Tuesday, 20 February 2018

एक बार फिर "भानमती ने कुनबा जोड़ा "--
और पिटारे से बहने लगी भावनाओं की सरिता --
समझ न आये पोस्ट -तो कोई बात नहीं - दुनियादार लोग मेरे जैसे बावरे थोड़े ही हैं होते हैं --
-ईश्वरीय प्रेरणा के दर्शन सभी को हों ,सभी बुजुर्ग सकारात्मक रहें बस केवल इसीलिये चाप दिया विचारों का ये अंधड़ --इसे इरमा कहें या हार्वे --
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पहली सितंबर बड़कू और दस सितंबर छटकु का जनम्बार -जो दूर है उसे फोन कर दिया जो पास है उसे हैप्पी बर्थडे सामने से बोल दिया --बस यही तो रह गयी है अब जिंदगी।
हकीकत बयां कर रही हूँ -बुरा लगेगा ---माँ -बाप को भी और बच्चों को भी पर ईमानदारी से दिल पे हाथ रख के पूछिये अपने आप से तो पाएंगे कि बूढ़े हो रहे माँ-बाप तो पुराने फर्नीचर ही हो जाते हैं -कुछ बच्चे उन्हें कीमती फर्नीचर की मानिंद संभाल के रखते है कोई यूँ ही पड़े रहने देते कोने में -धूल अधिक हो गयी तो झाड़ देंगे। बहुत से बुजुर्गों को देख के लिख रही हूँ और शायद मैं भी कालांतर में इसी स्तिथि में आ जाउंगी
अति संवेदनशील होने में यही हानि -नुकसान है आप हर स्थिति में अपने-आप को फिट करके देखने लगते हो।
और मैं भी यही सोचने लगी --मेरे आशीर्वाद ,पूजा-पाठ या शुभकामनाओं से क्या हासिल होगा बच्चों को जब सबकुछ पूर्वनिर्धारित (predestined ) होता है। शायद क्षीण होती काया और हारता मन ये एक दूसरे के पूरक हैं। हम अपने को मजबूत ,सकारात्मक ,स्वस्थ और जिंदादिल रखने की कितनी भी कोशिश कर लें नितांत अकेले क्षणों में कभी न कभी अवसाद घेर ही लेता है -पे ये भी उतना ही बड़ा सच है कि यदि हम शीघ्र इस अवसाद से उबरने की ईमानदार कोशिश करें तो ईश्वरीय प्रेरणा स्वयं ही चल के आती है हमारे पास --
बात जनम्बार की --तो बच्चों को शुभकामनायें दे दीं ,पूजा-पाठ कर लिया ,पितरों से आशीष की फरियाद कर ली ----बाकी उपहार ,खाना ,पकवान तो प्रोटोकॉल के साथ ही होजाते हैं -और खुशियां पुढ़च्यावर्षी लवकरया” की पुकार के साथ आशीष में तब्दील '
--पर अब तो फेसबुक भी है न --प्रोटोकॉल में टाइमलाइन पे शुभकामनासंदेश लिखना भी तो शामिल हो गया है। ----
--ये जग जाहिर है कि आज की पीढ़ी अपनी टाइमलाइन पे कुछ भी शेयर करना पसंद नहीं करती -आप कोई भी फोटो तो इनको टैग कर ही नहीं सकते -ये हकीकत है -""यदि आप इससे इंकार कर रहे हैं तो आप बहुत बड़े हिप्पोक्रेट हैं -""
ऐसे में एक स्वाभाविक हिच होती है -पोस्ट बना के तो डाल दूँ पर क्या पता बच्चों को कैसा लगे ---मैं बुरा न मानूं इसलिये वो कुछ कहेंगे तो नहीं --पर नई पीढ़ी तो है ही --
समय की ऐसी बलिहारी रही कि मैंने इस वर्ष बच्चों के जनम्बार पे कोई पोस्ट नहीं लिखी या कहूं चाह के भी समय ही नहीं निकाल पायी।
मैं चाहती हूँ आप सभी देखे -अनदेखे स्नेहिल- अजीज मित्रों की शुभकामनायें मेरे बच्चों को मिलें पर इस वर्ष जाने अनजाने मैं चूक गयी आप सभी की शुभकामनायें लेने से।
-- ईश्वर चाहता है बच्चों को आपकी शुभकामनायें मिलें। तभी तो बेटे के जन्मदिन के दिन की मेरी एक कामना पूर्ण की और मुझे जन्मदिन के बाद ही सही पर पोस्ट लिखने का कारण दिया --- कामना भी क्या ? सुनके हँसेंगे सभी पर मेरे लिये अनमोल है।
पेड़-पौधों से बच्चों की तरह प्यार किया हम दोनों "अजयाभा " ने -अजय छूटे -मिटटी छूटी- कंक्रीट के जंगल में आयी पर अपनी क्षुधा को गमलों की हरियाली से शांत करने की कोशिश करती हूँ।
पिता की तर्ज पे बेटे ने दो " passion flower " की बेलें ला के दीं - बेटी की तरह ही पालनी पोसनी पड़ती हैं बेलें। रोज ममता लुटानी पड़ती है --मैंने बेल से कान में कहा --बेटी बाहर है- तो क्या ?तू ही भाइयों के जन्मदिन पर मुस्कुराना -अवश्य ! --एक -बस एक फूल खिल जाये मैं समझूंगी तू खुश है -ईश्वरीय विधान में बुजुर्गों की कामना की कोई कीमत है -मेरा होना प्रासंगिक है -----और आज सुबह उठने पे एक कली दिखी मुझे --झट से कैमरे में कैद किया -बेटे को बताने गयी -वो देखने आया तो फूल मुस्कुराता मिला। -देखा एक कली कल भी चटकी थी -कल घर में ताला था खुशियां सुबह मेरे घर में तो सायं बेटे के ससुराल में खिलखिलायीं -तो -मैं कल देख ही न पायी -बेटी बन मेरा कहना माना -बेल ने और फूल बन श्राद्धों में चली आयी घर में --
अनोखी ख़ुशी मनोकामना पूर्ण होने की ---भौतिक वस्तुएं तो बच्चे बटोर ही लेंगे --पर प्रकृति का ये आशीष --ये उन्हें हम फर्नीचर बन गए माँ-बाप ही अनुभव करवा पाएंगे। ऐसी छोटी-छोटी पर हकीकत में जीवन का विस्तार लिये हुई बड़ी अनुभूतियों को अनुभव करने का आह्लाद यदि हम बुजुर्ग बच्चों को सौंपने का बीड़ा उठायें तो प्रकृति माँ भी हमारी सहायता करती है। वो जगद्जननी सीता ही तो है --
"यस्या: स्वरूपं ब्रह्मादयो न जानन्ति तस्मादुच्यते अज्ञेया
यस्या लक्ष्यं नोपलक्ष्यते तस्मादुच्यते अलक्ष्या
यस्या जननं नोपलभ्यते तस्मादुच्यते अजा ''
महंगे फर्नीचर बनने से यदि हम बुजुर्ग इंकार कर दें और कुछ सार्थक करें तो ईश्वरीय शक्ति साथ देती है हमारा --फूल तो खिलेंगे ही पर मनचाहे समय पे आजायें ,तो आप क्या कहेंगे --कृष्ण -कान्हा तू है मेरे साथ ,यहीं कहीं -इस "राधे -श्याम ' फूल की सुगंध की तरह ---आभा --
कल के मुरझाये फूल की ,आज सुबह कली से फूल बनने की तस्वीरें --बस मेरी ख़ुशी --








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