कल्याणकारी हो शिवरात्रि -
शिवरात्रि -एकादश रुद्र के ग्यारह महीने और बारहवें में महाशिवरात्रि ------
शिव -प्रकृति की चेतना का विस्तार।
ॐ नम: शिवाय -
हर-हर महादेव -
बम-बम भोले -
बोल बम -
शिव नाद हैं -वो नाद जो चेतना को गर्भ में धारण करता है -वो नाद जो ऊर्जा का मूल श्रोत है ,शिव जगत की मानसिक ऊर्जा हैं। शिव ने शक्ति को अपनी ऊर्जा रूप में ग्रहण कर नारी को "ना अरि "- ( She )- "शी " का मान दिया -शक्ति के साथ के बिना जो शव है -शमशान है -
शम -जो मुक्ति है ,मोक्ष है ,निवृति भाव है ,स्थायी भाव है -साधना है-स्थावर है -और यही शिव की शान है -प्रकृति में अन्य कोई भी चेतन इतना सक्षम नहीं कि "शम " के भाव में लम्बे समय तक रह सके। शक्ति भी नहीं। शव सड़ने लगेगा और विद्रूप हो जाएगा और शक्ति अराजक हो जायेगी पर शिव की शव भी शान है इसीलिए वो श्मशान के देवता हैं मोक्ष के स्वामी। भूतनाथ जड़ -चेतन के छोटे बड़े ,पाप -पुण्य ,मंगल -अमंगल ,शुभ -अशुभ ,विष -अमृत सभी को अपने में समाहित किये हुए -
शव की ऊर्जा चेतना पार्वती माँ शक्ति -उनमें ही एकाकार है ,जब -जब वो प्रकट होती हैं शिवरात्रि होती है -शिव विवाह होता है ,शिव लास के दर्शन होते हैं। और जब वो लोप होती हैं शिव साधक होते हैं शव रूप में या तांडव करते है शक्ति रूपा पार्वती के शव को काँधे पे लादे हुए -
शव -मुक्ति मोक्ष को बंधन में बाँधने का प्रयास व -वामा -के साथ शिव मिलन। " शि " रूपी ऊर्जा को " व् "का लास दे ऊर्जा संतुलन की चेष्टा -यदि "शि " रूपी ऊर्जा अराजक हो जाये तो संहार-ही संहार -अत: "शि "संग "व् " का पाणिग्रहण "-व् "-यानी दक्ष ,यानी प्रवीण यानी संतुलित ,यानि सम्यक --
हेमंत की सर्दी से आहत क्षत- विक्षत प्रकृति , पूस के अंत तक आते -आते संचित ऊर्जा का उपयोग कर चेतन होने लगती है --महाशिवरात्रि के लिए अनुकूल समय -
शिव चेतनता का विस्तार है ,कंकर-कंकर में है शंकर -
शिव -शक्ति सृष्टि की चेतना का मूल। कैसा होगा उनका अर्धनारीश्वर का स्वरूप !
बचपन की यादों में उत्तरकाशी का विश्वनाथ जी का मंदिर है। वहां विशालकाय -शक्ति स्तम्भ है -जितने मुहं उतनी कहानियां -एक लोकोक्ति --- देवासुर संग्राम की समाप्ति पे शिव ने ही देवी को अपनी शक्ति को यहां पर स्थापित कर जड़ करने को कहा। काली के चरणों में लेट उसे शांत किया पर शिव के समाधिस्त होने पे वो शक्ति विध्वंसक न हो जाये शिव ने किसी को स्वप्न में दर्शन दे शक्ति स्तम्भ से कुछ दूर खुदाई का आदेश दिया ,खुदाई करने पे शिव लिंग प्रकट हुआ जो बढ़ता ही चला गया और एक निश्चित लम्बाई पे आके रुक गया ,वहां से शक्ति स्तम्भ प्रतिक्षण दिखाई देता रहे शिव थोड़ा सा तिरछे हो गए -आज भी उत्तरकाशी में शिवलिंग तिरछा है और शक्ति स्तम्भ के गर्भगृह से उसके मध्य हिस्से के ऊपर तक सीढ़ियां चढ़ के मंदिर का गर्भ गृह है। ये त्रिशूल किसी मिसाइल की ही तरह है और शिवलिंग किसी परमाणु रिएक्टर की तरह ही है --
मुझे नहीं मालूम ये किवदंती कितनी सही है -आखिर है तो किंवा --दन्त से चबा के निकली गाथा ही पर मेरे लिए सदैव से कुतूहल का विषय रहा कि यदि ये स्तम्भ देवी का त्रिशूल ही है तो वो देवी कितनी शक्तिशाली रही होगी।
इस त्रिशूल की एक और महत्ता है ये हाथ की सबसे छोटी ऊँगली से हिलाने पे हिलता है -वैसे आप इसपे झूल जाओ ये नहीं हिलेगा -इसे हाथ की छोटी ऊँगली से हिलाना हमारा प्रतिदिन का खेल होता था बचपन में इसकी पूजा से इतर।
मुझे लगता है सरकारों को इस जगह पे अनुसंधान करवाने चाहियें शायद ये जगहें ऊर्जा का सबसे बड़ा श्रोत हों या परमाणु रिएक्टर के लिए सबसे अनुकूल स्थान हों -
बचपन के कौतुहल को जब ज्ञान चक्षु मिले तो लगा शायद वो समय लम्बे तगड़े लोगों का समय था। मानव भी डायनोसोर के आकार के ही होते थे और हजारों वर्ष जीते थे। शायद कभी विज्ञान जानपाये इस पहेली को।
शिव-पार्वती -कैसे बने -वो ऊर्जा कैसी है ,वो नाद क्या है -वो बीज मंत्र कब प्रकट होगा ,यही जानने को आत्मा संसार में आती है ,शिव की शरण में होने को मोक्ष पाने को ,शिव जो हिम है ,वो हिम जहां कुछ भी क्षरण नहीं है सब सुरक्षित।अक्षर हैं। वो जब चाहता है संहारक बन जाता है- " कि " उसे मालूम है उसकी प्रयोगशाला में बीज सुरक्षित है।
शिव विज्ञान है ,नाद से उपजी ऊर्जा का विज्ञान। शिव मंत्र है जिसे साधना ही आत्मा का परम् लक्ष्य है।
शिव आदि है -शिवपार्वती बोलना आवश्यक नहीं शिव -अक्षर में ही दोनों समाये हैं -शिवोहं की परिकल्पना -
शिवरात्रि -हमें अपने भीतर स्थावर जंगम सभी को समाहित करने की शक्ति दे -हमारे अंत:करण ( conscience ) को विस्तार दे ताकि हम स्थावर-जंगम पूरी प्रकृति की चेतना को ग्रहण कर सृष्टि से प्यार करें।
शिवरात्रि कल्याणकारी होवे।
शिवरात्रि -एकादश रुद्र के ग्यारह महीने और बारहवें में महाशिवरात्रि ------
शिव -प्रकृति की चेतना का विस्तार।
ॐ नम: शिवाय -
हर-हर महादेव -
बम-बम भोले -
बोल बम -
शिव नाद हैं -वो नाद जो चेतना को गर्भ में धारण करता है -वो नाद जो ऊर्जा का मूल श्रोत है ,शिव जगत की मानसिक ऊर्जा हैं। शिव ने शक्ति को अपनी ऊर्जा रूप में ग्रहण कर नारी को "ना अरि "- ( She )- "शी " का मान दिया -शक्ति के साथ के बिना जो शव है -शमशान है -
शम -जो मुक्ति है ,मोक्ष है ,निवृति भाव है ,स्थायी भाव है -साधना है-स्थावर है -और यही शिव की शान है -प्रकृति में अन्य कोई भी चेतन इतना सक्षम नहीं कि "शम " के भाव में लम्बे समय तक रह सके। शक्ति भी नहीं। शव सड़ने लगेगा और विद्रूप हो जाएगा और शक्ति अराजक हो जायेगी पर शिव की शव भी शान है इसीलिए वो श्मशान के देवता हैं मोक्ष के स्वामी। भूतनाथ जड़ -चेतन के छोटे बड़े ,पाप -पुण्य ,मंगल -अमंगल ,शुभ -अशुभ ,विष -अमृत सभी को अपने में समाहित किये हुए -
शव की ऊर्जा चेतना पार्वती माँ शक्ति -उनमें ही एकाकार है ,जब -जब वो प्रकट होती हैं शिवरात्रि होती है -शिव विवाह होता है ,शिव लास के दर्शन होते हैं। और जब वो लोप होती हैं शिव साधक होते हैं शव रूप में या तांडव करते है शक्ति रूपा पार्वती के शव को काँधे पे लादे हुए -
शव -मुक्ति मोक्ष को बंधन में बाँधने का प्रयास व -वामा -के साथ शिव मिलन। " शि " रूपी ऊर्जा को " व् "का लास दे ऊर्जा संतुलन की चेष्टा -यदि "शि " रूपी ऊर्जा अराजक हो जाये तो संहार-ही संहार -अत: "शि "संग "व् " का पाणिग्रहण "-व् "-यानी दक्ष ,यानी प्रवीण यानी संतुलित ,यानि सम्यक --
हेमंत की सर्दी से आहत क्षत- विक्षत प्रकृति , पूस के अंत तक आते -आते संचित ऊर्जा का उपयोग कर चेतन होने लगती है --महाशिवरात्रि के लिए अनुकूल समय -
शिव चेतनता का विस्तार है ,कंकर-कंकर में है शंकर -
शिव -शक्ति सृष्टि की चेतना का मूल। कैसा होगा उनका अर्धनारीश्वर का स्वरूप !
बचपन की यादों में उत्तरकाशी का विश्वनाथ जी का मंदिर है। वहां विशालकाय -शक्ति स्तम्भ है -जितने मुहं उतनी कहानियां -एक लोकोक्ति --- देवासुर संग्राम की समाप्ति पे शिव ने ही देवी को अपनी शक्ति को यहां पर स्थापित कर जड़ करने को कहा। काली के चरणों में लेट उसे शांत किया पर शिव के समाधिस्त होने पे वो शक्ति विध्वंसक न हो जाये शिव ने किसी को स्वप्न में दर्शन दे शक्ति स्तम्भ से कुछ दूर खुदाई का आदेश दिया ,खुदाई करने पे शिव लिंग प्रकट हुआ जो बढ़ता ही चला गया और एक निश्चित लम्बाई पे आके रुक गया ,वहां से शक्ति स्तम्भ प्रतिक्षण दिखाई देता रहे शिव थोड़ा सा तिरछे हो गए -आज भी उत्तरकाशी में शिवलिंग तिरछा है और शक्ति स्तम्भ के गर्भगृह से उसके मध्य हिस्से के ऊपर तक सीढ़ियां चढ़ के मंदिर का गर्भ गृह है। ये त्रिशूल किसी मिसाइल की ही तरह है और शिवलिंग किसी परमाणु रिएक्टर की तरह ही है --
मुझे नहीं मालूम ये किवदंती कितनी सही है -आखिर है तो किंवा --दन्त से चबा के निकली गाथा ही पर मेरे लिए सदैव से कुतूहल का विषय रहा कि यदि ये स्तम्भ देवी का त्रिशूल ही है तो वो देवी कितनी शक्तिशाली रही होगी।
इस त्रिशूल की एक और महत्ता है ये हाथ की सबसे छोटी ऊँगली से हिलाने पे हिलता है -वैसे आप इसपे झूल जाओ ये नहीं हिलेगा -इसे हाथ की छोटी ऊँगली से हिलाना हमारा प्रतिदिन का खेल होता था बचपन में इसकी पूजा से इतर।
मुझे लगता है सरकारों को इस जगह पे अनुसंधान करवाने चाहियें शायद ये जगहें ऊर्जा का सबसे बड़ा श्रोत हों या परमाणु रिएक्टर के लिए सबसे अनुकूल स्थान हों -
बचपन के कौतुहल को जब ज्ञान चक्षु मिले तो लगा शायद वो समय लम्बे तगड़े लोगों का समय था। मानव भी डायनोसोर के आकार के ही होते थे और हजारों वर्ष जीते थे। शायद कभी विज्ञान जानपाये इस पहेली को।
शिव-पार्वती -कैसे बने -वो ऊर्जा कैसी है ,वो नाद क्या है -वो बीज मंत्र कब प्रकट होगा ,यही जानने को आत्मा संसार में आती है ,शिव की शरण में होने को मोक्ष पाने को ,शिव जो हिम है ,वो हिम जहां कुछ भी क्षरण नहीं है सब सुरक्षित।अक्षर हैं। वो जब चाहता है संहारक बन जाता है- " कि " उसे मालूम है उसकी प्रयोगशाला में बीज सुरक्षित है।
शिव विज्ञान है ,नाद से उपजी ऊर्जा का विज्ञान। शिव मंत्र है जिसे साधना ही आत्मा का परम् लक्ष्य है।
शिव आदि है -शिवपार्वती बोलना आवश्यक नहीं शिव -अक्षर में ही दोनों समाये हैं -शिवोहं की परिकल्पना -
शिवरात्रि -हमें अपने भीतर स्थावर जंगम सभी को समाहित करने की शक्ति दे -हमारे अंत:करण ( conscience ) को विस्तार दे ताकि हम स्थावर-जंगम पूरी प्रकृति की चेतना को ग्रहण कर सृष्टि से प्यार करें।
शिवरात्रि कल्याणकारी होवे।
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