Tuesday, 20 February 2018

''  शब्द -शब्द  ''
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अक्षरों की बूंदाबांदी    
उजलापन शब्दों का 
झरा  वाक्यों का झरना
जो हम हैं 
वही तो झरेंगे 
मन  आसमां ! तो 
शब्दों का झरना , 
रंग बिखेरेगा  इंद्रधनुषी 
 नदी भावों की 
बन बहेगा 
कलकल छलछल 
छू जिसे शीतल मलय 
झंकृत कर  प्राण 
आलिंगन कर अंबर का  
बन शीतल फुहारें 
सृजेगा हरियाली 
      ,शब्दों के ओले 
गंदला बरसाती दरिया 
वेग से  उमड़ा ,
 बह चला,दिशा हीन  
तोड़ता तट-बंध 
लट्ठों -पत्थरों संग 
  कठोर !शब्दों का वेग
सब बहाने को आतुर 
दूरी बढ़ाता  किनारों की 
तोड़ दे  दृढ सेतु  को भी
एक उजाड़े  दहशत दे 
एक मन प्रांगण का
अंतर भिगो, पुलकावलि भरे 
हरियाली दे आनंद दे
अक्षरों की बूंदा-बांदी तो वही
शब्द हमें चुनने हैं 
वाक्य हमें बनाने हैं 
बनाएंगे तो वही न 
जो अंतर में होगा
यादों के जंगल को 
उपवन बनाना ?
दुरूह होता है स्वयं को पाना।।आभा।।






यादों के जंगल में --उपवन बनाना ,मुश्किल होता है खुद को पाना।।आभा।।

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