अपनी भी बन
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तेरे- काम के घंटे कम न होगें
पर सोच तू -तू भी कुछ है
समय चुरा स्वयं को दे
तुझ को भी खुद की जरूरत है
तू नही अकिंचन -
पूरा घर ही है ऋणी तेरा
इसीलिए तू गृहिणी है
ममता माया का बल है -
तू क्षमा,शक्ति कल्याणी है
पूरे घर को राह दिखाती तू-
क्यूँ नही स्वयं को सुन पाती है ?
अपने दिल के दरवाजे पे
दे दस्तक अपने लिए जरा
अब सुन अपने हिय की भी तू
खुद को भी खुद ही तोल जरा
चल उठ कि कुछ समय चुरा
अपने हेतु कुछ नियम बना
मैं अब प्रतिदिन सैर पे जाउंगी
वर्जिश कर कुछ पौष्टिक खाऊँगी
अपनी काया को पुष्ट बना
जो सबको सिखलाती है तू
वो ही अब तू भी अपना
तू नारी है तू सबला है
अबला का ताज तू- फेंक आज -
नारी जो अरि नहीं होती
तू खड़ी स्वयं की अरि बनकर
अब अपने से स्नेह तू कर
कुछ समय स्वयं को भी दे दे
तू सृष्टि को रचती सकती है
चटानों सी दृढ रहती है
तो उठ खुद को पहचान जरा
अपनी नजरों में मान बढ़ा
हँस के गम सह ले सभी मगर
गमको अपना मुक्क़दर न बना।।आभा।।
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