Saturday, 24 February 2018

'' ऊर्ध्वमूलो वाक्शाख ऐषोअश्वत्थ: सनातन ''
ज्ञान नचिकेता को जब ,
यम से जीवन का मिला था ,

विश्व है अश्वत्थ वृक्ष --
बस यही उसने कहा था । 
वृक्ष के मूल में ब्रह्म ! 
ब्रह्मा ,देव ,पितर,मनुज ,
पशु-पक्षी प्रकृति -
तने , शाख, फूल , पर्ण इसके ! 
वृक्ष ब्रह्म  में सम्पूर्ण सृष्टि। 
 प्राण यूँ ही वृक्ष जगत के 
वृक्ष हैं अमृत सृष्टि के 
मन-प्राण - कल्याण सबके । 
मेरे अंगने का अलबेला 
वृक्ष आज मुझसे ये बोला -
ये घनी छाँव मेरी -
ये अमलतास के झुमके 
तारों से टिमटिम कुसुम नीम के 
 पीपल के पातों की हवा ये --कट जायेंगे यदि वृक्ष यूँ ही ,संतति कैसे हमें पहचानेगी ?संतति के लिये- इक सेल्फी ले ले 
आज मेरे साथ बिटिया -
चल तू इक सेल्फी लेले !
सृष्टि का हम ताप हरते 
प्रकृति माँ के हम ही गहने 
वृष्टि की भी चाह हम ही हैं 
बुलबुलों का ठौर हैं हम । 
गर्मी से त्रस्त -आतप मनुज को 
छाँव शीतल भी हमीं है । 
कर आचमन जल इस धरा का ,
बादलों को हम ही देते ,
लग गले फिर बादलों के ,
नेह से धरती भिगोते । 
बांधते हम इस धरा को ,
पर्वतों को रेतियों को 
बलशाली  सागर के तीरे 
हम ही सैनिक बन खड़े है । 
तूफ़ान अर सुनामियों से -
आदम को हमने ही बचाया 
उसने स्व विकास के हित 
कुल्हाड़ा हमपे ही चलाया । 
हम हैं पादप ! 
प्राण वायु !
छाँव शीतल !
प्रेम-शांति औ अहिंसा 
का संदेश लेकर उड़ चला जो -
उस शांति दूत खग का बसेरा । 
उत्सव का जब भी लो तुम संकल्प ,
रोप लो इक वृक्ष उस पल !
प्रकृति माँ हर्षाएगी अर -
संतति भी बच जायेगी । 
एक काटो हजार रोपो -
अब यही संकल्प होवे ,
वृक्ष ही से ये धरा है 
वृक्ष ही है ब्रह्म जग में !
वृक्ष ही कान्हा की बंसी -
राधा-गोपियों का रास भी ये 
साथ वन में सीता का दिया ,
पंचवटी ,चित्रकूट ,अशोक-वाटिका
भी वृक्षों से । 
वृक्ष ही से पूर्वज हमारे ,
संतति भी वृक्ष चाहे ,
वृक्षारोपण हो यज्ञ अपना ,
इस पीढ़ी का ये कर्म होवे । 

नील व्योम में उड़ रहा जो 
सांध्य बेला में वो पक्षी 
मेरे अंक में विश्राम लेगा !
मैं वृक्ष ! 
मैं जगत की भूख हरता ,
मैं जगत की प्यास हरता ,
मैं ही पलना हूँ तुम्हारा ,
औ अंत में मैं ज्वाल रथ हूँ ,
ओ !धरा के वासियों ,
कर आचमन तुम ये शपथ लो !
एक काटो-हजार रोपो ,
ये ही हो , संकल्प अब से ,
इस घड़ी से ,
इसी पल से ,
मैं उठूं इक वृक्ष रोपूं ,
एक खग को दूँ बसेरा 
शांति का संदेश दूँ 
वृष्टि को आमन्त्रण मेरा !
हो यही शुभ-संकल्प मेरा-
हो यही शुभ-संकल्प मेरा ॥आभा ॥

Mana

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