तो सारीउम्र मर्तबान में कैद रहेगी ..वो भी तेल में डूबी हुई ....अरे क्या कह गयी निगोड़ी !अम्बी सिहर उठी ..सच बात है पर कितनी कडवी ,लेकिन हार न मानूंगी मैं ----बोली -----अरी कलमुहीं सुरक्षित भी तो रहूँगी न ,न सडूगी , न गलूंगी सुरक्षित रहने का अचूक नुस्खा ..आचार बन जाओ -----अपने घरके लोगों के साथ रहो ,थोडा नमक ,थोडा मसाला थोडा स्नेह [चिकनाई ]..कभी धूप में तो कभी छावं में---- हा हा हा ----पर तू सोच जब तेरे बच्चे होंगे और कुहू- कुहू बोलेंगे ! निगोड़ी तेरी तो पोल ही खुल जायेगी सब को कौवे से ही सहानुभूति होगी ...तेरी सुरीली आवाज भी तेरे उपर लगा धूर्तता और निकम्मेपन का दाग नहीं हटा पाएगी ...गालियाँ ही मिलेंगी तुझे और कर्मठ और सबकेसाथमिलके रहने वाला कौवा इक बार फिर, घर -घर पितृ -पक्ष में पूजा जाएगा ..और कागभुशुंडी का खानदानी होने का गौरव पायेगा ..जिरह पे जिरह कोई भी हार न माने ....पर ...अब तक अम्बी और कोयल समझ चुकी थीं ,दोनों को साथ -साथ ही रहना है और थोड़े ही समय का साथ है तो क्यूँ न प्यार से रहें ,,दोनों में कुछ कमियां हैं, कुछ खूबियाँ हैं, तो दोनों एक साथ बोली चलो हम सहेली बन जाए और हंसके गलबहियां डाल लीं ..अम्बी बोली, मैं डाल पे इतराऊंगी ,इठलाऊंगी और कोयल तू पंचम सुर में गाना ,अपने सुर की मधुर -मिठास मुझे देकर, इस पेड़ के सारे आमों को मीठा करदेना, मैं तेरा स्वागत करती हूँ ...कोयल ने भी ख़ुशी में गाना शुरू किया और दोपहर संगीत और सुगंध से सराबोर हो गयी ....पर एक बात है अम्बी तो अचार ,मुरब्बा ,चटनी बन के मर्तबान में सुरक्षित हो जायेगी,,कौवा कर्कश कांव-कांव करता हुआभी घर -घर पूजा जाएगा ----खीर खंडवा द्यों तोहे कागा ,सोने की चोंच मढ़ाऊं तोहे कागा .....पर कोयल अकेले रहने की आदत के कारण , दर दर भटकेगी ,,पंचम सुर में सुरीला गाना भी अकेलापन दूर न कर पायेगा ...................................मॉरल आफद स्टोरी ....वैसे तो कई सारी सीखें हैं पर ये पढने वाले पे निर्भर करेगा वो कौन सी सीख लेता है ....और कौनसा कहानी पढके अब कोई सीख लेता है ....मैंने तो खाली दिमाग शैतान का घर ,,,,लिख दी बैठे ठाले .....................आभा .............

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