खोया-पाया --चक्कलस की इंतिहा ( हास्य व्यंग्म् )
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श्रीमदफ़ेसबुकम नाम आधुनिक पुराणं लोकविश्रुतम्।
श्रृणुयच्छ्र द्ध्या युक्तो मम सन्तोषकारणम्।।
आधुनिक पुराण फेसबुक में
एक दूसरे की खिड़कियों से
ताकझांक करना , चौपाल बना
गुफ्तगू करना ,निठल्लों का चिंतन
कलैण्डरी वर्ष का आखिरी पड़ाव।
चहुंओर धुनकी की रूई सी उड़ती चक्कलसियां
-क्या खोया क्या पाया इसमें
चले थे जिस लक्ष्य को लेकर
उस पर कहां तलक पहुंचे !
अपनी तो भाग्य से कुट्टी है
परेशानियां खूब नचाती हैं
छूटते-छूटते फिर से आकर
दामन में टंक जाती हैं
जिंदगी घिसटती रहती है
फेसबुक की दुनिया भी ,
शामिल है अब जीवन में
फेसबुकी दिमागी चक्कलस
डुबकी लगा रही मैं भी इसमें
कितने पानी में खड़ी यहां मैं
सोचा ये आकलन करूं
इस पटल में खोया-पाया पे
मैं भी थोड़ा मनन करूँ
फेसबुक की दुनिया यह
अब दिनचर्या में शामिल है
निज को परिभाषित करने की
कुछ सब के मन की सुनने की
कुछ अपने मन की कहने की
यह चौपाल अनूठी है।
कुछ विश्लेषण कुछ लफ्फाजी
जीत कभी हारी बाजी।
कितने चेहरे कितनी बातें
हर मित्र पूर्ण है अपने में
खुद ही नाटक सब लिखते हैं
खुद ही मंचन भी करते हैं
ये मंच मसखरों का भी है
दुधमुहें बालकों का भी है
आचार्यों शिष्यों की रेलमपेल
कोई किसी को भक्त कहे
कहे स्वयं को खानदानी रेल
मैं हूँ मैं हूँ बस मैं ही हूँ
मैं नारंगी मीठी वाली
तू स्ट्राबेरी खट्टी है।
नीला पटल-आभासी दुनिया का
पोटली स्नेह की ले कर आया
सौगातों में थाली भर रिश्ते
कुछ न्य बने कुछ बिसरे से
प्यारी बहनों सी सखियाँ
आती न यहां तो पाती कैसे
आँचल भर प्यार,छुटकुलों से
कुछ स्नेह बुजुर्गों का भी है
स्नेहिल हमउम्र मित्र मिले
भूले बिसरे सहपाठी भी
पोस्ट पढ़े और लाइक करें
टिप्पणी कर लिखना, सार्थक करें
ऊर्जा के अजस्र श्रोत है सब -
लिखना भी सिखालाते हैं '
जीवन की इस संध्या में
मुझ में मुझको दिखलाते हैं
स्नेहीजन जो नित्यप्रति
आते थे चौपाल मेरी
अब चोरी छुपके आते हैं
कन्नी काट छुप जाते हैं
लाइक और टिप्पणी न हो
भरसक मन को समझाते हैं
मैसेज में लिख-कह देते
पोस्ट पढ़ी -ठीक लगी
इग्नोर क्यों ये करते हैं
बात न ये मै जान सकी
शायद मैं मोदी जी की ( भारत के प्रधानमंत्री )
नीतियों की प्रसंशक हूँ
कुछ बुद्धिमान मित्र मेरे
उन्हें विला वजह नफरत करते
इन मित्रों की टाइम लाइन पे
मैं हक से लिख आती हूँ -
--एक तो नारी ="जो कभी न अरी "=
उस पे बेबाक और सुंदर
आने की इच्छा होने पे भी
कनखियों देख मुड़ जाते हैं
बहस हो मेरे ही मन की
यही चाहते सभी यहां
कुछ बुद्धिमान बुजुर्ग मित्र
जो गुरु कहलाते फेसबुक में -
जाने किस घमंड में ,रहते
एक दिन में दस पोस्ट लिखें
दूजे की बिन पढ़े लाइक करें
लिखनी ही हो टिप्पणी गर
खूब लिखा बस यही लिखे
कुछ अति - बुद्धिमान मित्र भी है
क्या लिखते खुद भी न समझें
न लाइक करें न कमेंट करें
बस करें शिकायत
मैं उनको क्यों नहीं पढ़ती
कितनी बड़ी है ये दुकष्टि
कुछ महिला - पुरुष - मित्र
क्यों भेजी फ्रैंड रिक्वेस्ट व्ही जानें
कभी भी समझ नहीं आया -
वो केवल अपनी फोटो डालें
उसपे सस्ते शेर- सवाशेर चिपका डालें
- इनको वाह ,खूब ,सुंदर कितनी बार लिखें
क्यों कर लिखे किस हेतु लिखे -
बस अनफ्रैंड नहीं करती --
क्या जाने इस आभासी दुनिया में
अन्य किसी जन्म की आभासी दुनिया के
मित्र हो बचपन - बुढ़ापे के
झोला भर पत्रकार भाई
, कुछ तो इतने विद्वान हैं
डर -डर पोस्ट पे केवल लाइक भेजा करती
-ये सोच के कुछ लिख न पाती
मैं अज्ञानी वो पत्रकार बंधु
न जाने क्या अर्थ अनर्थ करें
मैं सीधी सोच की स्वामिनी
वो पत्रकार वक्री सारे।
दीदी वाला रूतबा मेरा
बड़े-बड़ों की मैं दीदी हूँ
कुछ ऊँचे सिंहासन पे बैठी
बुजुर्ग और कुछ अधिक हो गयी
,ढीठ ,मसखरे ,बुद्धिमान ,
कुछ स्नेहिल भी कुछ सीधे भी
तथाकथित बुद्धिमान ,
इग्नोरी,एरोगेंट और जाहिल भी
खूब सारे मित्र और मित्राणियाँ -
कुछ जलकुकड़े ,कुछ गर्वीले
नकचढ़े रिश्तेदार भी यहां
प्यारे भी और दुलारे भी
कुछ वैसे कभी न पूछें
फेसबुक में पूछ लेते हैं -
पोटली भर प्यारी बेटियां
पिट्ठू भर हैंडसम बेटे भी
आंचलभर प्यारी सखियाँ
ये अनंत निधियां पायीं मैंने
पाया ही पाया की चक्कल
डूब गयी मैं हूँ इसमें
आभासी दुनिया में तो
खोने को कुछ है ही कहां
यदि मानो तो सब आत्मन है
न मानो तो आभासी हैं
नित्यं फेसबुकम् यस्तु पुराणं पठते नर:|
प्रत्यक्षरं लिखेत्तस्य आत्ममुग्धं फलं लभेत।।
आत्ममुग्ध ही रहता है
हर इंसान यहां पर रे
अपने को किसी से कम न समझना
तुम इस टाइम लाइन के मालिक रे
ये सत्ता तुम्हारी है
ये चौपाल तुम्हारी है
गरियाओ या गले लगाओ इसकी रीत निराली
कलयुग के नारद बसते इसमें
जिसे चाहें लड़वा डालें।
"आस्फोटयन्ति वल्गन्ति तेषां प्रीतो भवाम्यहम् ''
--सच में -कल रात ही सपने में मुझसे
आकाशवाणी ने कहा था -ऐसे लोग जो मेरी चौपाल पे आएंगे
वो कलि के प्रभाव से निडर होक ताल ठोकें
उनपर कलयुग का प्रभाव नहीं होगा।
अथ श्रीमदफ़ेसबुके पुराणे -२०१७ रेवाखण्डे संक्षिप्त कथा --
-चक्कलस अध्याय: समाप्त:-आभा।
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श्रीमदफ़ेसबुकम नाम आधुनिक पुराणं लोकविश्रुतम्।
श्रृणुयच्छ्र द्ध्या युक्तो मम सन्तोषकारणम्।।
आधुनिक पुराण फेसबुक में
एक दूसरे की खिड़कियों से
ताकझांक करना , चौपाल बना
गुफ्तगू करना ,निठल्लों का चिंतन
कलैण्डरी वर्ष का आखिरी पड़ाव।
चहुंओर धुनकी की रूई सी उड़ती चक्कलसियां
-क्या खोया क्या पाया इसमें
चले थे जिस लक्ष्य को लेकर
उस पर कहां तलक पहुंचे !
अपनी तो भाग्य से कुट्टी है
परेशानियां खूब नचाती हैं
छूटते-छूटते फिर से आकर
दामन में टंक जाती हैं
जिंदगी घिसटती रहती है
फेसबुक की दुनिया भी ,
शामिल है अब जीवन में
फेसबुकी दिमागी चक्कलस
डुबकी लगा रही मैं भी इसमें
कितने पानी में खड़ी यहां मैं
सोचा ये आकलन करूं
इस पटल में खोया-पाया पे
मैं भी थोड़ा मनन करूँ
फेसबुक की दुनिया यह
अब दिनचर्या में शामिल है
निज को परिभाषित करने की
कुछ सब के मन की सुनने की
कुछ अपने मन की कहने की
यह चौपाल अनूठी है।
कुछ विश्लेषण कुछ लफ्फाजी
जीत कभी हारी बाजी।
कितने चेहरे कितनी बातें
हर मित्र पूर्ण है अपने में
खुद ही नाटक सब लिखते हैं
खुद ही मंचन भी करते हैं
ये मंच मसखरों का भी है
दुधमुहें बालकों का भी है
आचार्यों शिष्यों की रेलमपेल
कोई किसी को भक्त कहे
कहे स्वयं को खानदानी रेल
मैं हूँ मैं हूँ बस मैं ही हूँ
मैं नारंगी मीठी वाली
तू स्ट्राबेरी खट्टी है।
नीला पटल-आभासी दुनिया का
पोटली स्नेह की ले कर आया
सौगातों में थाली भर रिश्ते
कुछ न्य बने कुछ बिसरे से
प्यारी बहनों सी सखियाँ
आती न यहां तो पाती कैसे
आँचल भर प्यार,छुटकुलों से
कुछ स्नेह बुजुर्गों का भी है
स्नेहिल हमउम्र मित्र मिले
भूले बिसरे सहपाठी भी
पोस्ट पढ़े और लाइक करें
टिप्पणी कर लिखना, सार्थक करें
ऊर्जा के अजस्र श्रोत है सब -
लिखना भी सिखालाते हैं '
जीवन की इस संध्या में
मुझ में मुझको दिखलाते हैं
स्नेहीजन जो नित्यप्रति
आते थे चौपाल मेरी
अब चोरी छुपके आते हैं
कन्नी काट छुप जाते हैं
लाइक और टिप्पणी न हो
भरसक मन को समझाते हैं
मैसेज में लिख-कह देते
पोस्ट पढ़ी -ठीक लगी
इग्नोर क्यों ये करते हैं
बात न ये मै जान सकी
शायद मैं मोदी जी की ( भारत के प्रधानमंत्री )
नीतियों की प्रसंशक हूँ
कुछ बुद्धिमान मित्र मेरे
उन्हें विला वजह नफरत करते
इन मित्रों की टाइम लाइन पे
मैं हक से लिख आती हूँ -
--एक तो नारी ="जो कभी न अरी "=
उस पे बेबाक और सुंदर
आने की इच्छा होने पे भी
कनखियों देख मुड़ जाते हैं
बहस हो मेरे ही मन की
यही चाहते सभी यहां
कुछ बुद्धिमान बुजुर्ग मित्र
जो गुरु कहलाते फेसबुक में -
जाने किस घमंड में ,रहते
एक दिन में दस पोस्ट लिखें
दूजे की बिन पढ़े लाइक करें
लिखनी ही हो टिप्पणी गर
खूब लिखा बस यही लिखे
कुछ अति - बुद्धिमान मित्र भी है
क्या लिखते खुद भी न समझें
न लाइक करें न कमेंट करें
बस करें शिकायत
मैं उनको क्यों नहीं पढ़ती
कितनी बड़ी है ये दुकष्टि
कुछ महिला - पुरुष - मित्र
क्यों भेजी फ्रैंड रिक्वेस्ट व्ही जानें
कभी भी समझ नहीं आया -
वो केवल अपनी फोटो डालें
उसपे सस्ते शेर- सवाशेर चिपका डालें
- इनको वाह ,खूब ,सुंदर कितनी बार लिखें
क्यों कर लिखे किस हेतु लिखे -
बस अनफ्रैंड नहीं करती --
क्या जाने इस आभासी दुनिया में
अन्य किसी जन्म की आभासी दुनिया के
मित्र हो बचपन - बुढ़ापे के
झोला भर पत्रकार भाई
, कुछ तो इतने विद्वान हैं
डर -डर पोस्ट पे केवल लाइक भेजा करती
-ये सोच के कुछ लिख न पाती
मैं अज्ञानी वो पत्रकार बंधु
न जाने क्या अर्थ अनर्थ करें
मैं सीधी सोच की स्वामिनी
वो पत्रकार वक्री सारे।
दीदी वाला रूतबा मेरा
बड़े-बड़ों की मैं दीदी हूँ
कुछ ऊँचे सिंहासन पे बैठी
बुजुर्ग और कुछ अधिक हो गयी
,ढीठ ,मसखरे ,बुद्धिमान ,
कुछ स्नेहिल भी कुछ सीधे भी
तथाकथित बुद्धिमान ,
इग्नोरी,एरोगेंट और जाहिल भी
खूब सारे मित्र और मित्राणियाँ -
कुछ जलकुकड़े ,कुछ गर्वीले
नकचढ़े रिश्तेदार भी यहां
प्यारे भी और दुलारे भी
कुछ वैसे कभी न पूछें
फेसबुक में पूछ लेते हैं -
पोटली भर प्यारी बेटियां
पिट्ठू भर हैंडसम बेटे भी
आंचलभर प्यारी सखियाँ
ये अनंत निधियां पायीं मैंने
पाया ही पाया की चक्कल
डूब गयी मैं हूँ इसमें
आभासी दुनिया में तो
खोने को कुछ है ही कहां
यदि मानो तो सब आत्मन है
न मानो तो आभासी हैं
नित्यं फेसबुकम् यस्तु पुराणं पठते नर:|
प्रत्यक्षरं लिखेत्तस्य आत्ममुग्धं फलं लभेत।।
आत्ममुग्ध ही रहता है
हर इंसान यहां पर रे
अपने को किसी से कम न समझना
तुम इस टाइम लाइन के मालिक रे
ये सत्ता तुम्हारी है
ये चौपाल तुम्हारी है
गरियाओ या गले लगाओ इसकी रीत निराली
कलयुग के नारद बसते इसमें
जिसे चाहें लड़वा डालें।
"आस्फोटयन्ति वल्गन्ति तेषां प्रीतो भवाम्यहम् ''
--सच में -कल रात ही सपने में मुझसे
आकाशवाणी ने कहा था -ऐसे लोग जो मेरी चौपाल पे आएंगे
वो कलि के प्रभाव से निडर होक ताल ठोकें
उनपर कलयुग का प्रभाव नहीं होगा।
अथ श्रीमदफ़ेसबुके पुराणे -२०१७ रेवाखण्डे संक्षिप्त कथा --
-चक्कलस अध्याय: समाप्त:-आभा।
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