''रुदन में आनंद के क्षण ''
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अलि ; है मुझे अहसास इसका -
जन्म-जन्मांतर से सदा ही -
तू रहा है साथ मेरे !
रुदन में आनन्द के क्षण
मूक से फिर मुखर होना
बालपन की रुनझुनों में
ममता बना था , साथ मेरे ,
तू रहा है साथ मेरे !
अनुराग हर वय का है अपना
स्वप्न का व्यवसाय जीवन
उन्नति , गती जब , हो गयी
पिता सा संबल बना ,
तू रहा तब साथ मेरे !
शत कामनाओं के वो अंधड़
कोलाहल , कलरव लगे जब
हर लक्ष्य हर ध्येय में भी
तू ही तो था साथ मेरे !
कंटकों का रूप लेकर
गन्तव्य के वो पथ जो आये
पग ने मंजिल ढूंढ ही ली ,
तू सदा था साथ मेरे !
पूछती अब मैं स्वयं से -
चिर-पिपासित हृदय क्यूँ ये ?
क्या यही पाथेय मेरा ?
क्यों तुझे न जान पायी ?
क्यों नहीं पहचान पायी
तू तो सदा था साथ मेरे !
गोधूलि की बेला सुहानी -
स्वर्णिम उजियारे से सज्जित
स्वर्णिम उजियारे से सज्जित
आँचल , दिशाओं ने है ओढ़ा
कज्जल निशा के आगमन का
है यही संदेश मुझको
तू अभी भी साथ मेरे !
अलि ! यूँ ही रहना, साथ मेरे !
जब चढ़ूँ मैं ज्वाल रथ पे
वह्नि हो प्रचण्ड जाये ,
चिंगारियों से सेज जगमग,
ज्यूँ ; बादलों के बीच बिजली
अलि ! बादलों से झांकना तू ;
मेघ के अश्रु में ढलकर
चिर -पिपासित हृदय को तू
मिलन का उत्सव बनना !
अलि! तू मेरे ही साथ रहना !
तू रहा है साथ मेरे !
पितुमात , प्रियतम और बच्चे
अन्य सारे रिश्ते नाते ;
प्रवृत्तियां - दायित्व -जीवन
बस एक कम्पन एक थिरकन
सांस बनके मिट्टी के तन में
तू रहा है साथ मेरे ,
क्यूँ जांनने में देर करदी ?
क्यों न तुझे , पहचान पायी ?
गर तुझे पहचान जाती
संगीत हो जीवन ये जाता
मैं जरा कुछ संवर जाती
प्यार की मूरत हो जाती
अलि ; अब तुझे मैं जानती हूँ
तू सदा था साथ मेरे
मेरी साँसों में छिपा था !
जीवन मेरा तुझको समर्पित
ध्येय ये ; तुझको मैं जानूं
लोल मैं वीणा की तेरी
तेरे दर्शन की मैं भिक्षुक
अली मैं तेरी ही सहेली ।। आभा।। ......
लोल मैं वीणा की तेरी
तेरे दर्शन की मैं भिक्षुक
अली मैं तेरी ही सहेली ।। आभा।। ......
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